साहित्यिक प्रतियोगिता : १.६
विषय : दृष्टि
दिनाँक : ०६/११/१९
मैंने देखा है…
मैंने देखा है, राम को रोते हुए।
अयोध्या के किसी कोने में बैठे हुए॥
मैंने देखा है…
मैंने देखा है, राम को रोते हुए।
लाचारी थी आँखों में,
गम के सागर भरे थे।
खड़े थे प्रहरी राह को रोके हुए॥
मैंने देखा है…
मैंने देखा है, राम को रोते हुए।
कैकयी ने निकाला,
उसी ने था पाला।
जब तुमने निकाला बिन पाले हुए॥
मैंने देखा है…
मैंने देखा है, राम को रोते हुए।
आज शेष का तेज नहीं,
भरत का बल भी नहीं।
बीते कितने दिन शत्रुधन को निकले हुए॥
मैंने देखा है…
मैंने देखा है, राम को रोते हुए।
सुग्रीव आज भी लाचार,
रावण करे वार पे वार।
बीते युग हनुमान को सोते हुए॥
मैंने देखा है…
मैंने देखा है, राम को रोते हुए।
थी कभी भक्ति में शक्ति,
आज है शक्ति में भक्ति।
बढ़ती जाती जनता मंथरा को पाले हुए॥
मैंने देखा है…
मैंने देखा है, राम को रोते हुए।
अयोध्या के किसी कोने में बैठे हुए॥
अश्विनी राय ‘अरूण’