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​📜 धर्मवीर भारती को श्रद्धांजलि पत्र

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

बक्सर, बिहार

८०२१२८

दिनांक: १२ सितंबर, २०२४

सेवा में,

​परम आदरणीय

साहित्य मनीषी श्री धर्मवीर भारती जी,

(परिकल्पना एवं साहित्यिक श्रद्धा में समर्पित)

विषय: आपके कालजयी उपन्यास “गुनाहों का देवता” पर पाठकीय विचार और हार्दिक अभिव्यक्ति।

​परम आदरणीय महोदय,

​मुझे हाल ही में हिंदी साहित्य के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक, आपकी अमर कृति “गुनाहों का देवता” को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस कालजयी उपन्यास के गहन प्रभाव के कारण, मैं आपके साथ अपने कुछ विचार साझा करने के लिए विवश हो गया। यह रचना मेरे हृदय के अत्यंत करीब आ गई है।

​आदरणीय! आपने इस उपन्यास में प्रेम के अव्यक्त, अलौकिक और पवित्रतम स्वरूप का जो अद्वितीय चित्रण किया है, उसने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया है। आपके पात्रों के चरित्र-चित्रण की सूक्ष्मता और संवेदनशीलता वास्तव में काबिले तारीफ़ है।

​कहने को तो यह प्रेम पर आधारित है, किंतु मेरी दृष्टि में, यह केवल सामान्य प्रेम नहीं है—यह भक्ति पर आधारित एक अनूठा संबंध है। नायिका के लिए नायक सदैव एक देवता के समान पूजनीय रहा है, और नायिका ने हमेशा एक भक्त की तरह ही उसे सम्मान दिया है। नायक भी नायिका से प्रेम करता है, परंतु नायिका की दृष्टि में अपना वह ‘देवता’ स्वरूप बनाए रखने का उसका द्वंद्व, इस प्रेम को एक नया आयाम देता है।

​प्रेम और मर्यादा के बीच नायक के अंतर्मन में पनपा द्वंद्व उपन्यास के अंत तक बना रहता है। यह द्वंद्व अंततः एक ऐसी त्रासदी में परिणित होता है, जब नायिका का विवाह कहीं और हो जाता है, और वह उसी मानसिक पीड़ा में इस दुनिया को अलविदा कह देती है। ओफ़्फ़! यह अंत सचमुच हृदयविदारक है।

​महोदय, मैं यह व्यक्तिगत प्रश्न पूछने की हिमाकत कर रहा हूँ कि क्या इस उपन्यास की गहन संवेदनाएं आपके निजी अनुभवों पर आधारित हैं? मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि ऐसा न हुआ हो। अगर हाँ, तो यह आपके लिए अत्यंत भयावह अनुभव रहा होगा। इस गहन पीड़ा को आपने अनेकों महान रचनाओं में ढाल दिया।

​आपकी अद्भुत जीवटता और उस वेदना को कला में परिवर्तित करने की क्षमता को मैं सहस्र बार प्रणाम करता हूँ। मुझे आशा ही नहीं, वरन् पूर्ण विश्वास है कि आपकी कालजयी रचनाएँ सदियों तक प्रकाशित होती रहेंगी, और हम पाठकों को उनके रसास्वादन का सौभाग्य मिलता रहेगा।

​आपका ही,

​एक शुभेच्छु पाठक

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरूण’

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