📜 ज्ञान का ‘महानगर’: व्यास की कृतियों का वर्णन
मैं चला हूँ उस गली में, जिसका अंत नहीं,
जहाँ कोई भौतिक सीमा या प्रारंभ-बिंदु नहीं।
व्यास का नगर है वह, जहाँ कल्पना भी थकती,
हर ईंट ज्ञान की है, हर प्रकाश सत्य की भक्ति।
चार वेद: ब्रह्मांड को भेदकर
वहाँ पहली इमारत खड़ी है,
जिसकी नींव ब्रह्मांड को भेदकर निकली है।
वो चार वेद हैं—ऋक्, यजुः, साम, अथर्व—
जो समय से पहले थे, और रहेंगे चिर-अथर्व।
उनकी ऊँचाई मापना व्यर्थ है,
वे तो स्वयं स्रोत हैं, जहाँ से सृष्टि का अर्थ है।
अठारह पुराण: सृष्टि का विस्तार
अगले मोड़ पर १८ द्वार हैं—
अठारह पुराण—जो समय का विस्तार हैं।
मानव की कथाएँ हैं, देवताओं के चरित्र,
हर कालखंड का ब्यौरा, हर युग का इत्र।
वो दीवारों पर अंकित हैं, पूरे जगत में फैले,
हर कल्प का चक्र, हर रहस्य उसमें ठहरे।
उपनिषदों का संगीत
फिर आती है एक शांत वीथिका,
जहाँ शब्द नहीं, केवल विचारों का संगीत है।
उपनिषद वहाँ गूँजते हैं १०० से भी अधिक,
ब्रह्म और आत्मा का संवाद, अलौकिक, मौलिक।
वो प्रकाश इतना कोमल है कि आँख नहीं चुंधाती,
बस ‘तत्त्वमसि’ की ध्वनि हर हृदय में समाती।
महाभारत: वह ‘सर्वज्ञ’ केंद्र
मगर केंद्र में खड़ी है एक ‘सर्वज्ञ’ इमारत,
जिसका नाम है महाभारत—एक गहन कलात्मकता।
वो विशाल है, जैसे जीवन का संपूर्ण द्वंद्व,
जहाँ धर्म-अधर्म का नित्य चलता है अनुबंध।
इसी में समाई हुई है गीता की दिव्य ज्योति,
जहाँ कृष्ण की नीति हर युग की नियति होती।
यही है वह रचनाकार, जिसके आंगन में—
टॉलस्टॉय भी खेले, नानक-कबीर भी चमके।
वो आदि भी है, अंत भी है, हर पंथ का विचार,
इसलिए ये सिद्ध है: व्यास एक ही रहेंगे, बारंबार।
विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’