यूपी शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहे वसीम रिजवी ने माथे पर त्रिपुंड लगाकर, भगवा बाना ओढ़कर और मंदिर में पूजा करने के बाद इस्लाम को छोड़कर सनातन धर्म अपना लिया है। अब से उनका नाम जितेंद्र नारायण त्यागी हो गया है। गाजियाबाद अंतर्गत डासना मंदिर में महंत यति नरसिंहानंद जी के समक्ष पूरे विधि-विधान से सनातन धर्म को अपनाया। यहां हम बताते चलें कि उन्होंने ऐसा करने के लिए कुछ दिन पहले ही ऐलान किया था। अब विस्तार से…
समाचार पत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, गाजियाबाद के डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती जी ने वसीम रिजवी को हिंदू धर्म की दीक्षा दी। रिजवी ने अपनी वसीयत में लिखा है कि उनके शव का अंतिम संस्कार पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाज से किया जाना चाहिए, न कि उनकी मृत्यु के बाद दफनाया जाना चाहिए। रिजवी ने यह भी लिखा है कि कि उनकी अंतिम संस्कार की चिता गाजियाबाद के डासना मंदिर के एक हिंदू संत यति नरसिंहानंद सरस्वती जी द्वारा जलाई जानी चाहिए। धर्मपरिवर्तन के बाद रिजवी ने कहा, “धर्मपरिवर्तन की यहां कोई बात नहीं है, जब मुझे इस्लाम से निकाल ही दिया गया, तो ये मेरी मर्जी है कि किस धर्म को स्वीकार करूं। सनातन धर्म दुनिया का सबसे पहला मजहब है और जितनी उसमें अच्छाईयां पाई जाती हैं। इंसानियत पाई जाती है। हम ये समझते हैं कि किसी और धर्म में ये नहीं है। इस्लाम को हम धर्म समझते ही नहीं हैं।” साथ ही उन्होंने आगे कहा कि हर जुमे को नमाज के बाद हमारा और यति नरसिंहानंद सरस्वती का सर काटने के लिए फतवे दिए जाते हैं। इनाम बढ़ाया जाता है। तो ऐसी परिस्थितियों में कोई हमें मुसलमान कहे तो शर्म आती है।
नया कुरान लिखने की बात…
इससे पहले वसीम रिजवी ने कुरान की २६ आयतों को चुनौती देकर फिर से एक नया कुरान लिखने की बात भी कह चुके हैं। मई, २०२१ में रिजवी ने २६ छंदों को हटाकर एक ‘नया कुरान’ बनाने का दावा भी किया था। उनके इस दावे पर काफी विवाद खड़ा हो गया था। रिजवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भारत के सभी मदरसों और मुस्लिम संस्थानों में अपने ‘नए कुरान’ के इस्तेमाल को अधिकृत करने की भी अपील की थी।