आज हम बात करने वाले हैं, प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ आर्यभट के बारे में, जिन्होंने अपनी महान ज्योतिषीय ग्रंथ आर्यभटीय में अपने द्वारा किए ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का उल्लेख किया है, उन्होंने इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्म काल शक संवत् ३९८ लिखा है। कुसुमपुर, बिहार की राजधानी पटना का ही प्राचीन नाम है, जिसे कूटनीतिक खोज के माध्यम से अब बिहार से हटाकर दक्षिण भारत में सिद्ध करने की साजिश शुरू हो चुकी है। जैसा कि चाणक्य, मंडन मिश्र, वात्स्यायन, पंडित विष्णु शर्मा, बाणभट्ट, अश्वघोष आदि महान युगप्रवर्तकों के साथ किया जा रहा है।
जन्म…
जैसा कि सभी जानते हैं कि आर्यभट ने स्वयं ही अपने जन्म और स्थान के बारे में आर्यभटीय में स्पष्ट तौर पर जन्म स्थान कुसुमपुर यानी आज का पटना (बिहार) और जन्म काल शक संवत् ३९८ लिखा है।
सातवीं शताब्दी के महान गणितज्ञ भास्कर प्रथम, जिन्होंने सबसे पहले संख्याओं को हिन्दू दाशमिक पद्धति में लिखना आरम्भ किया और जिन्होंने प्रथम बार आर्यभट्ट की कृतियों पर ६२९ में आर्यभटीयभाष्य टीका लिखी थी, ने कुसुमपुरा की पहचान पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) के रूप में की है।
पाँचवीं-छठी शताब्दी के महान गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ वराहमिहिर की जीवनी को आधार बनाया जाए तो वराहमिहिर के पिता आदित्यदास ने मिहिर को ज्योतिष विद्या सिखाई तथा उन्हें खगोल विज्ञान और गणित का ज्ञान लेने के लिए कुसुमपुर (पटना) भेजा, जहां वे महान खगोलज्ञ और गणितज्ञ आर्यभट्ट से मिले। इससे उसे इतनी प्रेरणा मिली कि उसने ज्योतिष विद्या और खगोल ज्ञान को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया।
इतनी पथ प्रदर्शक एवम सटीक जानकारी उपलब्ध होने के बाद भी अजीबों गरीब उदाहरणों से इतिहास को उलझाने की कुचेष्टा इन तथाकथित ज्ञानियों द्वारा दी गई है, जो इस प्रकार है।
जन्म संबंधित अजीब से तर्क…
१. जन्म स्थान की वास्तविक जानकारी होने के वावजूद भी अजीब विवाद बनाए गए हैं। कुछ मानते हैं कि आर्यभट नर्मदा और गोदावरी के मध्य स्थित क्षेत्र में पैदा हुए थे, जिसे अश्मक के रूप में जाना जाता था और वे अश्माका की पहचान मध्य भारत से करते हैं जिसमे महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश शामिल है, हालाँकि आरंभिक बौद्ध ग्रन्थ अश्माका को दक्षिण में, दक्षिणापथ या दक्खन के रूप में वर्णित करते हैं, जबकि अन्य ग्रन्थ वर्णित करते हैं कि अश्माका के लोग अलेक्जेंडर से लड़े होंगे, इस हिसाब से अश्माका को उत्तर की तरफ और आगे होना चाहिए। ये हुआ पहला विवाद, जो वे स्वयं के तर्क में फंसते हुए साफ दिख रहे हैं।
२. एक अध्ययन के अनुसार आर्यभट, केरल के चाम्रवत्तम के निवासी थे। अध्ययन के अनुसार अस्मका एक जैन प्रदेश था जो कि श्रवणबेलगोल के चारों तरफ फैला हुआ था और यहाँ के पत्थर के खम्बों के कारण इसका नाम अस्मका पड़ा। चाम्रवत्तम इस जैन बस्ती का हिस्सा था, इसका प्रमाण है भारतापुझा नदी जिसका नाम जैनों के पौराणिक राजा भारता के नाम पर रखा गया है। आर्यभट ने भी युगों को परिभाषित करते वक्त राजा भारता का जिक्र किया है- दसगीतिका के पांचवें छंद में राजा भारत के समय तक बीत चुके काल का वर्णन आता है। उन दिनों में कुसुमपुरा में एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था जहाँ जैनों का निर्णायक प्रभाव था और आर्यभट का काम इस प्रकार कुसुमपुरा पहुँच सका और उसे पसंद भी किया गया। यह है दूसरा विवाद किसी रचनाकार की रचना में कितने ही राजा या स्थान का नाम आ सकता है। तथा कोई भी व्यक्ति, रचनाकार या ज्योतिषाचार्य अपनी जरूरतों के हिसाब से अथवा खोज के लिए अपने जीवन में कितनी ही बार स्थान परिवर्तन कर सकता है। हालांकि ये जगजाहिर कि ज्योतिषीय दृष्टि से पृथ्वी का हर भाग अपना अलग महत्व रखता है, इसलिए काफी हद तक यह निश्चित है कि आर्यभट किसी न किसी समय अन्य राज्यों में अपनी खगोलीय खोज के लिए गए ही होंगे और उन्होंने अपनी कृति में वहां के राजा आदि का उल्लेख किया होगा।
३. आर्यभट अपनी खगोलीय प्रणालियों के लिए सन्दर्भ के रूप में श्रीलंका का उपयोग करते थे और आर्यभटीय में अनेक अवसरों पर श्रीलंका का उल्लेख किया है। तो क्या उन्हें श्रीलंका का मान लें???
कृतियाँ…
आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। ‘दशगीतिका’, ‘आर्यभटीय’ और ‘तंत्र’। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था, ‘आर्यभट सिद्धांत’। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ के सातवें शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती।
उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। उन्होंने अपने आर्यभटीय नामक ग्रन्थ में कुल ३ पृष्ठों के समा सकने वाले ३३ श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा ५ पृष्ठों में ७५ श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित कींं।
उनकी प्रमुख कृति, आर्यभटीय, गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है। आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। इसमे सतत भिन्न (कँटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण (क्वाड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग (सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और ज्याओं की एक तालिका (Table of Sines) शामिल हैं।
आर्य-सिद्धांत, खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है जो अब लुप्त हो चुका है, इसकी जानकारी हमें आर्यभट के समकालीन व शिष्य वराहमिहिर के लेखनों से प्राप्त होती है, साथ ही साथ बाद के गणितज्ञों और टिप्पणीकारों के द्वारा भी मिलती है जिनमें शामिल हैं ब्रह्मगुप्त और भास्कर प्रथम। ऐसा प्रतीत होता है कि ये कार्य पुराने सूर्य सिद्धांत पर आधारित है और आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है। इसमे अनेक खगोलीय उपकरणों का वर्णन शामिल है, जैसे कि नोमोन(शंकु-यन्त्र), एक परछाई यन्त्र (छाया-यन्त्र), संभवतः कोण मापी उपकरण, अर्धवृत्ताकार और वृत्ताकार (धनुर-यन्त्र / चक्र-यन्त्र), एक बेलनाकार छड़ी यस्ती-यन्त्र, एक छत्र-आकर का उपकरण जिसे छत्र-यन्त्र कहा गया है और कम से कम दो प्रकार की जल घड़ियाँ-धनुषाकार और बेलनाकार।
एक तीसरा ग्रन्थ जो अरबी अनुवाद के रूप में अस्तित्व में है, अल न्त्फ़ या अल नन्फ़ है, आर्यभट के एक अनुवाद के रूप में दावा प्रस्तुत करता है, परन्तु इसका संस्कृत नाम अज्ञात है। संभवतः ९वीं सदी के अभिलेखन में, यह फारसी विद्वान और भारतीय इतिहासकार अबू रेहान अल-बिरूनी द्वारा उल्लेखित किया गया है।
संक्षेप में…
जन्म वर्ष : ४७६
जन्म स्थान : कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) पटना, बिहार।
देहांत : ५५० (उम्र ७३-७४)
युग : गुप्त काल
मुख्य रुचियाँ : गणित, खगोलशास्त्र,
मुख्य कृतियाँ : आर्यभटीय, आर्यभट्ट सिद्धांत, तंत्र, दशगीतिका।
आर्यभट से प्रभावित कुछ महान विद्वान : वराहमिहिर, भास्कराचार्य, अरबी विद्वान अल-ख्वारिज्मी, अरबी विद्वान अल-बिरूनी, अरबी स्पेन वैज्ञानिक अल-झर्काली, उमर खय्याम, कोपर्निकस, फ्रांसीसी गणितज्ञ जार्ज इफ्रह, अरबी मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी, वैज्ञानिक गुइलौम ले जेंटिल, यूनानी गणितज्ञ एराटोसथेंनस आदि।