गरूड़ पुराण के अनुसार, पाप और पुण्य के मध्य फंसकर जीवात्मा को यमलोक गमन पर निकलना पड़ता है। मृत्यु के बाद यमलोक के यमदूतों को देख जीवात्मा कांप उठती है, तड़पने लगती है, रोने लगती है, परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक की यात्रा पर ले जाते हैं और उन रास्तों पर उन्हें भीषण दर्द का सामना करना पड़ता है। इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा कर देते हैं। इसी प्रकार की और भी बहुत सी बातें में उसमें वर्णित है। यमराज के दरबार में जीवात्मा के कर्मों का हिसाब होता है। उस हिसाब को रखने की सारी जिम्मेदारी यमराज के सहयोगी भगवान चित्रगुप्त के पास सुरक्षित रहता है। भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी लेखा पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार भोग प्राप्त होता है।
परिचय…
सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान श्रीविष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल पुष्प निकला, जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये। इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व·अप्सरा, स्त्री-पुरूष, पशु-पक्षी आदि का निर्माण किया। इसी क्रम में यमराज का उदय हुआ, जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग परमपिता श्री ब्रह्माजी से की तो ब्रह्माजी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ, उस दिन वैशाख शुक्ल सप्तमी की तिथि थी। इस पुरूष का जन्म ब्रह्माजी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।
स्वरूप एवम कार्य…
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है।
परिजन…
ब्रह्मदेव के १७ मानस पुत्र हैं, और वे सभी ब्रह्मदेव के पुत्र होने के कारण ब्राह्मण कहलाए। उन्हीं में से भगवान चित्रगुप्त भी एक हैं। इनकी दो पत्नियां हैं, पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा/नंदनी जो ब्राह्मण कन्या हैं, इनसे उन्हें ४ पुत्र हुए, भानू, विभानू, विश्वभानू और वीर्यभानू कहलाए। दूसरी पत्नी एरावती/शोभावति ऋषि कन्या थी, इनसे ८ पुत्र हुए जो चारु, चितचारु, मतिभान, सुचारु, चारुण, हिमवान, चित्र और अतिन्द्रिय कहलाए।
पूजा…
कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें। और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें। यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है।
कथा…
सौराष्ट्र में एक राजा हुए जिनका नाम सौदास था। राजा अधर्मी और पाप कर्म करने वाला था। इस राजा ने कभी को पुण्य का काम नहीं किया था। एक बार शिकार खेलते समय जंगल में भटक गया। वहां उन्हें एक ब्रह्मण दिखा जो पूजा कर रहे थे। राजा उत्सुकतावश ब्रह्ममण के समीप गया और उनसे पूछा कि यहां आप किनकी पूजा कर रहे हैं। ब्रह्मण ने कहा आज कार्तिक शुक्ल द्वितीया है इस दिन मैं यमराज और चित्रगुप्त महाराज की पूजा कर रहा हूं। इनकी पूजा नरक से मुक्ति प्रदान करने वाली है। राजा ने तब पूजा का विधान पूछकर वहीं चित्रगुप्त और यमराज की पूजा की।
काल की गति से एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने आ गये। दूत राजा की आत्मा को जंजीरों में बांधकर घसीटते हुए ले गये। लहुलुहान राजा यमराज के दरबार में जब पहुंचा तब चित्रगुप्त ने राजा के कर्मों की पुस्तिका खोली और कहा कि हे यमराज यूं तो यह राजा बड़ा ही पापी है इसने सदा पाप कर्म ही किए हैं परंतु इसने कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को हमारा और आपका व्रत पूजन किया है अत: इसके पाप कट गये हैं और अब इसे धर्मानुसार नरक नहीं भेजा जा सकता। इस प्रकार राजा को नरक से मुक्ति मिल गयी।