क्या आप जानते हैं कि स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? तो आइए हम बताते हैं, प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी गणेश वासुदेव मावलंकर जी भारतीय लोकसभा के जनक और अध्यक्ष थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई संसदीय परम्पराएँ स्थापित की थीं। आइए आज हम उनके जन्मदिवस पर उन्हें याद करते हैं…
परिचय…
दादा साहेब के नाम से जाने जाने वाले श्री गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म २७ नवम्बर, १८८८ को बड़ोदरा में हुआ था। उनके पूर्वज महाराष्ट्र में रत्नागिरि के रहने वाले थे। मावलंकर जी की उच्च शिक्षा के लिए अहमदाबाद आए जहां उन्होंने बीए की परीक्षा गुजरात कॉलेज से उत्तीर्ण कर बंबई अा गए जहां कानून कि डिग्री बंबई यूनिवर्सिटी से प्राप्त की।
कार्य…
शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने अहमदाबाद से अपनी वकालत प्रारम्भ की और साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। शीघ्र ही वे सरदार वल्लभ भाई पटेल और गांधीजी के प्रभाव में आ गए। उन्होंने खेड़ा सत्याग्रह में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।वर्ष १९२१ में वे असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हुए।
राजनीति में प्रवेश…
उन्होंने वकालत छोड़ दी तथा गुजरात विद्यापीठ में एक अवैतनिक प्राध्यापक के रूप में नौकरी करने लगे। इसी वर्ष वे अहमदाबाद कांग्रेस स्वागत समिति के सचिव थे। साथ ही वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के भी सचिव रहे। नमक सत्याग्रह के लिए उन्हें कारावास की सज़ा मिली। इसके अलावा उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी अनेकों बार जेल जाना पड़ा। मगर अपने व्यवहार के अनुरूप यहां भी वे दुर्दम्य अपराधियों को सुधारने का कार्य करते थे। कालांतर में उनका प्रवेश राजनीति में हुआ। पहले पहल वे अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष बने। वर्ष १९३७ में बम्बई व्यवस्थापिका परिषद के सदस्य चुने गए। वर्ष १९४६ में गणेश वासुदेव मावलंकर जी केंद्रीय व्यवस्थापिका के सदस्य चुने गए। उसके बाद उन्हें केन्द्रीय असेम्बली का अध्यक्ष बना दिया गया। स्वतंत्रता पश्चात उन्हें सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष (स्पीकर) चुना गया। वर्ष १९५२ के पहले सार्वजनिक चुनाव के बाद उन्हें पुनः अध्यक्ष पद मिला। अपनी अध्यक्षता की इस दीर्घ अवधि में मावलंकर जी ने सदन के संचालन में नए मानदंडों की स्थापना की।
सामाजिक कार्य…
पंढरपुर के प्रसिद्ध मंदिर में हरिजनों के प्रवेश के लिए हुए सत्याग्रह के नेता मावलंकर ही थे। खादी आदि रचनात्मक कार्यों में इनका निरंतर सहयोग रहा। मावलंकर ने साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए अहमदाबाद में आगे बढ़कर भाग लिया। वे संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे। ‘कस्तूरबा स्मारक निधि’ और ‘गांधी स्मारक निधि’ के अध्यक्ष के रूप में भी इनकी सेवाएँ स्मरणीय हैं। उन्होंने मराठी, गुजराती और अंग्रेज़ी भाषा में अनेक ग्रन्थ भी लिखे हैं। श्रीमद्भागवदगीता को मानने वाले भारत की इस महान् विभूति का निधन २७ फ़रवरी, १९५६ को निधन हो गया।