‘बचपन बचाओ आंदोलन’ को चलाने वाले…
का जन्म मध्यप्रदेश के विदिशा में ११ जनवरी १९५४ को हुआ था … वे पेशे से विद्युत इंजीनियर थे मगर २६ वर्ष की आयु में ही नौकरी छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था।
उन्होंने १९८० में बचपन बचाओ आन्दोलन की स्थापना की और उसके बाद से वे विश्व भर के १४४ देशों के ८३,००० से अधिक बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य कर चुके हैं। श्री सत्यार्थी के कार्यों के कारण ही वर्ष १९९९ में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ द्वारा बाल श्रम की निकृष्टतम श्रेणियों पर संधि सं॰ १८२ को अंगीकृत किया गया, जो अब दुनियाभर की सरकारों के लिए इस क्षेत्र में एक प्रमुख मार्गनिर्देशक है।
१९९३, में अशोक फेलो चुने गए। (अमेरिका)
१९९४, दी अचेनर अंतर्राष्ट्रीय शान्ति पुरस्कार, जर्मनी
१९९५, ट्रम्पेटर पुरस्कार (अमेरिका)
१९९५, रोबर्ट एफ॰ कैनेडी मानवाधिकार पुरस्कार
१९९८, गोल्डेन फ्लैग पुरस्कार (नीदरलैण्ड्स)
२००२, वालेनबर्ग मेडल (मिशिगन विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत्त)
२००६, फ्रीडम पुरस्कार (US)
२००७, इतालवी सीनेट का पदक
२००७,अमेरिका के स्टेट विभाग द्वारा ‘आधुनिक दासता को समाप्त करने के लिये कार्यरत नायक’ का सम्मान
२००८, अल्फोंसो कोमिन अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार
२००९, लोकतंत्र के रक्षक पुरस्कार
२०१४,नोबेल शान्ति पुरस्कार
२०१५, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित पुरस्कार “ह्युमेनीटेरियन पुरस्कार ” से सम्मानित। यह पुरस्कार सबसे पहले भारत में सत्यार्थी को प्राप्त हुआ है।
उनके कार्यों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों व पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। इन पुरस्कारों में वर्ष २०१४ का नोबेल शान्ति पुरस्कार भी शामिल है जो उन्हें पाकिस्तान की नारी शिक्षा कार्यकर्ता मलाला युसुफ़ज़ई के साथ सम्मिलित रूप से प्रदान किया गया है
इस समय वे ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ (बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं।
श्री सत्यार्थी को उनके जन्मदिवस पर अश्विनी राय ‘अरुण’ का कोटि कोटि नमन।