वर्ष १६८९ में जब मुगल शासक औरंगजेब के द्वारा छत्रपति सम्भाजी की हत्या करवा दिये जाने के बाद मात्र १९ वर्ष की आयु में छत्रपति शिवाजी व उनकी तीसरी पत्नी द्वारा जन्में तथा छत्रपति सम्भाजी के सौतेले भाई राजाराम राजे भोंसले मराठा साम्राज्य के तृतीय छत्रपति बने। आज हम राजाराम राजे के बारे में विस्तार से जानेंगे। वैसे तो उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा, परंतु जितना भी रहा वे उसमें अधिकांश समय अपने पिता तथा बड़े भाई की तरह मुगलों से युद्ध लड़ते ही रहे…
परिचय…
राजाराम राजे भोंसले का जन्म २४ फरवरी, १६७० को रायगढ़ दुर्ग में मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज व उनकी तीसरी पत्नी सोयराबाई मोहिते के यहां हुआ था। राजाराम राजे का विवाह जानकीबाई, ताराबाई, राजसबाई तथा अम्बिकाबाई से हुआ था। जिनसे उन्हें राजा कर्ण, शिवाजी द्वितीय एवम संभाजी द्वितीय तीन पुत्र हुए। यह सारे विवाह राजनीतिक पृष्ठभूमि पर तय हुए थे।
राज्याभिषेक…
जब बड़े भाई छत्रपति सम्भाजी को मुगलों ने बन्दी अवस्था में मार डाला तथा उनके पुत्र शाहू जी को भी वर्ष १६८९ ई. में औरंगज़ेब के बन्दी हो गए तब शिवाजी के द्वितीय पुत्र राजाराम राजे का नए छत्रपति के रूप में १९ फरवरी, १६८९ ई. में राज्याभिषेक किया गया। राजाराम राजे के कुशल प्रशासन के पीछे प्रह्लाद, नीराजी, रामचन्द्र, परशुराम, त्र्यम्बकराव दाभाड़े, शंकर जी नारायण, संताजी घोरपड़े, धनाजी जादव आदि का हाथ था। राजाराम राजे के प्रशासन के प्रारम्भिक दस वर्षों को मराठा इतिहास का संक्रान्ति काल माना जाता है।
मुगलों का आक्रमण…
औरंगज़ेब मराठा शक्ति को पूर्णत: कुचलने के लिए दक्षिण में डेरा डाले हुए था। संघर्ष के आरम्भिक चरण में औरंगज़ेब ने सेनापति ज़ुल्फ़िक़ार ख़ाँ को रायगढ़ पर आक्रमण का आदेश दिया। सम्भाजी की विधवा येसूबाई ने पुत्र समान देवर राजाराम को विशालगढ़ के सुरक्षित किले में भेजकर मराठा सेना की कमान स्वयं सम्भाल ली। उनके पराक्रम एवं शौर्य से मुगल सेना को कई जगह मात खानी पड़ी, परंतु एक अधिकारी सूर्यजी पिसालीघा के विश्वासघात की वजह से मुगलों ने रायगढ़ के किले पर अधिकार कर लिया। येसूबाई एवं उनके पुत्र शाहू जी सहित अनेक मराठा सरदारों को कैद कर लिया गया।
राजाराम का पलायन…
राजाराम राजे भिखारी के वेश में नगर से निकले तथा काफी साहसिक यात्रा के बाद कर्नाटक में जिंजी पहुंचे। जब औरंगज़ेब को इसका पता चला तो उसने जुल्फ़िकार ख़ाँ को जिंजी दुर्ग पर आक्रमण करने के लिए भेजा। परंतु लगभग आठ वर्ष के घेरे के बाद भी मुगलों को सफलता हांथ नहीं लगी।
पंत प्रतिनिधि…
‘पंत प्रतिनिधि’ मराठा साम्राज्य में पेशवा से भी उच्च पद था। यह नया पद राजाराम राजे ने जिंजी के दुर्ग में रहते समय सृजित किया, परंतु शाहू जी के समय में पंत प्रतिनिधि के पद का महत्त्व घट गया और पेशवा पद का महत्त्व एक बार फिर बढ़ गया।
अपनी बात…
राजाराम राजे ने बाद के दिनों में सतारा को अपनी राजधानी बनाया था। मुगलों ने सतारा पर भी लगातार आक्रमण किया और अन्तत: उसे जीतकर अपने अधीन कर लिया। मुगलों से युद्ध करते हुए राजाराम राजे ने ३० वर्ष की अल्पायु में ही १२ मार्च, १७०० ई. को अपने प्राण त्याग दिए। एक बार फिर से मराठा साम्राज्य के आसमान पर काले मेघ घिरने लगे। मगर शिवाजी की प्रेरणा से कालांतर में मराठा शक्ति एक बार पुनः उसी तरह खड़ी हो गई, जिस तरह रायगढ़ में मुगलों ने सम्भाजी के परिवार को, जिसमें उनका बहुत छोटा पुत्र शाहू जी भी थे, पकड़ लिया, उस समय ऐसा प्रतीत होने लगा कि मराठा शक्ति पूर्ण रूप से विध्वंस हो गई। परन्तु वह भावना, जिससे शिवाजी ने अपने लोगों को प्रेरित किया था, इतनी आसानी से नष्ट नहीं हो सकती थी, उठ खड़ी हुई थी।
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