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महर्षि कश्यप की पहली पत्नी अदिति से उत्पन्न हुए पुत्रों को आदित्य कहा जाता है, ये बारह हैं। इंद्र (देवताओं के राजा), विवस्वान् (सूर्य देव), पर्जन्य (मेघों के नियंत्रक), त्वष्टा (सूर्य को छांटने वाला), पूषा (अन्न देवता), अर्यमा (सौर-देवता), भग-आदित्य (प्राणियों अंग), धाता (प्रजापति), मित्र (तप के देवता), अंशुमान् (प्राण तत्त्व पवन देव), वरुण (जल देवता) और वामन देव। ३३ कोटि (प्रकार) देवी देवताओं में १२ आदित्य हैं। आज हम इन्हीं आदित्यों में से एक वामन देव के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे…

वामन अवतार की कथा…

राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य की सेवा सच्चे हृदय से करते थे, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने यज्ञ कराया। इस महान यज्ञ में अग्नि से दिव्य रथ, अक्षय त्रोण, अभेद्य कवच प्रकट हुए। जिसे पाकर आसुरी सेना अमरावती पर चढ़ दौड़ी। इन्द्र उन्हें देखते ही समझ गए कि देवता इस सेना का सामना नहीं कर सकेंगे। बलि ब्रह्मतेज से पोषित थे। देवगुरु के आदेश से देवता स्वर्ग छोड़कर भाग गये। अमरधाम अब असुर की राजधानी बन गया। शुक्राचार्य ने बलि का इन्द्रत्व स्थिर करने के लिये अश्वमेध यज्ञ कराना प्रारम्भ किया। सौ अश्वमेध करके बलि नियम सम्मत इन्द्र बन जायँगे। फिर उन्हें कौन हटा सकता है।

वामन देव का जन्म…

देवमाता अदिति यह जानकर अत्यन्त दुखी थीं। उन्होंने अपने पति महर्षि कश्यप से प्रार्थना की, ‘स्वामी, मेरे पुत्र मारे-मारे फिरते हैं।’ यह सुनकर महर्षि ने सीधे भगवान की शरण ली और इधर अदिति ने फाल्गुन के शुक्ल पक्ष में बारह दिन पयोव्रत करके भगवान की आराधना की। अदिति को वरदान स्वरूप भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान अदिति के गर्भ से प्रकट हुए। (जिस स्थान पर वामन देव का जन्म हुआ था, वह स्थान आज बिहार राज्य अंतर्गत बक्सर के ठोरा नदी और गंगा के संगम पर स्थित है।) प्रकट होते ही वे तत्काल वामन ब्रह्मचारी बन गये। महर्षि कश्यप ने अन्य ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार सम्पन्न किया। भगवान वामन पिता की आज्ञा लेकर राजा बलि के यहाँ चल दिए। उस समय राजा बलि अश्वमेध-यज्ञ में दीक्षित थे और यह यज्ञ उनका अन्तिम अश्वमेध था।

तीन पद भूमि…

छत्र, पलाश, दण्ड तथा कमण्डलु लिये, जटाधारी, अग्नि के समान तेजस्वी वामन ब्रह्मचारी वहाँ पधारे। राजा बलि, शुक्राचार्य, ऋषिगण, सभी उस तेज से अभिभूत अपनी अग्नियों के साथ उठ खड़े हुए। राजा बलि ने उनके चरण धोये, पूजन किया और प्रार्थना की कि जो भी इच्छा हो, वह उनसे मांग सकते हैं। यह बात सुनकर वामन देव ने कहा, ‘मुझे अपने पैरों से तीन पद भूमि चाहिये!’ राजा बलि ने बहुत आग्रह किया कि कुछ और माँगा लें, परंतु वामन देव अपने उसी मांग पर अड़े रहे। शुक्राचार्य ने पहचान लिया और राजा बलि को सावधान किया, ‘ये साक्षात विष्णु हैं!’ उन्होंने समझाया कि इनके छल में आने से सर्वस्व चला जायगा। परंतु राजा बलि स्थिर रहे, उन्होंने आचार्य से कहा, ‘ये कोई हों, महान तपस्वी प्रह्लाद का पौत्र देने को कहकर अस्वीकार नहीं करेगा!’ इस पर आचार्य ने ऐश्वर्य-नाश का शाप दे दिया। परंतु बलि ने भूमिदान का संकल्प ले लिया और वामन देव विराट हो गये। एक पद में उन्होंने सारी पृथ्वी, दूसरे पद में स्वर्गादि समस्त लोक तथा शरीर से समस्त नभ व्याप्त कर लिया। उनका वाम पद ब्रह्मलोक के ऊपर तक गया। उनके अंगुष्ठ-नख से ब्रह्माण्ड का आवरण तनिक टूट गया। ब्रह्मद्रव वहाँ से ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट हुआ। ब्रह्माजी ने भगवान का चरण धोया और चरणोदक के साथ उस ब्रह्मद्रव को अपने कमण्डलु में ले लिया। वही ब्रह्मद्रव कालांतर में माता गंगा के नाम से तीनों लोकों में प्रतिष्ठित हुआ। अपने दो पद में समस्त ब्रह्माण्ड नाप लेने के बाद वामन देव ने राजा बलि से पूछा, ‘तीसरा पद रखने को स्थान कहाँ है?’ राजा बलि भी वचन के पक्के थे, उन्होंने कहा, ‘इसे मेरे मस्तक पर रख लें।’ यह कहकर राजा बलि ने अपना मस्तक झुकाया। वामन देव ने वहाँ चरण रखा। भगवान राजा बलि से बेहद प्रसन्न हुए, उन्होंने कहा ‘हे बलि! तुम अगले मन्वन्तर में इन्द्र बनोगे। तब तक सुतल में निवास करो और मैं नित्य तुम्हारे द्वार पर गदापाणि उपस्थित रहूँगा।’ प्रह्लाद के साथ बलि सब असुरों को लेकर स्वर्गाधिक ऐश्वर्य सम्पन्न सुतल लोक में पधारे। शुक्राचार्य ने भगवान के आदेश से यज्ञ को पूरा किया।

इस तरह महेन्द्र को स्वर्ग प्राप्त हुआ। ब्रह्मा जी ने भगवान वामन को ‘उपेन्द्र’ पद प्रदान किया। वे इन्द्र के रक्षक होकर अमरावती में अधिष्ठित हुए।

विशेष…

पुराणेतिहास चर्चित भगवान विष्णु के पाँचवे अवतार वामन देव की अवतार स्थली बिहार के बक्सर के ठोरा नदी और गंगा के संगम पर स्थित है। आज इस पावन स्थल पर केंद्रीय कारावास स्थित है, जिसे किसी समय में अंग्रेजों द्वारा अतिक्रमित कर बनवाया था। बड़े अफसोस की बात है कि भगवान वामन और उनके अराध्य देवाधिदेव वामनेश्वर महादेव बक्सर के इसी केंद्रीय कारावास में वर्षो से सजा काट रहे हैं, जो कि सनातनी समाज के माथे पर कलंक के समान है।

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