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रत्नेश्वर महादेव मंदिर यानी मातृ-ऋण महादेव अथवा वाराणसी का झुका हुआ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर अच्छी तरह से संरक्षित है, इसके बावजूद भी उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर झुका हुआ है और इसका गर्भगृह आमतौर पर गर्मियों के दौरान कुछ महीनों को छोड़कर, वर्ष के अधिकांश समय में पानी में डूबा हुआ होता है। रत्नेश्वर महादेव मंदिर काशी के मणिकर्णिका घाट पर स्थित है और कुल नौ अंश (डिग्री) तिरछा झुका हुआ है।

स्थापत्य…

मंदिर का निर्माण शास्त्रीय शैली में नागर शिखर और फामसन मंडप के साथ किया गया है, परंतु उसका स्थान बहुत ही असामान्य है क्योंकि गंगा के तट पर अन्य सभी मंदिरों के विपरीत, यह मंदिर बहुत निचले स्तर पर बनाया गया है, जिसके कारण जल स्तर मंदिर के शिखर के निचले भाग तक पहुंच जाता है।

निर्माण…

यह मंदिर बहुत कम स्थान पर बनाया गया था, मगर यह इतने निचले स्तर पर बनाया गया है कि इसके गर्भगृह में वर्ष भर जल भरा रहता है। यह आज तक समझ से परे रहा है कि निर्माता ने यह मंदिर का निर्माण क्यों करवाया था। वर्ष के अधिकांश समय के दौरान मंदिर का अधिकांश भाग पानी के नीचे रहता है, इसके बावजूद यह अच्छी तरह से संरक्षित है।

इतिहास…

मंदिर के निर्माण का वास्तविक समय आज भी अज्ञात है।

१. हालांकि, पुजारियों का दावा है कि इसे लगभग ५०० वर्ष पूर्व राजा मान सिंह के एक अनाम नौकर ने अपनी मां रत्ना बाई के लिए बनवाया था।

२. राजस्व अभिलेखों के अनुसार इसका निर्माण वर्ष १८२५ से १८३० के मध्य हुआ था।

३. जिला सांस्कृतिक समिति के डॉ. रत्नेश वर्मा के अनुसार इसका निर्माण अमेठी राजपरिवार ने करवाया था।

४. जेम्स प्रिंसेप, जो वर्ष १८२० से १८३० तक बनारस टकसाल में एक परख शास्त्री थे, ने चित्रों की एक श्रृंखला बनाई, जिनमें से एक में रत्नेश्वर महादेव मंदिर भी शामिल है। उन्होंने टिप्पणी की कि जब मंदिर का प्रवेश द्वार पानी के नीचे था, पुजारी पूजा करने के लिए पानी में गोता लगाते थे। यहां यह साबित होता है कि उस समय इस मंदिर में पूजा अर्चना आदि हुआ करते थे।

५. कुछ स्रोतों का दावा है कि १९वीं शताब्दी में ग्वालियर की रानी बैजा बाई द्वारा बनवाया गया था।

६. एक अन्य कथा के अनुसार इसे इंदौर की रानी अहिल्या बाई की एक महिला दासी रत्ना बाई ने बनवाया था। अहिल्या बाई ने उसे झुक जाने का श्राप दिया क्योंकि उसकी दासी ने इस मंदिर का नाम अपने नाम पर रखा था।

मंदिर की बनावट..

वर्ष १८६० के दशक के चित्रों में इमारत को झुका हुआ नहीं दिखाया गया है, जबकि आधुनिक चित्र लगभग नौ डिग्री का झुकाव दिखाते हैं, जो की प्रत्यक्षतः दिखाई पड़ता है। इमारत संभवतः झुकाव के लिए ही बनाया गया ही प्रतीत होता है। वर्ष २०१५ में बिजली गिरने से शिखर के कुछ तत्वों को साधारण क्षति हुई।

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