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एक समय की बात है, त्रिपुर नामक राक्षस ने एक लाख वर्षों तक प्रयाग में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से समस्त जड़-चेतन, जीव तथा देवता भयभीत हो गए। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजा। परंतु उन्हें असफलता ही हांथ लगी। अंततः ब्रह्माजी को स्वयं आना पड़ा। उन्होंने त्रिपुर से वर मांगने को कहा। त्रिपुर ने वर मांगा, ‘न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।’ इस वरदान को पाकर त्रिपुर निडर हो गया और अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं उसकी इतनी हिम्मत बढ़ गई कि उसने कैलाश पर चढ़ाई कर दी। परिणामत: महादेव तथा त्रिपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिवजी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया।

परिचय…

महादेव द्वारा त्रिपुरासुर के संहार की वजह से आज के दिन को ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ कहते हैं। यदि आज के दिन कृत्तिका नक्षत्र हो तो यह ‘महाकार्तिकी’ होती है, भरणी नक्षत्र होने पर विशेष फल देती है और रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। आज ही के दिन सन्ध्या समय भगवान श्रीविष्णु का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान आदि का फल दस यज्ञों के समान प्राप्त होता है। आज के दिन गंगा-स्नान, दीपदान, अन्य दानों आदि का विशेष महत्त्व है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे ‘महापुनीत पर्व’ कहा है। इसलिए इसमें गंगा स्नान, दीपदान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्त्व है। आज के दिन कृत्तिका पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो ‘पद्मक योग’ होता है जो पुष्कर में भी दुर्लभ है। इस दिन कृतिका पर चंद्रमा और बृहस्पति हो तो यह ‘महापूर्णिमा’ कहलाती है। इस दिन सन्ध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पूनर्जन्मादि कष्ट नहीं होता। इस तिथि में कृत्तिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान होता है।

दान…

साथ ही आज के दिन क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य है, क्षीरसागर का दान २४ अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है। इस उत्सव को दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है। आज के दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए।

माहत्यमय…

कार्तिक पूर्णिमा वर्ष की पवित्र संपूर्ण पूर्णमासियों में से एक है। कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि के समय व्रत करके वृष (बैल) दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से सम्पत्ति की बढ़ोतरी होती है। आज के दिन उपवास करके भगवान का स्मरण, चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। मेष (भेड़) दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है। कन्यादान से ‘संतान व्रत’ पूर्ण होता है। कार्तिकी पूर्णिमा से प्रारम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। कार्तिक के व्रत धारण करने वालों को ब्राह्मण भोजन, हवन तथा दीपक जलाने का भी विधान है। यमुनाजी में कार्तिक स्नान की समाप्ति करके राधा-कृष्ण का पूजन, दीपदान, शय्यादि का दान तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता है।

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