जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट का प्रमुख यासीन मलिक को दिल्ली की स्पेशल एनआईए कोर्ट ने २५ मई, २०२२ को कश्मीर में आतंकी हमलों के लिए फंडिंग और आतंकियों को हथियार मुहैया कराने से जुड़े कई केस में उम्र कैद की सजा सुनाई है। यासीन मलिक मूल रूप से श्रीनगर का रहने वाला है और उस पर ४ एयरफोर्स जवानों की हत्या समेत कई गंभीर आरोप हैं। यासीन मलिक का नाम पूर्व में कश्मीर में हिंसा की तमाम साजिशों में शामिल रहा है। इसके अलावा वह १९९० के हुए कश्मीरी पंडितों के पलायन का प्रमुख जिम्मेदार भी है।
परिचय…
३ अप्रैल, १९६६ को श्रीनगर के मायसूमा इलाके में जन्मा यासीन मलिक का पिता गुलाम कादिर मलिक एक सरकारी बस चालक था। यासीन मलिक की पढ़ाई श्रीनगर में हुई है और वह यहां के प्रताप कॉलेज का स्टूडेंट रहा। यासीन मलिक का परिवार अब विदेश में रहता है और वह लंबे समय से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है। वर्ष १९८० के दशक में यासीन मलिक ने आतंक का रास्ता अपनाया और ताला पार्टी नाम का एक राजनीतिक संगठन बनाया। सर्वप्रथम उसका नाम वर्ष १९८३ के इंडिया वेस्ट इंडीज मैच के दौरान गड़बड़ी करने के आरोप में सामने आया था। इसके बाद वर्ष १९८४ में वह पहली बार जेकेएलएफ के चीफ मकबूल भट की फांसी के बाद इस संगठन के लिए खुलकर सामने आया।
मकबूल भट को फांसी का विरोध…
मकबूल भट सोपोर (बारामूला) का रहने वाला था और यासीन को उसके करीबियों में जाना जाता था। वर्ष १९८४ में जब जज नीलकंठ गंजू की कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई, तो यासीन मलिक ने इसका जमकर विरोध किया। यासीन मलिक की ताला पार्टी ने कश्मीर में मकबूल भट को फांसी देने के फैसले के खिलाफ पोस्टर लगाए और प्रदर्शन किए। इस आरोप में यासीन मलिक को जेल भेज दिया गया। वर्ष १९८६ में यासीन मलिक ने जेल से निकलकर ताला पार्टी का नाम इस्लामिक स्टूडेंट लीग कर दिया और इससे कश्मीरी स्टूडेंट को जोड़ने की शुरुआत की। कुछ वक्त में इस्लामिक स्टूडेंट लीग का संगठन बड़ा हो गया और इसके साथ अशफाक वानी, जावेद मीर और अब्दुल हमीद शेख जैसे नाम भी जुड़े। अशफाक वानी का नाम वर्ष १९८९ के दौरान उस वक्त देश भर ने जाना जब उसने गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण किया।
कांग्रेस के खिलाफ प्रचार…
वर्ष १९८६ में राजीव गांधी की सरकार ने कश्मीर घाटी में गुलाम मोहम्मद शेख की सरकार को बर्खास्त किया और फिर कांग्रेस पार्टी ने फारूक अब्दुल्ला की नैशनल कॉन्फ्रेंस से हाथ मिला लिया। वर्ष १९८७ के जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के दौरान यासीन मलिक ने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट जॉइन कर लिया। इस संगठन ने कांग्रेस और नैशनल कॉन्फ्रेंस के खिलाफ जम्मू-कश्मीर में जमकर प्रचार किया। मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट का एक उम्मीदवार मोहम्मद युसूफ शाह भी था, जो कि श्रीनगर के आमीराकदल से उम्मीदवार बनाया गया। यासीन मलिक को मोहम्मद युसूफ शाह का बूथ एजेंट बनाया गया।
आमीराकदल के चुनाव का परिणाम घोषित होने के वक्त मोहम्मद युसूफ शाह दोपहर तक मतगणना में काफी आगे था और उसकी जीत तय थी। लेकिन जाने ऐसा क्या हुआ? बाद में मोहम्मद युसूफ को पराजित घोषित कर अमीराकदल से नैशनल कॉन्फ्रेंस कैंडिडेट गुलाम मोहिउद्दीन शाह को विजयी बना दिया गया। युसूफ शाह और यासीन मलिक को वर्ष १९८७ के इस चुनाव के बाद जेल में डाल दिया गया। जेल के रिहा होने के बाद मोहम्मद युसूफ शाह मोहम्मद एहसान डार के संपर्क में आया, जो कि हिज्बुल मुजाहिदीन का संस्थापक था। यूसुफ डार ने इसके बाद अपना नाम बदल लिया और खुद को सैयद सलाहुद्दीन घोषित कर लिया।
पीओके जाकर ट्रेनिंग…
वर्ष १९८८ में यासीन मलिक ने आतंक का रास्ता अपना लिया। उसने पाक अधिकृत कश्मीर जाकर आतंक की ट्रेनिंग ली और उसके बाद कश्मीर लौटकर जेकेएलएफ का एरिया कमांडर बन गया। वर्ष १९८९ तक यासीन मलिक जेकेएलएफ का एक प्रमुख चेहरा बन गया। उसने अशफाक वानी, हामिद शेख और जावेद अहमद मीर नाम के तीन आतंकियों के साथ मिलकर ‘हाजी’ नाम का एक गुट भी बनाया। यासीन मलिक का नाम वर्ष १९८९ में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण के दौरान आया। इस कांड का प्रमुख साजिशकर्ता अशफाक वानी था। ८ दिसंबर, १९८९ की इस घटना के बाद १३ दिसंबर को रुबैया को रिहा किया गया। रुबैया को दिल्ली लाने के एवज में सरकार ने सात आतंकियों को रिहा किया जिसका जमकर विरोध हुआ।
एयरफोर्स जवानों की हत्या…
रुबैया के अपहरण की घटना के बाद जनवरी १९९० में यासीन मलिक ने श्रीनगर में साथियों के साथ मिलकर ४ एयरफोर्स जवानों की हत्या की। इसी साल मार्च में यासीन मलिक के साथी अशफाक वानी को मार गिराया गया। इसके बाद अगस्त में यासीन को घायल हालत में गिरफ्तार किया गया। यासीन मलिक की गिरफ्तारी के बाद करीब ४ साल बाद उसे जमानत पर रिहा किया गया। मई १९९४ में रिहा हुए यासीन मलिक ने सीजफायर का ऐलान किया और कहा कि उसने गांधीवाद का रास्ता चुन लिया है। इसके जवाब में पाकिस्तान से उसकी आतंकी फंडिंग रोक दी और जेकेएलएफ ने संस्थापक अमानतुल्लाह खान ने उसे संगठन के अध्यक्ष पद से हटा दिया। बाद में यासीन ने जेकेएलएफ का एक अलग गुट भी बना लिया।
कश्मीर की आजादी की बात कहने वाले यासीन मलिक को जमानत के पांच साल बाद वर्ष १९९९ में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। इस गिरफ्तारी के वक्त उस पर पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट के तहत केस दर्ज किया गया। उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी। वर्ष २००२ में अटल बिहारी सरकार के दौरान उसे प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म ऐक्ट (POTA) के तहत गिरफ्तार किया गया। जेल से रिहा होने के बाद कूटनीतिक चाल के तहत उसने भारत और पाकिस्तान के तमाम राजनीतिक नेताओं से भेंट की।
मनमोहन सिंह से राउंड टेबल पर बैठक…
वर्ष २००६ में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यासीन मलिक समेत जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग संगठनों और पार्टियों के प्रतिनिधियों को अपने घर मुलाकात के लिए बुलाया। मनमोहन सिंह के साथ इन सभी की राउट टेबल पर बैठक हुई। जब यासीन मलिक मनमोहन सिंह से मिलने पहुंचा तो श्री सिंह ने उसका स्वागत गर्मजोशी से किया। इसके बाद यासीन मलिक ने वर्ष २००७ में सफर·ए·आजादी नाम से एक कैंपेन शुरु किया। यासीन ने इस अभियान के दौरान दुनिया भर के तमाम इलाकों में जाकर भारत विरोधी भाषण भी दिए। इसी सफर के दौरान वर्ष २०१३ में उसकी तस्वीर लश्कर·ए·तैयबा के चीफ हाफिज सईद के साथ भी सामने आई।
टेरर फंडिंग का केस…
वर्ष २०१६ में कश्मीर घाटी की हिंसा के दौरान पत्थरबाजी पर निर्णायक कार्रवाई करते हुए सरकार ने टेरर फंडिंग केस की जांच शुरू की। इस मामले में वर्ष २०१७ में यासीन मलिक को आरोपी बनाया गया। एनआईए की जांच के दौरान यासीन के खिलाफ कई अहम सबूत भी मिले। इसके अलावा कश्मीर समेत घाटी के कई इलाकों में उसकी अवैध संपत्तियों का पता भी चला था। इसी मामले में २५ मई, २०२२ को अदालत में स्पेशल जज NIA प्रवीण सिंह ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई।