जहां एक तरफ बॉलिवुड की तमाम बड़े नाम वाली फिल्में या तो बायकट हो रही हैं या फिर नाकामी की चादर ओढ़े कहीं मुंह छिपाए हुए हैं। इस बीच अनुराग कश्यप, तापसी पन्नू, अर्जुन कपूर आदि जैसे अड़ियल फिल्मकार जनता को ही चैलेंज देते हुए नजर आ रहे थे और फिर वो भी मुंह की खाकर बगल झांकने पर मजबूर हो गए। तो शाहरुख खान अपनी फिल्मों की रिलीज को आगे बढ़ाने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। मगर कश्मीर फाइल के बाद फिर एक बार कद्दावर अभिनेता अनुपम खेर ‘कार्तिकेय २’ लेकर आ गए। वैसे तो इसमें उनकी भूमिका अतिथि कलाकार की है, मगर उसके बाद भी उस फिल्म का आम जनता में बढ़िया क्रेज दिखाई पड़ रहा है।
अनुपम की अपनी बात…
अनुपम इन दिनों हिंदी के साथ तमिल, तेलुगु और मलयालम फिल्मों में भी काम कर रहे हैं। मगर सही मायनों में देखा जाए तो हिंदी सिनेमा से उनका नाता अब जैसे कट सा गया है, इस विषय पर उन्होंने स्वयं भी पत्रकारों के सामने अपनी बात रखी है, “आज कल मैं मेनस्ट्रीम सिनेमा का पार्ट नहीं हूं। मैं करण जौहर, साजिद नाडियाडवाला और आदित्य चोपड़ा की कोई भी फिल्म नहीं कर रहा हूं क्योंकि मुझे इनसे कोई ऑफर ही नहीं आ रहे हैं। मैं कभी इन सभी का फेवरेट हुआ करता था। मैंने इन सभी के साथ फिल्में की हैं। मैं इन्हें ब्लेम नहीं कर रहा हूं कि ये लोग मुझे अब कास्ट नहीं कर रहे। लेकिन ये लोग मुझे कास्ट नहीं कर रहे हैं इसलिए मैंने दूसरा रास्ता चुना है। मैंने तमिल फिल्म की जिसका नाम था ‘कनेक्ट’, फिर तेलुगु फिल्म की ‘टाइगर नागेश्वर राव’। फिर मैंने सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘ऊंचाई ’में काम किया। मैं बैठकर ये तो नहीं कह सकता कि अरे यार, मेरे दोस्त और मेरे जो इतने करीबी थे एक ज़माने में, मुझे अब अपनी फिल्मों में लेते नहीं हैं। तो मैं अब क्या करूं ,मैं तो बर्बाद हो गया। जाहिर है मुझे तकलीफ होती है, दुख होता है क्यूं नहीं लेते भाई? मैं तो इन सबकी फिल्मों में काम करता था। लेकिन ये शिकायत नहीं है और ना उनके खिलाफ है कुछ। बस मैं ये कहना चाह रहा हूं जब एक दरवाज़ा बंद होता है, तो बहुत सारे दरवाज़े खुल जाते हैं। मैं बतौर एक्टर एक बार फिर से खुद को डिस्कवर कर रहा हूं।” बॉलीवुड की फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर लगातार बुरा प्रदर्शन और साउथ की फिल्मों का जबरदस्त प्रदर्शन पर भी अनुपम खेर ने अपनी बात रखी, उन्होंने कहा, “आप दर्शकों के लिए फिल्म बनाते हैं। समस्या उस दिन से शुरू होती है जब आप अपने दर्शकों को कम आंकने लगते हैं। जैसे कि उनके लिए अच्छी फिल्में बनाकर हम उन पर एहसान कर रहे हों। मुझे लगता है उनका सिनेमा रेलिवेंट इसलिए है क्योंकि वो हॉलीवुड की नकल नहीं कर रहे। वो फिल्म के ज़रिए कहानी कहते हैं मगर हमारे यहां स्टार्स को फिल्मों के माध्यम से बेचा जाता है।” यह तो हुई अनुपम खेर की बात, उनकी ही जुब्बानी, मगर कुछ और भी कलाकार हैं, जो अर्श से फर्श पर कैसे आए किसी को पता ही नहीं चला। एक नजर उधर भी डाल लेते हैं, तब अपने आप समझ में आ जाएगा कि वास्तव में माजरा क्या हो सकता है?
माजरा…
बॉबी देओल एक इंटरव्यू में बताते हैं कि किसी समय उनकी बात १५-१६ फिल्म मेकर्स के साथ बात चल रही थी, फिर अचानक से धीरे धीरे सब पीछे हटते गए और अंत में उनके पास काम के नाम पर खालीपन और उदासी ही रह गई। अनुपम खेर के बाद यह एक और बानगी है, आखिर कैसे एक के बाद एक अति लोकप्रिय कलाकार जैसे गोविंदा, सनी देओल, बॉबी देओल, अनुपम खेर आदि धीरे धीरे बेरोजगार होते चले गए, या यों कहें कि किसी के इशारे पर बेरोजगार कर दिए गए। और फिर उदय होता है खान तिकड़ी का। जैसा कि आपने अनुपम खेर साहब के मन की बात को पढ़ा, उसे बॉबी देओल धीरे से कहते हैं और उसी बात को गोविंदा आश्चर्य के साथ कहते हैं। आप चाहें तो गोविंदा का कोई भी इंटरव्यू उठा देख सकते हैं, उन्हें समझ ही नहीं आता है कि आखिर उनके स्टारडम को एकाएक क्या हो गया? उनके इंटरव्यू में खीझ साफ़ दिखती है। इन सबसे अलग सनी देओल ने इस विषय पर गरिमामयी मौन धारण कर लिया है वे कुछ नहीं बोलते। बड़ी पीड़ा से कई बार उन्होंने यह स्वीकार किया कि कोई भी बड़ी अभिनेत्री उनके साथ काम करना ही नहीं चाहती है। जबकि किसी समय सनी देओल ही फिल्म इंडस्ट्री के अकेले ऐसे कलाकार थे जिनके अंदर किसी बड़े स्टार का भय नहीं था, वे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से कभी विचलित नहीं होते थे, बल्की दो कदम आगे बढ़कर चुनौती स्वीकार करते थे। एक जमाना ऐसा था, जब आमिर खान के सामने कोई फिल्म रिलीज़ करने का सहस नहीं करता था तब पहली बार यानि नब्बे के दशक में आमिर की फिल्म “दिल” के साथ सनी की घायल रिलीज़ हुई, उसके बाद राजा हिंदुस्तानी के साथ जीत रिलीज़ हुई, और फिर लगान के सामने ग़दर रिलीज़ हुई और सनी देओल की ये तीनों फिल्में अपने अपने समय में ब्लॉकबस्टर साबित हुई।
कारण…
यह वह समय था जब अंडरवर्ल्ड का पैसा फिल्मों में लग रहा था। फिल्म काला धन को सफेद करने का उत्तम साधन था। मगर अंडरवर्ल्ड वालों के लिए सनी देओल गले की फांस बन चुके थे। उनकी किसी भी फिल्म में ब्लैक मनी का कोई भी स्थान नहीं था, वे सही मायनों में अनब्रेकेबल थे, क्योंकि वे देश के साथ गद्दारी नहीं कर सकते थे। तब एक योजन के तहत सनी को अंडरवर्ल्ड ने जबरन बेरोजगार किया। अन्यथा दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले अभिनेता के पास काम की कमी कैसे हो सकती है?
फायदा किसे मिला…
सनी देओल के रेस से बाहर होने का सबसे अधिक फायदा सलमान खान को हुआ। जीत फिल्म में सनी के सामने सलमान की अदाकारी और एक्शन दोनों को आप देख सकते हैं। सनी की सारी एक्शन फिल्में एक के बाद एक सलमान खान को मिलने लगीं। किसी समय का फ्लॉप, कॉमेडियन और चौकलेटी अभिनेता आज का सुपरस्टार बन गया, और वो भी एक्शन फिल्मों की बदौलत। हम उस समय की बात कर रहे हैं, जिस समय एक्शन फिल्मों पर पांच सितारों का राज हुआ करता था – सनी देओल, संजय दत्त, अक्षय कुमार, अजय देवगन और सुनील शेट्टी। सनी देओल की कीमत पर सलमान खान सुपरस्टार बने।
साजिश…
अब बात को सिलसिलेवार ढंग से जानने की कोशिश करते हैं। बात शुरू होती है पाकिस्तान से, पाकिस्तान ने एक साजिश के तहत अपने यहाँ फिल्म इंडस्ट्री को पनपने ही नहीं दिया, परंतु भारतीय सिनेमा जगत में उनका निवेश सदा से ही रहा। पाकिस्तान में बहुत कम फिल्में बनती थीं और जो बनती थीं उनके केंद्र में “इस्लाम” रहता था। पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री शरिया पर आधारित होती रही, जिससे उन्हें धर्म की खुराक मिलती और मनोरंजन के लिए भारतीय सिनेमा उन्हें सदा ही उपलब्ध रहा करती थी। पाकिस्तान के भारतीय सिनेमा में निवेश ने ही फिल्मों के माध्यम से सॉफ्ट इस्लाम और इस्लामीकरण के दरवाजे खोले। यहीं से सिनेमा हिंदू विरोधी बनने लगा। आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि आज की फिल्मों में जो हिंदू विरोधी मानसिकता दिखाई जा रही है, उसका बीज आज से पचास साठ वर्ष पूर्व ही बोया गया था, जो समय के साथ विषधर वृक्ष बन गया और सनातनी आस्थाओं को कुचलने लगा है।
काला धन…
अब आते हैं, दूसरे भाग पर, और जो था मिशन का अगला चरण। अरबों रुपए की फिल्म इंडस्ट्री का पूर्ण इस्लामीकरण और उस पर जिहादी मानसिकता के लोगों का अतिक्रमण। इसके लिए बॉलिवुड काले धन के शोधन का सरल सुगम और सुरक्षित अड्डा बना। दाउद इब्राहिम के नाम पर पाकिस्तान ने बॉलिवुड पर कब्ज़ा जमाया। और पाकिस्तान के पीछे कौन था, इसे बताने की कोई जरूरत नहीं है, फिर भी यह जगजाहिर है कि सेक्स, व्यभिचार, अनाचार, भ्रष्टाचार को इस संसार में सिर्फ ISI ही नियंत्रित करती रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण फिल्म अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे हैं। जिन्होंने अपने बयान में कहा था कि वे आखिर कैसे उस समय के अपने पुरुष मित्र जो कि आज उनके पति हैं उनके सहयोग से अंडरवर्ल्ड के शिकंजे में फंसने से बची रहीं। परंतु क्या हर कोई सोनाली बेंद्रे जितना भाग्यशाली हो सकता है। अब आते हैं मूल बात पर, अंडरवर्ल्ड या यह यूं कहें कि पाकिस्तान या फिर आईएसआई का पैसा फिल्मों में लगता था और खास बात यह थी कि वे केवल मुस्लिम हीरो की फिल्मों में ही पैसा लगाते थे। जब सनी देओल उनके सामने फिल्म रिलीज़ करते थे तो उसका सीधा नुकसान अंडरवर्ल्ड/ISI को होता था। यहीं से सनी देओल और गोविंदा जैसे लोग निशाने पर आ गये।
गदर : एक प्रेम कथा या सनसनी…
गदर फिल्म के रिलीज़ के समय पाकिस्तानी मीडिया में सनी देओल एक सनसनी बन चुके थे। हर रोज कोई न कोई चैनल सनी देओल को लेकर बहस कर रहा होता था और उन्हें इस्लाम विरोधी और पाकिस्तान विरोधी के रूप में प्रोजेक्ट कर रहा होता था। और सही मायनों में सनी देओल का अंडरवर्ल्ड के निशाने पर आने का यह दूसरा कारण गदर ही था। जैसाकि आप सभी जानते हैं, पाकिस्तान में आज भी सनी देओल से नफरत का आलम यह है कि वहां होने वाले कॉमेडी शोज में सनी देओल के डुप्लीकेट को लेकर उनका जमकर उपहास बनाया जाता है। हिन्दू विहीन फिल्म इंडस्ट्री बनाने के लिए यह बेहद जरूरी था कि सनी देओल, गोविंदा और नाना पाटेकर जैसे महालोकप्रिय अभिनेताओं को इंडस्ट्री से अलग किया जाए। पाकिस्तानी ने इस कार्य को अपने निवेश के माध्यम से बखूबी से किया। धीरे धीरे इनको काम मिलना कम होने लगा और फिर लगभग बंद ही हो गया।
आज का बॉलिवुड…
आज मनोज बाजपेई, ओम पुरी, आशुतोष राणा, आशीष विद्यार्थी, मुकेश ऋषि जैसे मजे हुए कलाकारों की जगह कोई मुस्लिम, जैसे नवाजुद्दीन या फिर “पत्तल चटवा” को काम मिलता है। “पत्तल चटवा” यानि कुत्ता, जिनका काम होता है होली पर पानी बचाओ और दीपावली पर प्रदूषण मत फैलाओ का ज्ञान देना।