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एक नई सुबह का वादा

 

बीते साल की धुंधली यादें,

आँखों के कोरों में सिमट रही हैं।

कुछ अधूरे किस्से, कुछ अनकही बातें,

हवाओं के साथ कहीं दूर निकल रही हैं।

 

वक़्त की ये टिक-टिक साफ़ कहती है,

कि हर अंत ही एक नई शुरुआत है।

हाथ छूट रहे हैं आज सफर में बेशक,

पर ये बिछड़ना बस एक छोटी सी रात है।

 

खट्टी-मीठी यादों की पोटली बांधकर,

हम सबने अनुभवों के मोती बटोरे हैं।

कहाँ खत्म होता है यादों का ये सिलसिला,

हमने तो बस अभी बीते कल छोड़े हैं।

 

मुस्कुराकर विदा दो इस गुज़रते लम्हे को,

नम आँखों में सुनहरी उम्मीद सजाते हैं।

“फिर मिलेंगे” के इसी अटूट वादे के साथ,

चलो, आने वाले कल को गले लगाते हैं।

 

ये दूरियाँ तो महज़ एक पड़ाव हैं सफर का,

मंजिल पर मिलने का विश्वास अभी बाकी है।

साल बदल रहा है, पर साथ नहीं छूटेगा,

हमारी दोस्ती का नया इतिहास अभी बाकी है।

 

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

 

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