डॉ. प्रियंका के साथ हुआ वो तो जघन्य अपराध है। उस पर कोई माफी नहीं मिलनी चाहिए। इस पर जो हुआ अथवा जो पुलिस ने किया वो तो काबिले तारीफ है, यहाँ ऐसे ही होना चाहिए।
बात खत्म ? ? ?
नहीं अभी बात कहां खत्म!
अब बात शुरू होती है…
कुछ मुद्दे हैं जिन पर बात होनी चाहिए, शायद कुछ नया ही निकल जाए, कोई और मास्टरमाइंड हो जो इसमें शरीक हो और वो साफ बचा लिया गया हो। हो सकता है डॉ साहिबा के हाँथ कुछ ऐसा लग गया हो जो नहीं लगना चाहिए। आदि आदि…
पता नहीं क्यूँ मेरे मन में यह बात बार बार आ रही है की प्रियंका रेड्डी कोई गहरी साजिश के तहत निशाना तो नहीं बनाया गया…
१. टायर पंचर हुआ।
२. इतनी आसानी से अपहरण होना, जैसे कोई पहचान वाला साथ हो।
३. बलात्कार का होना और फिर जिन्दा जलाना जो कि समान्यत: इतना आसान नहीं होता।
४. बिना किसी बड़े आदमी के शामिल हुए और बिना किसी पूर्वनियोजित एवं लाभ के सिर्फ न्याय के लिए इन्काउन्डर करना यह भी कुछ अजीब सा लग रहा है।
५. आज भी कितने बलात्कारी हैं जो जेलों में अथवा बाहर आराम से बिरियानि उड़ा रहे हैं फिर सिर्फ इस केस में ही क्यों पुलिस इतनी जज़्बाती हो गई???
६. जिस बड़े साहब ने यह माहान कार्य किया है सामान्यतः इस पद का कोई अधिकारी अपने रूम से इतनी जल्दी बाहर नही निकलता और ना ही अपनी नौकरी को इतनी जल्दी दाव पर ही लगाता है और वो भी तब जब मुद्दा कोर्ट में हो।
७. मैं तो यही सोच रहा हूँ कि इतने बड़े अधिकारी का मौका-ए-वारदात पर जाना और इन्काउन्डर करना कुछ अटपटा सा नहीं जान पड़ता…अक्षयकुमार की जॉली एल.एल.बी. – २ फिल्म की तरह।
कुछ तो झोल है…और नहीं तो भारतीय पुलिस की मैं सराहना करता हूँ और बधाई देता हूँ…
नई परंपरा के आगाज के लिए।
भगवान करे की मेरे ये सारे अनुमान गलत हों और निर्णय और न्याय पुलिस के बंदूक की नली से निकल गई हो।
धन्यवाद !