नेपाल में एक रामायण अति प्रसिद्ध है, भानुभक्तीय रामायण। इस रामायण की रचना नेपाल के ही एक भक्त कवि भानुभक्त आचार्य ने नेपाली भाषा में रचा है। नेपाल का ऐसा कोई गाँव, नगर अथवा कस्वा नहीं है जहाँ भानुभक्त रामायण की पहुँच न हो। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भानुभक्त कृत रामायण नेपाल का ‘रामचरित मानस’ है। यह रामायण १८५३ ई. में पूरी हो गयी थी, किंतु अन्य जानकारों के अनुसार युद्धकांड और उत्तर कांड की रचना १८५५ ई. में हुई थी। भानुभक्त कृत रामायण की कथा अध्यात्म रामायण पर आधारित है। इसमें उसी की तरह के सात कांड हैं… बालकांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुंदरकांड, युद्धकांड और उत्तरकांड।
जन्म…
भानुभक्त जी का जन्म पश्चिमी नेपाल में चुँदी-व्याँसी क्षेत्र के रम्घा नामक गांव में २९ आसाढ़ संवत १८७१ तदनुसार 13 जुलाई, १८१४ ई. में हुआ था। उन्हें खस भाषा का आदिकवि माना जाता है। खस साहित्य के क्षेत्र में प्रथम महाकाव्य रामायण के रचनाकार भानुभक्त का उदय सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है।
भानुभक्त रामायण…
जैसा की हमने ऊपर कहा है, भानुभक्त कृत रामायण की कथा अध्यात्म रामायण पर आधारित है। इसमें उसी की तरह सात कांड हैं, बाल, अयोध्या, अरण्य, किष्किंधा, सुंदर, युद्ध और उत्तर।
बालकांड का आरंभ शिव-पार्वती संवाद से हुआ है। तदुपरांत ब्रह्मादि देवताओं द्वारा पृथ्वी का भारहरण के लिए विष्णु की प्रार्थना की गयी है। पुत्रेष्ठियज्ञ के बाद राम जन्म, बाल लीला, विश्वामित्र आगमन, ताड़का वध, अहिल्योद्धार, धनुष यज्ञ और विवाह के साथ परशुराम प्रसंग रुपायित हुआ है।
अयोध्या कांड में नारद आगमन, राज्याभिषेक की तैयारी, कैकेयी कोप, राम वनवास, गंगावतरण, राम का भारद्वाज और वाल्मीकि से मिलन, सुमंत की अयोध्या वापसी, दशरथ का स्वर्गवास, भरत आगमन, दशरथ की अंत्येष्ठि, भरत काचित्रकूट गमन, गुह और भारद्वाज से भरत की भेंट, राम-भरत मिलन, भरत की अयोध्या वापसी औ राम के अत्रि आश्रम गमन का वर्णन हुआ है।
अरण्यकांड में विराध वध, शरभंग, सुतीक्ष्ण और आगस्तमय से राम की भेंट, पंचवटी निवास, शूपंणखा-विरुपकरण, मारीच वध, सीता हरण और राम विलाप के साथ जटायु, कबंध और शबरी उद्धार की कथा है।
किष्किंधा कांड में सुग्रीव मिलन, वालि वध, तारा विलाप, सुग्रीव अभिषेक, क्रिया योग का उपदेश, राम वियोग, लक्ष्मण का किष्किंधा गमन, सीतानवेषण और स्वयंप्रभा आख्यान के उपरांत संपाति की आत्मकथा का उद्घाटन हुआ है।
सुंदर कांड में पवन पुत्र का लंका गमन, रावण-सीता संवाद, सीता से हनुमानकी भेंट, अशोक वाटिका विध्वंस, ब्रह्मपाश, हनुमान-रावण संवाद, लंका दहन, हनुमान से सीता का पुनर्मिलन और हनुमान की वापसी की चर्चा हुई है।
युद्ध कांड में वानरी सेना के साथ राम का लंका प्रयाण, विभीषण शरणागति, सेतुबंध, रावण-शुक संवाद, लक्ष्मण-मूर्च्छा, कालनेमिकपट, लक्ष्मणोद्धार, कुंभकर्ण एवं मेघनाद वध, रावण-यज्ञ विध्वंस, राम-रावण संग्राम, रावण वध, विभीषण का राज्याभिषेक, अग्नि परीक्षा, राम का अयोध्या प्रत्यागमन, भरत मिलन और राम राज्याभिषेक का चित्रण हुआ है।
उत्तरकांड में रावण, वालि एवं सुग्रीव का पूर्व चरित, राम-राज्य, सीता वनवास, राम गीता, लवण वध, अश्वमेघ यज्ञ, सीता का पृथ्वी प्रवेश और राम द्वारा लक्ष्मण के परित्याग के उपरांत उनके महाप्रस्थान के बाद कथा की समाप्ति हुई है।
कुछ समीक्षकों एवं रामायण के विद्वानों का कहना है कि भानुभक्त कृत रामायण अध्यात्म रामायण का अनुवाद है, किंतु यह संपूर्ण सत्य नहीं है। तुलनात्मक अध्ययन से साफ स्पष्ट होता है कि भानुभक्त कृत रामायण में कुल १३१७ पद हैं, जबकि अध्यात्म रामायण में ४२६८ श्लोक हैं। अध्यात्म रामायण के आरंभ में मंगल श्लोक के बाद उसके धार्मिक महत्व पर प्रकाश डाला गया है, किंतु भानुभक्त कृत रामायण सीधे शिव-पार्वती संवाद से शुरु हो जाती है। इस रचना में वे आदि से अंत तक अध्यात्म रामायण की कथा का अनुसरण करते प्रतीत होते हैं, किंतु उनके वर्णन में संक्षिप्तता है और यह उनकी अपनी भाषा-शैली में लिखी गयी है। यही उनकी सफलता और लोकप्रियता का कारण भी है और आधार भी।
भानुभक्त कृत रामायण में अध्यात्म रामायण के उत्तर कांड में वर्णित ‘राम गीता’ को सम्मिलित नहीं किया गया था। भानुभक्त के मित्र पं. धर्मदत्त ग्यावली को इसकी कमी खटक रही थी। विडंबना यह थी कि उस समय भानुभक्त मृत्यु शय्या पर पड़े थे। वे स्वयं लिख भी नहीं सकते थे। मित्र के अनुरोध पर महाकवि द्वारा अभिव्यक्त ‘राम गीता’ को उनके पुत्र रामकंठ ने लिपिबद्ध किया। इस प्रकार नेपाली भाषा की यह महान रचना पूरी हुई जो कालांतर में संपूर्ण नेपाल वासियों का कंठहार बन गयी।
बड़े बड़े लेखकों ने वक्त के बारे में बड़ी बड़ी बातें लिखी हैं तो मैंने सोचा की मैं क्या लिखूं, तब सोचा जब वक्त की बात करनी ही है तो क्यूँ ना अपने लेखकिय जीवन के बारे में ही क्यूँ ना करूँ…
पहले जब लोग मुझसे पूछते थे! की तुम क्या करते हो? तो मैं बगल झांकने लगता था, क्या कहूँ ? क्या ना कहूँ ? कुछ समझ में नहीं आता था। कभी कभी बातें बदलकर अटपटा सा जवाब देता या बात बनाने लगता। मगर जब मैं स्वयं अपनी बात से संतुष्ट नहीं होता तो लोग क्या संतुष्ट होते होंगे। आखिर अर्थ युग में अर्थ ही तो मापक है आपके काबिल होने के लिए, जो जितना अर्थपति वो उतना बड़ा काबिल।
मगर मैं तो इस मामले में नीरा अनाड़ी…कहां से काबिलियत की खरीददारी करूँ। अतः सोचा की की क्यूँ ना इस कालिख को छुड़ाने के लिए इसे माजा जाए शायद इसे माँजने पर यह कालिख छूट ही जाए। मैंने खूब जोर लगाया और लगातार स्वयं को माँजता रहा और आज भी इसे मांज रहा हूँ जिससे इसमें चमक आ सके।
हाँ ! माँजने से एक बात जरूर बदल गई, जब आज लोग मुझसे पूछते हैं की आप क्या करते हैं? तो मेरा बस एक ही जवाब होता है… लिखता हूँ ! वो फिर पूछते हैं, जीने के लिए क्या करते हैं ? मैं बस इतना ही कहता हूँ, बस लिखता हूँ और लिखने के लिए पढ़ता हूँ। बस यही करता हूँ क्यूंकि जीने के लिए साँस जरूरी है। पढ़ना मेरे लिए साँस लेने के बराबर है और लिखना साँस छोड़ने के बराबर है, यानी जीने की पूरी प्रक्रिया।
मेरे लिखने पढ़ने के सहायक मेरे परिजन हैं। लेकीन इसके मुख्य कर्ता मेरे पूज्य मामाजी श्री ओम नारायण राय जी हैं, जिनसे मैं अक्सर झगड़ता रहता हूँ और वो हर बार मुझे माफ कर देते हैं।
रहा अर्थ की बात तो कभी भी मेरे पूज्य पिताश्री ने मुझे कमाने के लिए नहीं कहा जबकी उल्टे वे हर बार मुझे मेरी जरूरत के बारे में ही पूछते रहते हैं। दूसरी ओर मेरी पत्नी ने कभी भी मुझसे एक चौकलेट तक की भी फरमाईश नहीं की और ना ही पैसे को लेकर कोई उलाहना ही दिया। रही बात जरूरतों की उसकी कमी कभी मेरे छोटे भाईयों ने होने ना दी। इसलिए शायद अर्थ का महत्व मैं आज तक समझ ना सका। मगर आप यह सोच रहे होंगे की जब इतने लोग मेरे सहायक हैं तो मैंने सिर्फ मामा जी को ही मुख्य कर्ता क्यूँ कहा।
जी, हाँ ! इसकी एक वजह जो एक कहानी भी है…
मैं जब छोटा था, पढ़ाई से निफिक्र सिर्फ खेलना कूदना और बदमाशी। इतनी बदमाशी की सब परेशान रहते। लेकिन मामाजी के सामने मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी, मगर पढ़ाने में वे भी सदा असफल रहे।
एक दिन वो कहीं बाहर से आए, उनके हाँथ में एक बंडल था। मैं उत्सुक था यह जानने के लिए की क्या है उसमें ? उन्होंने वह बंडल मुझे दिया और मैंने भी उसे बिना देर किए झट से खोल लिया।
यह क्या किताबें ? ? ? सिलेबस कि किताबो से अलग सुन्दर कवर वाले रंगीन पृष्ठ वाले ये किताब बड़े ही मनमोहक थे। पहली बार किताबो को देख मैं मुग्ध हुआ था। उन पुस्तकों के नाम कुछ इस प्रकार हैं, एलिस इन वंडरलैंड, अराउंड द वर्ल्ड इन 80 डेज, सिंदबाद जहाजी, तेनालीरामा, पंचतंत्र, हितोपदेश, अली बाबा 40 चोर आदि कोई और…
उस दिन पुस्तकों के किरदारों के साथ जो मैं जुड़ा, आज तक उनसे दूर ना हो सका। कितनी कोशिश की मैंने की मैं उनसे दूर हो सकूं और कुछ सामाजीक बन सकूं मगर मैं वो ना बन सका।
तो इस वर्ष का यह पहला आलेख अपनी ओर से मैं स्वयं को इस प्रतियोगिता के माध्यम से उपहार स्वरूप दे रहा हूँ। यूँ तो पहले से ही मैं लिखता रहा हूँ मगर अपने अतीत को झांकने का मौका इस विषय ने दिया है अतः मैं सपना जी का भी तहे दिल से धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने इतने खूबसूरत विषय को हम सबके मध्य रखा है। इधर कुछ दिनों से मैं अपने अतीत में लगातार घूम आया करता था जैसे कोई टाईम मशीन मेरे पास हो। इतने में इस विषय का आगमन हुआ और कलम चल पड़ी और ऐसी चली की रुकने का नाम ही नहीं ले रही है, भावनाएँ हैं, तो कुछ आपबीती तो और कुछ समाज की सच्चाईयाँ जिन्हें मेरी कलम लगातार उकेरती रही। आज मैं स्वयं पर आश्चर्य कर रहा हूँ की मैं लिख क्या रहा हूँ। जैसे मैं कोई बड़ा लेखक बन जाऊंगा।
यह समय है और समय के गर्भ में क्या छिपा है कोई नहीं जान सकता। आप भी नहीं और मैं भी नहीं…
कई पुस्तकों के अध्यन उपरांत मैं यही समझा पच्चीस वर्ष की आयु से पचास वर्ष की आयु तक के बोले गए झूठ और बटोरे गए पैसे किसी काम के नहीं रहते। मैं यह कदापि नहीं कहता की आप काम ना करो मगर अति सदा वर्जित है, आप इससे बचो। आप देखेंगे बड़े बड़े अवकाश प्राप्त अफसर, नेता और बड़े व्यवसाई कुछ वक्त के बाद पैसे के आगे धर्म, कर्म, अध्ययन अध्यापन अथवा अध्यात्म, सेवा आदि कर्म को महत्व देने लगते हैं। उन्हें माया की सच्चाई का पता थोड़ा ही सही, चलने जरूर लगता है। उन्हें किताबें अच्छी लगने लगती हैं। वे स्वयं तो पढ़ते ही हैं दूसरों को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जैसे मेरे पूज्य मामा जी ने मुझे प्रोत्साहित किया…
मामा जी के द्वारा दी गई उन पुस्तकों का प्रभाव मेरे ऊपर इतना पड़ा की पढ़ते पढ़ते आज लिखने भी लगा। इसके अलावा आप सभी स्नेहिल मित्रों के प्रेम व सान्निध्य का भी बेहद शुक्रिया जो मुझे लिखने हेतु सतत प्रेरित करते रहे…
मगर यह बिल्कुल प्रथम अनुभव है अपने अतीत को किसी के सम्मुख प्रस्तुत करना। सच में आज हृदयतल पुलकित सा हो रहा है, मेरे लिए रोमांचित करने वाली बात है ये। आज आपके मित्र यानी मैं अश्विनी राय ‘अरुण’ की कुछ एकल अथवा साझा पुस्तकों ने आपके मित्र से कहीं ज्यादा नाम कमाया है और कुछ अभी भी अपनी बारी के इंतजार में हैं…
1. एकल प्रकाशित पुस्तक :-
‘बिहार – एक आईने की नजर से’
प्रकाश्य :-
ये उन दिनों की बात है, आर्यन, जीवननामा (१२ खंड), दक्षिण भारत की यात्रा, आपातकाल, महाभारत – मेरी नजर से, बक्सर – एक आईने की नजर से, बहाव (कविता संग्रह), अनाम (लेख संग्रह) आदि।
2. प्रकाशित साझा संग्रह :-
पेनिंग थॉट्स, अंजुली रंग भरी, ब्लौस्सौम ऑफ वर्ड्स, उजेस, हिन्दी साहित्य और राष्ट्रवाद, दिनेश्वर प्रसाद सिंह ‘दिनेश’, गंगा गीत माला (भोजपुरी), स्पंदन, रामकथा के विविध परिप्रेक्ष्य आदि। कुछ और भी साझा संग्रह प्रकाशन के इंतजार में हैं। साथ ही पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग आदि में भी सतत लेखन।
आज मामाजी, मेरे परिजन एवं मित्रों के सहयोग का ही यह असर रहा जो मैं कई संस्थाओ द्वारा सम्मान/पुरस्कार से अलंकृत एवं सम्मानित हो सका… साथ ही आज मैं विभिन्न संस्थाओ के आधिकारिक पद पर भी विराजमान हूँ।
जिंदगी है यह चलती तो रहेगी ही, मगर यह यूँ ही चलती रहेगी या इसमें रफ़्तार आएगी यह तो आप सभी मित्रों के हाँथ में है…