प्रेमचन्द जी कौन थे ?
प्रेमचन्द जी क्या करते थे ?

आज के सभ्य और शिक्षित समाज में ऐसा कौन है जो मुंशी प्रेमचन्द को नहीं जानता हों। अतः मैं अश्विनी राय ‘अरुण’ आज यानी ३१ जुलाई को उनके जन्मदिवस पर याद करते हुए एक नई बात बताने जा रहा हूँ जो मेरे लिए तो नई है और शायद आपके लिए भी ? ? ? ?

जो यह जानते है वो भी और जो नहीं जानते वो भी एक बार फिर हमारे साथ आइए और यह जानने की कोशिश कीजिए की प्रेमचंद जी के नाम के आगे मुंशी क्यूँ लगता है ? ? ? ? ?

प्रेमचंद को प्रायः मुंशी_प्रेमचंद के नाम से जाना जाता है। प्रेमचंद के नाम के साथ ‘मुंशी’ कब और कैसे जुड़ गया? इस विषय में अधिकांश लोग यही मान लेते हैं कि प्रारम्भ में प्रेमचंद अध्यापक रहे थे और अध्यापकों को प्राय: उस समय मुंशी जी ही कहा जाता था। इसके अतिरिक्त कायस्थ समुदाय के नाम के पहले सम्मान स्वरूप ‘मुंशी जी’ शब्द लगाने की परम्परा रही है। संभवत: प्रेमचंद जी के नाम के साथ मुंशी शब्द जुड़कर रूढ़ हो गया। प्रोफेसर शुकदेव सिंह जी के अनुसार प्रेमचंद जी ने अपने नाम के आगे ‘मुंशी’ शब्द का प्रयोग स्वयं कभी नहीं किया। उनका यह भी मानना है कि मुंशी शब्द सम्मान सूचक है, जिसे प्रेमचंद के प्रशंसकों ने कभी लगा दिया होगा। यह तथ्य भी अनुमान पर आधारित है।

लेकिन प्रेमचंद के नाम के साथ मुंशी विशेषण जुड़ने का प्रामाणिक कारण हम आपको बताते हैं। ‘हंस’ नामक पत्र प्रेमचंद एवं ‘कन्हैयालाल मुंशी’ के सह संपादन में निकलता था। जिसकी कुछ प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी का पूरा नाम न छपकर मात्र ‘मुंशी’ छपा करता था साथ ही प्रेमचंद का नाम इस प्रकार छपा होता था…

संपादक
मुंशी, प्रेमचंद

यहां मुंशी से तात्पर्य कन्हैयालाल मुंशी है नाकी मुंशी प्रेमचंद। ‘हंस के संपादक प्रेमचंद तथा कन्हैयालाल मुंशी दोनों थे। परन्तु कालांतर में पाठकों ने ‘मुंशी’ तथा ‘प्रेमचंद’ को एक समझ लिया और ‘प्रेमचंद’- ‘मुंशी प्रेमचंद’ बन गए। यह स्वाभाविक भी है। सामान्य पाठक प्राय: लेखक की कृतियों को पढ़ता है, नाम की सूक्ष्मता को नहीं देखा करता। आज प्रेमचंद का मुंशी अलंकरण इतना रूढ़ हो गया है कि मात्र ‘मुंशी’ से ही प्रेमचंद का बोध हो जाता है तथा ‘मुंशी’ न कहने से प्रेमचंद का नाम अधूरा-अधूरा सा लगता है।

धन्यवाद !

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *