April 8, 2025

आपने कभी सोचा है कि हमारा देश पचास साल, सौ साल या पांच सौ साल पीछे क्यों है? अजी मैं तो यहां तक कहता हूं कि हमारा देश किसी और देश से पचास या सौ साल पीछे नहीं, बल्कि स्वयं अपने स्वर्णिम इतिहास से पांच हजार पीछे चला गया हैं। और इसके पीछे जाने के पीछे भी इसके अपने ही लोग हैं, जो अपने ही भाइयों के पीठ में छुरा घोंपकर अपना हाथ कटा लेते हैं और जीवन भर विदेशियों के पैरों में पड़े रहते हैं। यह कहानी एक बार की नहीं है, भारत में यह कहानी तब से चली आ रही है, जब से मानव सभ्यता ने अभी करवट लेना शुरू ही किया था। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर आज मैं इस तरह की बात क्यों कर रहा हूं, तो आईए हम आपको आज एक अभागे वैज्ञानिक के बारे में बताते हैं, जिसको जानकर आपको स्वयं अपने आप पर चिढ़ होने लगेगी और आप कह उठेंगे कि अभागा वो नहीं हम स्वयं हैं…

यह कहानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व वैज्ञानिक एयरोस्पेस इंजीनियर नंबी नारायणन के जीवन पर आधारित है, जिन्हें देश से गद्दारी करने के झूठे आरोपों में फंसाया गया था। मेरी नजर में नंबी नारायणन की कहानी को देश के हर नागरिक को जाननी चाहिए ताकि वे समझ सकें कि कैसे एक निर्दोष देशभक्त को राजनीतिक साजिश का शिकार बनाकर देश का गद्दार घोषित कर दिया गया था और उनके जैसे ना जाने कितने लोग इस तरह शिकार हो जाते होंगे…

परिचय…

नंबी नारायणन का जन्म १२ दिसंबर, १९४१ को त्रावणकोर (वर्तमान कन्याकुमारी जिला) की तत्कालीन रियासत नागरकोइल में एक तमिल हिंदू परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा डीवीडी हायर सेकेंडरी स्कूल, नागरकोइल से पूरी की। उन्होंने त्यागराजर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, मदुरै से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी किया। मदुरै में डिग्री हासिल करने के दौरान नारायणन ने अपने पिता को खो दिया था, तब उनकी मां बीमार हो गईं। उस वजह से उनके ऊपर बीमार मां के साथ ही साथ दो बहनों का भी भार आ गया। अपनी जिम्मेदारी को बांटने के लिए नंबी ने मीना नामक के पढ़ी लिखी, सुशील लड़की से शादी कर ली, जिनसे उन्हें दो बच्चे हुए। बेटा शंकर नंबी विपदाओं के पहाड़ से टकराकर अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सका और अंत में व्यवसायी बन कर रह गया। उनकी बेटी गीता अरुणन बैंगलोर में एक मोंटेसरी स्कूल शिक्षक हैं, जिनकी शादी नंबी नारायणन ने अपने एक शिष्य सुब्बिया अरुणन से की। आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि नंबी नारायणन ने देश के द्वारा दिए गए इतने घाव के बाद भी देश को श्री सुब्बिया अरुणन जैसा एक महान वैज्ञानिक दिया और अपने सपने को उनके माध्यम से अंततः साकार कर ही लिया। श्री सुब्बिया अरुणन इसरो के वह वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने मार्स ऑर्बिटर मिशन यानी मिशन मंगल को अंजाम दिया था और जिन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया था।

करियर…

मदुरै में मैकेनिकल इंजीनियरिंग का अध्ययन करने के बाद, वर्ष १९६६ में श्री नारायणन ने इसरो में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन पर एक तकनीकी सहायक के रूप में जब अपना करियर शुरू किया, उस समय इसरो के मुख्य कर्ता धर्ता देश के महानतम वैज्ञानिकों में से एक विक्रम साराभाई थे। नारायणन को साराभाई अपने बच्चे की तरह मानते थे, उन्होंने नारायणन की काबिलियत को देखते हुए और नासा फेलोशिप के आधार पर वर्ष १९६९ में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में रासायनिक रॉकेट प्रणोदन में मास्टरी करने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी। नारायणन ने प्रोफेसर लुइगी क्रोको के तहत रासायनिक रॉकेट प्रणोदन में अपना मास्टर कार्यक्रम पूरा किया। वह ऐसे समय में तरल प्रणोदन में विशेषज्ञता के साथ भारत लौटे, जब भारतीय रॉकेटरी अभी भी पूरी तरह से ठोस प्रणोदक पर निर्भर थी। इसरो में तरल प्रणोदन के इंचार्ज जहां नंबी नारायणन थे, वहीं उस समय ठोस प्रणोदक के इंचार्ज, भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जी थे।

वर्ष १९७४ में, यूरोपियन सोसाइटी डी प्रोपल्शन ने इसरो से १०० मानव-वर्ष के इंजीनियरिंग कार्य के बदले में वाइकिंग इंजन प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने पर सहमति व्यक्त की। नारायणन ने बावन इंजीनियरों की टीम का नेतृत्व किया। स्थानांतरण का कार्य तीन टीमों द्वारा पूरा किया गया एक टीम फ्रांस में वाइकिंग इंजन प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने का काम रही थी, तो अन्य दो टीमों ने भारत में हार्डवेयर के स्वदेशीकरण और महेंद्रगिरि में विकास सुविधाओं की स्थापना पर काम किया। विकास नाम के पहले इंजन का वर्ष १९८५ में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया, जो वर्ष १९८२ में सतर्कता प्रकोष्ठ द्वारा एक जांच के बाद हटा दिया गया था।

घटना…

बात अक्टूबर, १९९४ की है, जब मालदीव की एक महिला मरियम राशिदा को तिरुवनंतपुरम से गिरफ्तार किया गया। राशिदा पर यह इल्जाम था कि उसने इसरो के स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन की ड्राइंग पाकिस्तान को बेची है। उस महिला को आधार बनाकर केरल पुलिस ने तिरुवनंतपुरम में इसरो के टॉप साइंटिस्ट और क्रायोजनिक इंजन प्रॉजेक्ट के डायरेक्टर नंबी नारायणन समेत दो अन्य वैज्ञानिकों डी शशिकुमारन और डेप्युटी डायरेक्टर के चंद्रशेखर को अरेस्ट कर लिया। इनके साथ रूसी स्पेस एजेंसी के एक भारतीय प्रतिनिधि एसके शर्मा, लेबर कॉन्ट्रैक्टर और राशिदा की दोस्त फौजिया हसन को भी गिरफ्तार किया गया। इन सभी पर इसरो के स्वदेशी क्रायोजनिक रॉकेट इंजन से जुड़ी खुफिया जानकारी पाकिस्तान समेत दूसरे अन्य देशों को बेचने के आरोप लगे। इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों ने तब क्रायोजनिक इंजन प्रॉजेक्ट के डायरेक्टर रहे नंबी नारायणन से कड़ी पूछताछ शुरू की, उन्होंने इन आरोपों का खंडन किया और इसे अपने खिलाफ साजिश बताया। पूछताछ के दौरान उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर किया गया, पहले पुलिस और फिर इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों द्वारा।

बिना सबूतों के गद्दार…

पूछताछ के दौरान ही नंबी नारायण को बिना सबूतों के गद्दार घोषित कर दिया गया। इतना ही नहीं इस मामले को अखबारों की सुर्खियां भी बनवाई गई। बिना जांचे-परखे पुलिस की थ्योरी को ही सही मानते हुए मीडिया ने भी नंबी नारायणन को देश का गद्दार बताने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ा। यह तब की बात है, जब नंबी नारायणन रॉकेट में इस्तेमाल होने वाले स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन बनाने के बेहद करीब पहुंच चुके थे। उन पर लगे आरोपों और उनकी गिरफ्तारी ने देश के रॉकेट और क्रायोजेनिक इंजन प्रोग्राम को कई दशक पीछे धकेल दिया।

दिसंबर, १९९४ में मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने अपनी जांच में इंटेलिजेंस ब्यूरो और केरल पुलिस के आरोप सही नहीं पाए और अप्रैल, १९९६ में सीबीआई ने चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में बताया कि पूरा मामला ही फर्जी है।

साजिश…

सीबीआई ने अपनी जांच में नंबी नारायणन को निर्दोष पाया। जांच में यह बात सामने आई कि भारत के स्पेस प्रोग्राम को डैमेज करने की नीयत से नंबी नारायणन को झूठे केस में फंसाया गया था। जांच में इस बात के भी संकेत मिले कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के इशारे पर केरल की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार ने नंबी नारायणन को साजिश का शिकार बनाया। यह सारी कवायद भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्वस्त करने की नीयत से हो रही थी। यह वह दौर था जब भारत अपने स्पेस प्रोग्राम के लिए अमेरिका समेत अन्य देशों पर निर्भर था। करोड़ों-अरबों रुपये किराए पर स्पेस टेक्नोलॉजी इन देशों से आयात किया करता था।

स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत के आत्मनिर्भर होने से अमेरिका को कारोबारी नुकसान होने का डर था। जैसा की हमने ऊपर ही कहा है, अपने लोग ही अपनों के पीठ में छुरा घोंपने का काम करते हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की मदद के तौर एसआईटी के जिस अधिकारी सीबी मैथ्यूज ने नंबी के खिलाफ जांच की थी, उसे केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने बाद में राज्य का डीजीपी तक बना दिया। सीबीआई जांच में सीबी मैथ्यूज के अलावा तब के एसपी केके जोशुआ और एस विजयन के भी इस साजिश में शामिल होने की बात सामने आई। माना जाता है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने इसके लिए केरल की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार में शामिल बड़े नेताओं और अफसरों को मोटी रकम मुहैया कराई थी। असल में देश से गद्दारी नंबी नारायणन नहीं, बल्कि ये लोग कर रहे थे।

न्याय…

मई, १९९६ में कोर्ट ने सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और इस केस में गिरफ्तार सभी आरोपियों को रिहा कर दिया। मई, १९९८ को केरल की तत्कालीन सीपीएम सरकार ने मामले की फिर से जांच करने का आदेश दिया। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार द्वारा इस मामले की फिर से जांच के आदेश को खारिज कर दिया। वर्ष १९९९ में नंबी नारायणन ने मुआवजे के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल की। वर्ष २००१ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केरल सरकार को उन्हें क्षतिपूर्ति का आदेश दिया, लेकिन राज्य सरकार ने इस आदेश को चुनौती दी। अप्रैल, २०१७ में सुप्रीम कोर्ट में नंबी नारायणन की याचिका पर उन पुलिस अधिकारियों पर सुनवाई शुरू हुई जिन्होंने वैज्ञानिक को गलत तरीके से केस में फंसाया था। नारायणन ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जिसमें कहा गया था कि पूर्व डीजीपी और पुलिस के दो सेवानिवृत्त अधीक्षकों केके जोशुआ और एस विजयन के खिलाफ किसी भी कार्रवाई की जरूरत नहीं है।

२४ वर्षीय सम्मान की लड़ाई…

जानकारी के लिए यहां फिर से बताते चलें कि नंबी नारायणन वर्ष १९९६ में ही आरोपमुक्त हो गए थे, परंतु उन्होंने अपने सम्मान की लड़ाई को जारी रखा, जो उनके आरोपमुक्त होने के २४ वर्ष बाद तक चलता रहा। सुप्रीम कोर्ट ने १४ सितंबर, २०१८ को उनके खिलाफ सारे नेगेटिव रिकॉर्ड को हटाकर उनके सम्मान को दोबारा बहाल करने का आदेश दिया। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तीन जजों की पीठ ने केरल सरकार को आदेश दिया कि नंबी नारायणन को उनकी सारी बकाया रकम, मुआवजा और दूसरे लाभ दिए जाएं।

सर्वोच्च अदालत का आदेश…

सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में कहा कि नंबी नारायणन को मुआवजे के साथ बकाया रकम और अन्य दूसरे लाभ केरल सरकार देगी। इसकी रिकवरी उन पुलिस अधिकारियों से की जाएगी जिन्होंने उन्हें जासूसी के झूठे मामले में फंसाया। साथ ही सभी सरकारी दस्तावेजों में नंबी नारायणन के खिलाफ दर्ज प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने का आदेश दिया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि नंबी नारायणन को हुए नुकसान की भरपाई पैसे से नहीं की जा सकती है, लेकिन नियमों के तहत उन्हें ७५ लाख रुपये का भुगतान किया जाए। सुप्रीम कोर्ट जब यह फैसला सुना रहा था, उस समय श्री नंबी नारायणन वहां स्वयं मौजूद थे।

अपनी बात…

वैज्ञानिकों और विद्वानों का कहना है कि अगर नंबी नारायणन के खिलाफ साजिश नहीं हुई होती तो भारत १५ वर्ष पूर्व ही स्वेदशी क्रायोजेनिक इंजन बना चुका होता। अमेरिका ने क्रायोजेनिक इंजन देने से साफ इनकार कर दिया था, तब रूस से समझौता करने की कोशिश हुई, बातचीत अंतिम चरण में थी, मगर अमेरिकी दबाव के आगे रूस भी मुकर गया।

तब नंबी नारायणन ने भारत सरकार को भरोसा दिलाया था कि वह अपनी टीम के साथ स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाकर दिखाएंगे। वह अपने मिशन को सही दिशा में लेकर चल रहे थे तभी अमेरिका के इशारे पर उनके खिलाफ साजिश की गई। नंबी नारायणन ने अपने साथ हुई साजिश पर ‘रेडी टू फायर: हाउ इंडिया एंड आई सर्वाइव्ड द इसरो स्पाई केस’ नाम से किताब भी लिखी है।

पद्म सम्मान…

वर्ष २०१९ में केंद्र में भाजपा की तत्कालीन सरकार ने नंबी नारायणन को पद्म भूषण सम्मान से नवाजा। देश के इस महान वैज्ञानिक के साथ हुई साजिश के खिलाफ भाजपा को छोड़ किसी भी राजनीतिक दल ने कभी आवाज नहीं उठाई। भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी इस मामले में बहुत पहले से नंबी नारायणन के समर्थन में खुलकर बोलती रही हैं। उन्होंने वर्ष २०१३ में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस साजिश के तमाम पहलुओं को उजागर किया था।

नंबी नारायणन ने कहा था, ”पद्म भूषण सम्मान से नवाजे जाने की मुझे बहुत खुशी है। मुझे सभी स्वीकार कर रहे हैं। पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुझे निर्दोष बताया। फिर केरल सरकार मेरे पास आई और अब केंद्र ने भी मुझे स्वीकार कर लिया है।”

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