यह तन विष की वेलरी,
गुरु अमृत की खान,
शीश दिये जो गुरु मिले,
तो भी सस्ता जान …

गुरु पूर्णिमा…

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इसी दिन महाभारत के रचयिता श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास जी का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। यही कारण है की उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।

कबीर दास जी कहते हैं….

गुरु गोविंद तौ एक है,
दूजा यहु आकार
आपा मेट जीवत मरै,
तौ पावै करतार

गुरु और ईश्वर में कोई भेद नहीं है। जो साधक अहंता का भाव त्याग देता है वह मोक्ष को प्राप्त करता है।

शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है।

गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर,
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:

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