“छह बरस से साठ बरस तक की कौन-सी ऐसी स्त्री है, जो अपने रूप की प्रशंसा पर बेहोश न हो जाए” यह प्रसंग गुनाहों का देवता नामक उपन्यास से लिया गया है,जिसके रचनाकार हैं हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, नाटककार, कवि और सामाजिक विचारक…

धर्मवीरभारती का जन्म इलाहाबाद में हुआ था, उनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा और माता का नाम श्रीमती चंदादेवी था। स्कूली शिक्षा डी.ए.वी.हाई स्कूल में हुई और उच्च शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय में। प्रथम श्रेणी में एमए करने के बाद सिद्ध साहित्य पर उन्होंने पीएचडी प्राप्त की।

उन्हें बस दो ही शौक थे : अध्ययन और यात्रा। भारती के साहित्य में उनके विशद अध्ययन और यात्रा-अनुभवोंं का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है…
“जानने की प्रक्रिया में होने और जीने की प्रक्रिया में जानने वाला मिजाज़ जिन लोगों का है उनमें मैं अपने को पाता हूँ”(ठेले पर हिमालय)
“सूरज का सातवां घोड़ा” को कहानी कहने का अनुपम प्रयोग माना जाता है, जिस श्याम बेनेगल ने इसी नाम से फिल्म बनायी, “अंधा युग” एक प्रसिद्ध नाटक है, जिसे इब्राहीम अलकाजी, राम गोपाल बजाज, अरविन्द गौड़, रतन थियम, एम के रैना, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशकों ने इसका मंचन किया है।
“अंधा युग” में स्वातंत्रयोत्तर भारत में आई मूल्यहीनता के प्रति चिंता है। उनका बल पूर्व और पश्चिम के मूल्यों, जीवन-शैली और मानसिकता के संतुलन पर है, वे न तो किसी एक का अंधा विरोध करते हैं न अंधा समर्थन…

“पश्चिम का अंधानुकरण करने की कोई जरूरत नहीं है, पर पश्चिम के विरोध के नाम पर मध्यकाल में तिरस्कृत मूल्यों को भी अपनाने की जरूरत नहीं है।

भारती जी की नजर से अगर समाज को, देश को या विश्व को जानना हो तो उनके किसी भी उपन्यास या कहानी संग्रह या निबंध संकलन को उठा लीजिए।

भारती जी को अपने जीवन काल मे अनेकनेक पुरस्कार प्राप्त हुवे…

पद्मश्री
वैली टर्मेरिक द्वारा सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार
महाराजा मेवाड़ फाउण्डेशन का सर्वश्रेष्ठ नाटककार
संगीत नाटक अकादमी
राजेन्द्र प्रसाद सम्मान
भारत भारती सम्मान
महाराष्ट्र गौरव
कौडीय न्यास
व्यास सम्मान

“मनुष्य का एक स्वभाव होता है। जब वह दूसरे पर दया करता है तो वह चाहता है कि याचक पूरी तरह विनम्र होकर उसे स्वीकार करे। अगर याचक दान लेने में कहीं भी स्वाभिमान दिखाता है तो आदमी अपनी दानवृत्ति और दयाभाव भूलकर नृशंसता से उसके स्वाभिमान को कुचलने में व्यस्त हो जाता है।” ऐसी क्या मजबूरी रही होगी जो उन्होने ऐसा कहा होगा या वो कौन था जिसने उन्हें स्वाभिमान तक को कुचलने पर मजबूर कर दिया था और फ़िर अंत में…

४ सितम्बर, १९९७ को मुम्बई मे ७० साल की उम्र मे उन्हें
दुनिया छोड़कर जाना पड़ता है

क्या ऐसा होना चाहिए था ? ? ?

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