सुख और दुख से परे मैं…
युगान्तर बना फिरता हूँ
वक्त को समझने की विलक्षण प्रतिभा जो है
मगर युद्ध अनवरत जारी है
कृष्ण जो हूँ…
मैं चाहूँ तो कोई युद्ध ना हो
गर चाहूँ कोई संजोग ना हो
कोई वियोग ना हो…
मगर युद्ध अनवरत ? ? ?

ऐसा क्यूँ है ? ? ?
वैसा क्यूँ है ? ? ?

जग की पहचान भी मैं
प्रमाण भी मैं
संज्ञान भी मैं
होने या ना होने का ज्ञान भी मैं

द्रौपदी की साड़ी भी मैं
सुयोधन की वाणी भी मैं

मैं कृष्ण हूँ !

मैं ही चल में हूँ
अचल में हूँ
इस पल में हूँ
आज और कल में हूँ

आज और कल में जो दूरी है
उस प्रतिपल में हूँ

मैं कृष्ण हूँ !

चाहूँ तो सारे विश्व का संहार कर दूँ
पल में नया आकार दे दूँ
मगर युद्ध अनवरत जारी है

मैं कृष्ण जो हूँ…

यही मेरी गाथा है
यही मेरी प्रथा है

तू क्या जाने क्या तेरा है
बस मैं जानू क्या मेरा है
चराचर पर…
काल का जो फेरा है
वो मेरा ही घेरा है

माया के संसार में
पाप का भार बड़ा भारी है
इसीलिए युद्ध अनवरत जारी है

युद्ध अनवरत जारी है

Ashwini Rai

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *