बात सितम्बर १९०६ की है जब श्री बिपिन चन्द्र पाल और श्री प्रमथ नाथ मित्र पूर्वी बंगाल और असम के नए बने प्रान्त का दौरा करने गए। वहां श्री प्रमथ नाथ ने जब अपने भाषण के दौरान जनता से आह्वाहन किया की ‘जो लोग देश के लिए अपना जीवन देने को तैयार हैं वह आगे आयें ‘ तो एक नवयुवक तुरंत आगे आया। श्री पाल ने पूछा तुम कौन हो और इतनी तत्परता क्यूँ? मैं पुलिन हूँ, और अनुशीलन समिति का ऐसा हथियार बनना चाहता हूँ जो सिर्फ अंग्रेजों पर चले। उस नवयुवक की बात सुन दोनो अवाक रह गए। कोई सिपाही तो बन सकता है मगर हथियार? ? ?

बिना देर किए पुलिन को संगठन में शामिल कर लिया गया और बाद में उसको अनुशीलन समिति की ढाका इकाई को संगठित करने का दायित्व भी सौंपा गया। संगठन में शामिल होना और कार्य करना दो अलग बातें हैं मगर ये क्या…. अभी सितम्बर में शामिल हुए और अक्टूबर में उन्होंने 80 युवाओं के साथ “ढाका अनुशीलन समिति” की स्थापना तक कर डाली।

पुलिन उत्कृष्ट संगठनकर्ता थे और उनके प्रयासों से पुलिन बिहारी दास जीजल्द ही प्रान्त में समिति की 500 से भी ज्यादा शाखाएं हो गयीं। क्रांतिकारी युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए पुलिन ने ढाका में नेशनल स्कूल की स्थापना की। इसमें नौजवानों को शुरू में लाठी और लकड़ी की तलवारों से लड़ने की कला सिखाई जाती थी और बाद में उन्हें खंजर चलाने और अंतत: पिस्तोल और रिवाल्वर चलाने की भी शिक्षा दी जाती थी।

पुलिन, अनुशीलन समिति और नेशनल स्कूल ने अनेकों क्रान्तिकारी कृत्यों को किया। पुलिन के प्रबन्ध और नेतृत्व क्षमता के सभी कायल थे। १९०८ में अंग्रेज सरकार ने उन्हें भूपेश चन्द्र नाग, श्याम सुन्दर चक्रवर्ती, क्रिशन कुमार मित्र, सुबोध मालिक और अश्विनी दत्त के साथ गिरफ्तार कर लिया और मोंटगोमरी जेल में कैद कर दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार उन्हें झुका नहीं सकी। १९१० में जेल से रिहा होने के बाद वह दोबारा क्रांतिकारी गतिविधियों को तेज करने में लग गए। इस समय तक, (प्रमथ नाथ मित्र की मृत्यु के पश्चात्) ढाका समूह कलकत्ता समूह से अलग हो चुका था।

परन्तु अंग्रेज सरकार ने “ढाका षड्यंत्र केस” में पुलिन व उनके ४६ साथियों को जुलाई १९१० में दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और कुछ दिनों के बाद में उनके ४४ अन्य साथियों को भी पकड़ लिया गया। इस केस में पुलिन को कालेपानी की सजा हुई और उन्हें कुख्यात सेल्युलर जेल में भेज दिया गया। यहाँ उनकी भेंट अपने ही जैसे वीर क्रांतिकारियों से हुई जैसे श्री हेमचन्द्र दास, श्री बारीन्द्र कुमार घोष और विनायक दामोदर सावरकर आदि।

अब आप सोच रहे होंगे की यह पुलिन कौन है? ये हैं भारत के महान स्वतंत्रता प्रेमी व क्रांतिकारी

श्री पुलिन बिहारी दास जी

इनका जन्म २४ जनवरी १८७७ को बंगाल के फरीदपुर जिले में लोनसिंह नामक गाँव में एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिताजी श्री नबा कुमार दास मदारीपुर के सब-डिविजनल कोर्ट में वकील थे। उनके एक चाचा डिप्टी मजिस्ट्रेट व एक चाचा मुंसिफ थे।

उन्होंने फरीदपुर जिला स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए ढाका कॉलेज में प्रवेश लिया। कॉलेज की पढाई के समय ही वह लेबोरेट्री असिस्टेंट व निदर्शक बन गए थे।

उन्हें बचपन से ही शारीरिक संवर्धन का बहुत शौक था और वह बहुत अच्छी लाठी चला लेते थे। कलकत्ता में सरला देवी के अखाड़े की सफलता से प्रेरित होकर उन्होने भी १९०३ में तिकतुली में अपना अखाडा खोल लिया। १९०५ में उन्होंने मशहूर लठैत (लाठी चलाने में माहिर) “मुर्तजा” से लाठीखेल और घेराबंदी की ट्रेनिंग ली।

कोलकाता विश्वविद्यालय आज भी उनके सम्मान में विशेष मेडल देती है जिसका नाम है “पुलिन बिहारी दास स्मृति पदक “।

श्री पुलिन बिहारी दास जी के जयंती पर अश्विनी राय ‘अरुण’ का शत शत नमन!

धन्यवाद !

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