April 18, 2024

मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी छत्रपती संभाजी राजे यानी छत्रपति संभाजी राजे भोसले या शंभुराजे का जन्म १४ मई,१६५७ को पुणे के पुरंदर दुर्ग में हुआ था। संभाजी राजे अपनी शौर्यता के लिये काफी प्रसिद्ध थे। संभाजी महाराज ने अपने कम समय के शासन काल में ही २१० युद्ध किये और उसमे प्रमुख बात यह रही कि उनकी सेना एक भी युद्ध में पराभूत नहीं हुई। मराठों के सबसे प्रबल शत्रु मुगल बादशाह औरंगजेब बीजापुर और गोलकुण्डा का शासन हिन्दुस्तान से समाप्त करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही। उनके पराक्रम की वजह से परेशान हो कर औरंगजेब ने यह कसम खायी थी की जब तक छत्रपती संभाजी पकड़े नहीं जायेंगे, वो अपना किमोंश सर पर नहीं चढ़ाएगा। आईए छत्रपती संभाजी महाराज के जन्मोत्सव पर उनके इतिहास के छिपे हुए कुछ पृष्ठों को हम यहाँ खंगालते हैं…

इतिहासकारों के अनुसार छत्रपति संभाजी राजे नौ वर्ष की अवस्था में पुण्यश्लोक छत्रपती श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रसिद्ध आगरा यात्रा में वे साथ गये थे। औरंगजेब के बंदीगृह से निकल, पुण्यश्लोक छत्रपती श्री छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र वापस लौटने पर, मुगलों से समझौते के फलस्वरूप, संभाजी राजे मुगल सम्राट् द्वारा राजा के पद तथा पंचहजारी मंसब से मराठा सेना के साथ विभूषित हुए।

अब हम अपने स्तर से इतिहास पर कुछ प्रकाश डालते हैं…

अब सोचने वाली बात यह है की युगप्रवर्तक राजा के पुत्र रहते हुए क्या उनको यह नौकरी मान्य होगी? यहाँ राज की बात यह थी की हिन्दवी स्वराज्य स्थापना की शुरू के दिन होने के कारण और अपने पिता छत्रपती श्री शिवाजी महाराज के आदेश के पालन हेतु सिर्फ ९ वर्ष की आयु में ही अपमान जनक कार्य उन्होंने धीरज से किया। उन्होंने अपने उम्र के १४वें वर्ष में ही उन्होंने बुद्धभुषण, नखशिख, नायिकाभेद तथा सातशातक यह तीन संस्कृत ग्रंथ लिखे थे। छत्रपति श्री शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक और हिन्दु स्वराज्य के बाद स्थापित अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में से कुछ लोगों की राजकारण के वजह से यह संवेदनशील युवराज काफी क्षतिग्रस्त हुए थे। पराक्रमी होने के बावजूद उन्हें अनेक लड़ाईयों से दूर रखा गया।संवेदनशील रहनेवाले संभाजी राजे उनके पिता छत्रपती शिवाजी महाराज जी के आज्ञा अनुसार मुग़लों को जा मिले ताकी वे उन्हे गुमराह कर सके। क्यूँकि उसी समय मराठा सेना दक्षिण दिशा के दिग्विजय से लौटी थी और उन्हे फिर से जोश में आने के लिये समय चाहिये था। इसलीये मुगलों को गुमराह करने के लिये शिवाजी महाराज ने ही उन्हे भेजा था और बाद में उन्हें छत्रपती शिवाजी महाराज ने मुग़लों से मुक्त करा लिया।

पुण्यश्लोक छत्रपति श्री शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात कुछ लोगों ने छात्रपती संभाजी के अनुज राजाराम को सिंहासन देने का प्रयत्न किया। किन्तु सेनापति मोहिते जो कि वह राजाराम के सगे मामा थे, उन्होने इस कारस्थान को कामयाब होने नहीं दिया और १६ जनवरी, १६८१ को संभाजी महाराज का विधिवत्‌ राज्याभिषेक कराया। यही वह वर्ष था जब औरंगजेब का विद्रोही पुत्र अकबर ने छात्रपती श्री संभाजी महाराज का आश्रय ग्रहण किया।

मुगल शासन, पुर्तगालियों, अंग्रेजों तथा अन्य शत्रुओं के साथ ही साथ उन्हें आंतरिक लड़ाइयों को भी लड़ना पड़ा। इतिहासकारों के अनुसार राजाराम के कुछ ब्राह्मण समर्थको ने औरंगजेब के पुत्र अकबर से राज्य पर आक्रमण कर के उसे मुग़ल साम्राज्य के अधीन करने की गुजारिश वाला पत्र लिखा। परंतु छत्रपति श्री संभाजी महाराज के पराक्रम से परिचित और उनका आश्रित होने के कारण अकबर ने वह पत्र छत्रपति संभाजी महाराज को भेज दिया। इस राजद्रोह से क्रोधित छत्रपति श्री संभाजी महाराज ने अपने सामंतो को मृत्युदंड दे दिया। तथापि उन में से एक बालाजी आवजी नामक सामंत की समाधी भी उन्होंने बनवाई। जिसका माफीनामा पत्र श्री छत्रपति संभाजी को उन सामंत के मृत्यु पश्चात मिला।

वर्ष १६८३ में उन्होने पुर्तगालियों को पराजित किया। इसी समय वह किसी राजकीय कार्य के लिए वे संगमेश्वर में थे। जिस दिन वे रायगढ़ के लिए प्रस्थान करने वाले थे उसी दिन कुछ ग्रामीणों ने अपनी समस्या उन्हें अर्जित करनी चाही, जिस वजह से छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने साथ सिर्फ २०० सैनिक रखे और बाकी सेना को रायगढ़ भेज दिया।

आप यह बात जानते ही हैं की दोगले हर युग और हर काल में थे अतः यहाँ भी थे… गणोजी शिर्के जो कि संभाजी महाराज की पत्नी येसूबाई के भाई थे और जिनको उन्होंने वेतन देने से इन्कार कर दिया था, मुग़ल सरदार मुकरब खान के ५००० फ़ौज के साथ गुप्त रास्ते से वहां पहुंचा। और जानने वाली बात यह हैं की यह वह रास्ता था जो सिर्फ और सिर्फ मराठों को ही पता था। अतः संभाजी महाराज इस ओर से निफिक्र थे, उन्हें कभी नहीं लगा की शत्रु इस और से भी आ सकेगा। फिर भी उन्होंने लड़ने का प्रयास किया किन्तु इतनी बड़ी फ़ौज के सामने २०० सैनिकों का प्रतिकार काम ना कर सका और अपने मित्र एवं एकमात्र सलाहकार कविकलश के साथ वह बंदी बना लिए गए।

औरंगजेब ने सोचा था की मराठी साम्राज्य छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु पश्चात ख़त्म हो जाएगा। परंतु छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या की वजह से सारे मराठा एक साथ आकर लड़ने लगे। अत: औरंगजेब को दक्खन में ही प्राणत्याग करना पड़ा। उसका दक्खन जीतने का सपना इसी भूमि में दफन हो कर रह गया। इतने बड़े साहसी और उत्तम शासक होने के बावजूद इतिहासकारों ने उनके चरित्र के साथ खिलावाड किया है, जो काफी अचम्भे की बात है।छत्रपती संभाजी राजे महाराज द्वारा लिखा गया ग्रंथ बुधभूषण है, जिसे उन्होंने संस्कृत में महज १४ वर्ष की आयु में लिखा था।

 

छत्रपति राजाराम प्रथम (१६८९-१७००)

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