भूख तो मौत से भी बड़ी होती है,
सुबह मिटाओ, शाम को
फिर सिरहाने आ खड़ी होती है।

कैसी अजब दुनिया है,
कोई भूख बढ़ाने को
घरेलू नुस्खे आजमा रहा है,
रात का खाया पचाने को
तड़के घूमने जा रहा है।

दूसरे की हाथ खाली गला सुखा है
जाने कबसे यहां पड़ा भूखा है।
नज़र किसी की ना टिक पाती है,
यह देख इंसानियत पछताती है।

कोई अजूबा नहीं,
जिसे जो ना मिले उसी का भूखा है।
कोई इंसान अन्न को तरसता है,
कोई घर समेत इंसान को भछता है।

कभी रात को निकल जाना
सड़क किनारे देख आना
पेट को दाबे अपने हाथों से,
नन्ही परीयां भी सो जाती हैं।
यहां भूख जोर से रोती है,
हम अब भी चुप हैं
यह देख इंसानियत पछताती है।

अश्विनी राय ‘अरुण’

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