चन्द्रावली अथवा नासिकेतोपाख्यान, रामचरितमानस, पृथ्वीराज रासो, अशोक की धर्मालिपियाँ, रानी केतकी की कहानी, भाषा पत्र बोध, हिन्दी कुसुमावली आदि के लेखक होने के साथ साथ साहित्यकार, अध्यापक, सम्पादक डॉ. श्यामसुन्दर दास ने जिस निष्ठा से हिन्दी के अभावों की पूर्ति के लिये लेखन कार्य किया और उसे कोश, इतिहास, काव्यशास्त्र भाषाविज्ञान, अनुसंधान पाठ्यपुस्तक और सम्पादित ग्रन्थों से सजाकर इस योग्य बना दिया कि वह इतिहास के खंडहरों से बाहर निकलकर ऊंचे ऊंचे अट्टालिकाओं वाले विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों के भव्य-भवनों तक पहुँच गईं।
परिचय…
श्यामसुन्दर दास जी का जन्म वर्ष १८७५ में काशी में हुआ था। जबकि इनके पूर्वज लाहौर के निवासी थे और पिता लाला देवी दास खन्ना काशी में कपड़े का व्यापार करते थे। १८९७ ई. में इन्होंने बी.ए. पास किया और उसके दो वर्ष बाद १८९९ ई. में हिन्दू स्कूल में कुछ दिनों तक अध्यापक रहे। उसके बाद लखनऊ के कालीचरन स्कूल में बहुत दिनों तक प्रधानाचार्य के पद पर रहे। वर्ष १९२१ ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए।
निष्ठा…
श्यामसुन्दर दास जी की प्रारम्भ से ही हिन्दी के प्रति अनन्य निष्ठा थी। नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना १६ जुलाई, १८९३ ई. को इन्होंने विद्यार्थी काल में ही अपने दो सहयोगियों रामनारायण मिश्र और ठाकुर शिव कुमार सिंह की सहायता से की थी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आने के पूर्व इन्होंने हिन्दी साहित्य की सर्वतोमुखी समृद्धि के लिए न्यायालयों में वर्ष १९०० में हिन्दी प्रवेश का आन्दोलन, वर्ष १८९९ में हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज, वर्ष १९०३ में आर्य भाषा पुस्तकालय की स्थापना, वर्ष १९०२ में प्राचीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्पादन सभा-भवन का निर्माण, वर्ष १९०० में सरस्वती पत्रिका का सम्पादन तथा शिक्षास्तर के अनुरूप पाठ्य पुस्तकों का निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया था। निश्चित योजना और अदम्य साहस के अभाव में अनेक दिशाओं में एक साथ सफलतापूर्वक कार्य आरम्भ करना सम्भव नहीं था। यह आजीवन एक गति से साहित्य सेवा में लगे रहे।
कृतियाँ…
श्यामसुन्दर दास जी ने परिचयात्मक और आलोचनात्मक ग्रंथ लिखने के साथ ही कई दर्जन पुस्तकों का संपादन किया। पाठ्यपुस्तकों के रूप में इन्होंने कई दर्जन सुसंपादित संग्रह ग्रंथ प्रकाशित कराए। श्यामसुन्दर दास की साहित्य-कृतियाँ निम्नलिखित हैं…
सम्पादित ग्रन्थ…
१९०० सरस्वती
१९०१ चन्द्रावली अथवा ‘नासिकेतोपाख्यान’
१९०३ छत्र प्रकाश
१९०४ रामचरितमानस
१९०४ पृथ्वीराज रासो
१९०६ हिन्दी वैज्ञानिक कोश
१९०६ वनिता विनोद
१९०६ इन्द्रावती भाग 1
१९०८ हम्मीर रासो
१९०८ शकुन्तला नाटक, बाल विनोद
१९११ प्रथम हिन्दी साहित्य
सम्मेलन की लेखावली
१९१६ हिन्दी शब्द सागर खण्ड १–४
१९२० मेघदूत
१९२१ दीनदयाल गिरि ग्रन्थावली
१९२१ परमाल रासो
१९२३ अशोक की धर्मालिपियाँ
१९२५ रानी केतकी की कहानी
१९२७ भारतेन्दु नाटकावली
१९२८ कबीर ग्रन्थावली
१९३० राधाकृष्ण ग्रन्थावली
१९३३ सतसई सप्तक
१९३३ द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ
१९३३ रत्नाकर
१९३५ बाल शब्द सागर
१९४५ त्रिधारा नागरी प्रचारिणी पत्रिका (१-१८ भाग), मनोरंजन पुस्तक माला (१-५९ संख्या)
पुस्तक संग्रह…
१९०२ भाषा सार संग्रह भाग 1
१९०२ भाषा पत्र बोध
१९०२ आलोक चित्रण
१९०३ प्राचीन लेख मणिमाला
१९०४ आलोक चित्रण
१९०५ हिन्दी प्राइमर
१९०५ हिन्दी की पहली पुस्तक
१९०६ हिन्दी ग्रामर
१९०८ गवर्नमेण्ट आफ़ इण्डिया
१९०८ हिन्दी संग्रह
१९०८ बालक विनोद
१९१९ सरल संग्रह
१९१९ नूतन संग्रह
१९१९ अनुलेख माला
१९२३ नयी हिन्दी रीडर भाग ६, ७
१९२५ हिन्दी संग्रह भाग १,२
१९२५ हिन्दी कुसुम संग्रह भाग १,२
१९२७ हिन्दी कुसुमावली
१९२७ हिन्दी प्रोज सेलेक्शन
१९२८ साहित्य सुमन भाग १-४
१९३१ गद्य रत्नावली
१९३२ साहित्य प्रदीप
१९३६ हिन्दी गद्य कुसुमावली भाग १, २
१९३९ हिन्दी प्रवेशिका पद्यावली
१९४५ हिन्दी गद्य संग्रह
१९४५ साहित्यिक लेख
मौलिक कृतियाँ…
१८९६ नागरी वर्णमाला
१९०० – १९०५ हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों का वार्षिक खोज विवरण
१९०६ – १९०८ हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज
१९०९ हिन्दी कोविद रत्नमाला भाग १, २
१९२३ साहित्यलोचन
१९२३ हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण
१९२४ भाषा विज्ञान
१९२४ हिन्दी भाषा का विकास
१९२३ हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण
१९२५ गद्य कुसुमावली
१९२७ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
१९३० हिन्दी भाषा और साहित्य
१९३१ गोस्वामी तुलसीदास
१९३१ रूपक रहस्य
१९३५ भाषा रहस्य’ भाग १
१९४० हिन्दी गद्य के निर्माता’ भाग १, २
१९४२ मेरी आत्म कहानी
उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त इनके विभिन्न विषयों पर लिखे गये स्फुट निबन्धों और विभिन्न सम्मेलनों के अवसर पर दी गयी वक्तृताओं की सम्मिलित संख्या ४१ है। इस विस्तृत सामग्री का अनुशीलन करने से स्पष्ट है कि इनकी सतर्क दृष्टि हिन्दी के समस्त अभावों को लक्ष्य कर रही थी और यह पूरी निष्ठा से उन्हें दूर करने में प्रयत्नशील थे।
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