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जैसा आपने पिछले लेख में पढ़ा था कि जिस वक्त ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ में अन्य लेखों के साथ देशभक्ति से परिपूर्ण लेख प्रकाशित होने लगे तो अंग्रेजी सरकार ने इसे बन्द करा दिया।इसके बावजूद भारतेन्दु जी नहीं रुके उन्होंने ९ जनवरी, १८७४ को ‘बाला-बोधिनी पत्रिका’ निकालनी शुरू कर दी, जो महिलाओं की मासिक पत्रिका थी। आज हम इसी बाला-बोधिनी पत्रिका पर चर्चा करने वाले हैं…

परिचय…

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने इस देश की महिलाओं को राष्ट्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक चिंतन धारा से जोड़ने के लिए ९ जनवरी, १८७४ को एक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया था। यह हिंदी मासिक पत्रिका बनारस से प्रकाशित होती थी। इसके संदर्भ में रामचंद्र शुक्ल जी लिखते हैं, “संवत् १९३१ में भारतेंदु जी ने स्त्री शिक्षा के लिये ‘बालबोधिनी’ निकाली थी।”

आवश्यकता…

भारतेंदु जी की ‘बाला- बोधिनी’ ने नारियों में आदर्श आचरण की प्रवृत्ति को बल देते हुए उनके सारे पराक्रम और शक्ति का स्मरण दिलाने का अत्यंत प्रासंगिक और महत्वपूर्ण कार्य ब्रिटिश दासता के उस घोर संवेदनशील दौर में किया। ‘बाला बोधिनी’ का सिद्धांत वाक्य था…

‘जोई हरि सोई राधिका जो शिव सोई शक्ति

नारी जो सोई पुरुष जामें कुछ ना विभक्ति’।

कलेवर…

‘बाला बोधिनी’ निसंदेह हिंदी साहित्य जगत में मील का पत्थर है, जिसके अभाव में समग्र हिंदी पत्रकारिता की चर्चा हो ही नहीं सकती। उसका कलेवर सचमुच इतना अद्भुत और प्रभावशाली था कि महिलाओं की पत्रिका होकर भी वह सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक पत्रिका थी। उस कालखंड में उसकी भाषा, शैली और राष्ट्रीय चिंतन धारा प्रेरणास्पद है और वर्तमान हिंदी पत्रकारिता इससे बहुत कुछ सीख सकती है।

 

भारतेंदु हरिश्चंद्र 

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1 thought on “बाला बोधिनी

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