April 20, 2024

आज हम बात करेंगे मूर्धन्य विद्वान पंडित श्री तीर्थनाथ झा जी के पौत्र व संस्कृत, हिन्दी, मैथिली एवं अंग्रेजी के मूर्धन्य विद्वान एवं शिक्षाशास्त्री गंगानाथ झा जी के पुत्र तथा पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति अमरनाथ झा जी के बारे में…

परिचय…

श्री अमरनाथ झा जी का जन्म २५ फरवरी, १८९७ को बिहार के मधुबनी जिला अंतर्गत के एक गाँव में हुआ था। उनके पिता डॉ. गंगानाथ झा जी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान् थे। तथा दादा जी पंडित श्री तीर्थनाथ झा संस्कृत भाषा के मूर्धन्य विद्वान थे अतः अमरनाथ झा की शिक्षा घर से ही शुरु हो गई थी तथा एम.ए. की परीक्षा में वे ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ में सर्वप्रथम रहे थे। उनकी योग्यता देखकर एम.ए. पास करने से पहले ही उन्हें ‘प्रांतीय शिक्षा विभाग’ में अध्यापक नियुक्त कर लिया गया था।

प्रमुख तथ्य…

अमरनाथ झा ने वर्ष १९०३ से लेकर १९०६ तक कर्नलगंज स्कूल में पढ़ाई की तथा १९१३ में स्कूल लिविंग परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण और अंग्रेज़ी, संस्कृत एवं हिंदी में विशेष योग्यता प्राप्त की। फिर वर्ष १९१३ से १९१९ तक वे म्योर सेंटर कॉलेज, प्रयाग में शिक्षा ग्रहण करते रहे। इन्हीं दिनों यानी वर्ष १९१५ में इंटरमीडिएट में विश्वविद्यालय में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया। फिर वर्ष १९१७ में बीए की परीक्षा एवं वर्ष १९१९ में एम.ए. की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वर्ष १९१७ में म्योर कॉलेज में २० वर्ष की अवस्था में ही अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर हो गए। वर्ष १९२९ में वे विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्रोफेसर हुए। इस बीच वर्ष १९२१ में प्रयाग म्युनिसिपलिटी के सीनियर वाइस चेयरमैन भी रहे। उसी वर्ष पब्लिक लाइब्रेरी के मंत्री हुए। आप पोएट्री सोसाइटी, लंदन के उपसभापति रहे और रॉयल सोसाइटी ऑफ लिटरेचर के फेलो भी रहे। वर्ष १९३८ से १९४७ तक वे प्रयाग विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे। वर्ष १९४८ में अमरनाथ पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन हुए।

उच्च पदों की प्राप्ति…

अमरनाथ झा की नियुक्त वर्ष १९२२ ई. में अंग्रेज़ी अध्यापक के रूप में ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ में हुई। यहाँ वे प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहने के बाद वर्ष १९३८ में विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने और वर्ष १९४६ तक इस पद पर बने रहे। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय ने बहुत उन्नति की और उसकी गणना देश के उच्च कोटि के शिक्षा संस्थानों मे होने लगी। बाद में उन्होंने एक वर्ष ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ के वाइस चांसलर का पदभार सम्भाला तथा उत्तर प्रदेश और बिहार के ‘लोक लेवा आयोग’ के अध्यक्ष भी रहे।

अमरनाथ झा की रचनाएं…

१. वर्ष १९२० में संस्कृत गद्य रत्नाकर
२. वर्ष १९१६ में दशकुमारचरित की संस्कृत टीका
३. वर्ष १९२० में हिंदी साहित्य संग्रह
४. वर्ष १९३५ में पद्म पराग
५. वर्ष १९२९ में शेक्सपियर कॉमेडी
६. वर्ष १९२९ में लिटरेरी स्टोरीज
७. वर्ष १९२४ में हैमलेट
८. वर्ष १९३० में मर्चेंट ऑफ वेनिस
९. वर्ष १९१९ सलेक्शन फ्रॉम लार्ड मार्ले
१०. वर्ष १९५४ विचारधारा
११. हाईस्कूल पोएट्री

अपनी बात…

हिन्दी को राजभाषा बनाने के प्रश्न पर विचार करने के लिए जो आयोग बनाया था, उसके एक सदस्य डॉ. अमरनाथ झा भी थे। वे हिन्दी के समर्थक थे और खिचड़ी भाषा उन्हें स्वीकर नहीं थी। डॉ. अमरनाथ झा ने अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। वे ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ के अध्यक्ष रहे तथा हिंदी साहित्य के वृहत इतिहास के प्रधान संपादक थे। विभिन्न रूपों में की गई आपकी सेवाएं चिरस्मरणीय रहेंगी।

पुरस्कार व सम्मान…

डॉ. अमरनाथ झा अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इलाहाबाद और आगरा विश्वविद्यालयों ने उन्हें एल.एल.ड़ी. की और ‘पटना विश्वविद्यालय’ ने डी.लिट् की उपाधि प्रदान की थी। वर्ष १९५४ में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया।

निधन…

अपने पूर्वजों की कीर्ति पताका को और भी ऊंचाई प्रदान करने तथा देश और समाज के लिए अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले झा जी २ सितम्बर, १९५५ को अनंत की खोज में निकल पड़े।

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