April 19, 2024

राधा रानी भगवान श्रीकृष्ण की प्राणसखी, उपासिका और वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं, जिनका जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि दिन शुक्रवार को हुआ था। राधा रानी जी की माता का नाम कीर्ति था, उनके लिए ग्रंथों में ‘वृषभानु पत्नी’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। पद्म पुराण ने इसे वृषभानु राजा की कन्या बताया है। यह वृषभानु जब यज्ञ की भूमि साफ़ कर रहे थे, तभी उन्हें भूमि से कन्या के रूप में राधा जी मिली थी। यह कह पाना कठिन है कि राधा रानी के अवतरण दिवस अष्टमी था अथवा यज्ञभूमि पर प्राप्ति का दिवस अष्टमी का था, परंतु जो भी हो राजा ने उन्हें अपनी कन्या मानकर उनका पालन-पोषण किया। साथ ही यह भी कथा मिलती है कि विष्णु ने कृष्ण अवतार लेते समय अपने परिवार के सभी देवताओं से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा। तभी राधा जी भी जो चतुर्भुज विष्णु की अर्धांगिनी और लक्ष्मी के रूप में बैकुंठ लोक में निवास करती थीं, राधा रानी बनकर पृथ्वी पर आई।

श्रीकृष्ण की उपासिका…

राधा रानी को कृष्ण की प्रेमिका और कहीं-कहीं पत्नी के रूप में माना जाता हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की सखी थी और उनका विवाह रापाण अथवा रायाण नामक व्यक्ति के साथ हुआ था। अन्यत्र राधा और कृष्ण के विवाह का भी उल्लेख मिलता है। कहते हैं, राधा अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी।

ब्रज…

राधा रानी के बारे में ब्रज में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं। राधा रानी के पति का नाम ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार रायाण या रापाण अथवा अयनघोष भी मिलते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार श्री कृष्ण की आराधिका का ही रूप राधा है। आराधिका शब्द में से ‘अ’ हटा देने से राधिका बनता है। राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था। यहाँ राधा जी का मंदिर भी है। राधारानी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ की लट्ठमार होली सारी दुनिया में मशहूर है। यह आश्चर्य की बात है कि राधा-कृष्ण की इतनी अभिन्नता होते हुए भी महाभारत या भागवत पुराण में राधा का नामोल्लेख नहीं मिलता, यद्यपि कृष्ण की एक प्रिय सखी का संकेत अवश्य है। राधा ने श्रीकृष्ण के प्रेम के लिए सामाजिक बंधनों का उल्लंघन किया। कृष्ण की अनुपस्थिति में उसके प्रेम-भाव में और भी वृद्धि हुई। दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में बताया जाता है जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से श्रीकृष्ण और वृन्दावन से नंद, राधा आदि गए थे। राधा-कृष्ण की भक्ति का कालांतर में निरंतर विस्तार होता गया। निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ-सम्प्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने इसे और भी पुष्ट किया।

राधा-कृष्ण का विवाह…

माना जाता है कि राधा और कृष्ण का विवाह कराने में परमपिता ब्रह्माजी का बड़ा योगदान था। परमपिता ने जब श्रीकृष्ण को सारी बातें याद दिलाईं तो उन्हें सब कुछ याद आ गया। इसके बाद ब्रह्माजी ने अपने हाथों से शादी के लिए वेदी को सजाया। गर्ग संहिता के मुताबिक़ विवाह से पहले उन्होंने श्रीकृष्ण और राधा रानी से सात मंत्र पढ़वाए। भांडीरवन में वेदीनुमा वही पेड़ है जिसके नीचे बैठकर राधा और कृष्ण शादी हुई थी। दोनों की शादी कराने के बाद भगवान ब्रह्मा जी अपने लोक को लौट गए। लेकिन इस वन में राधा और कृष्ण अपने प्रेम में डूब गए।

अधिष्ठात्री देवी…

राधाजी भगवान श्रीकृष्ण की परम प्रिया हैं तथा उनकी अभिन्न मूर्ति भी। श्रीमद्‌भागवत में कहा गया है कि राधा जी की पूजा नहीं की जाए तो मनुष्य श्रीकृष्ण की पूजा का अघिकार भी नहीं रखता। राधा जी भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, अत: भगवान इनके अधीन रहते हैं। राधाजी का एक नाम कृष्णवल्लभा भी है क्योंकि वे श्रीकृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली हैं। माता यशोदा ने एक बार राधाजी से उनके नाम की व्युत्पत्ति के विषय में पूछा। राधाजी ने उन्हें बताया कि ‘रा’ तो महाविष्णु हैं और ‘धा’ विश्व के प्राणियों और लोकों में मातृवाचक धाय हैं। अत: पूर्वकाल में श्री हरि ने उनका नाम राधा रखा। भगवान श्रीकृष्ण दो रूपों में प्रकट हुए हैं, द्विभुज और चतुर्भुज। चतुर्भुज रूप में वे बैकुंठ में महादेवी माता लक्ष्मी जी के साथ वास करते हैं, वहीं द्विभुज रूप में वे गौलोक घाम में राधाजी के साथ वास करते हैं। राधा-कृष्ण का प्रेम इतना गहरा था कि एक को कष्ट होता तो उसकी पीड़ा दूसरे को अनुभव होती। सूर्योपराग के समय श्रीकृष्ण, रुक्मिणी आदि रानियां वृन्दावनवासी आदि सभी कुरुक्षेत्र में उपस्थित हुए। रुक्मिणी जी ने राधा जी का स्वागत सत्कार किया। जब रुक्मिणीजी श्रीकृष्ण के पैर दबा रही थीं तो उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में छाले हैं। बहुत अनुनय-विनय के बाद श्रीकृष्ण ने बताया कि उनके चरण-कमल राधाजी के हृदय में विराजते हैं। रुक्मिणीजी ने राधा जी को पीने के लिए अधिक गर्म दूध दे दिया था जिसके कारण श्रीकृष्ण के पैरों में फफोले पड़ गए।

सखियां…

पुराणों आदि ग्रंथों में राधा रानी की अष्ट सखियों का नाम आता है, जो नित्यलीला में राधाकृष्ण की विभिन्न प्रकार से सेवा करती थीं।

१. सुदेवी सखी : सुदेवी सखी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में चतुर्थी तिथि दिन सोमवार को सुनहरा गांव में पिता गौरभानु गोप और माता कलावती जी के यहां हुआ था।

२. तुंगविध्या सखी : तुंगविध्या सखी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि दिन मंगलवार को कमाई गांव में पिता अंगद गोप माता ब्रह्मकर्णी जी के यहां हुआ था।

३. चंपकलता सखी : चंपकलता सखी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि दिन गुरुवार को करहला (करह वन) में पिता मनुभूप एवम माता सुकंठी जी के यहां हुआ था।

४. ललिता सखी : ललिता सखी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि दिन गुरुवार को ऊँचागांव में पिता महाभानु गोप एवं माता शारदी जी के यहां हुआ था।

५. विशाखा सखी : विशाखा सखी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि दिन शनिवार को आँजनोख (अंजन वन) में पिता सुभानु गोप एवं माता देवदानी जी के यहां हुआ था।

६. चित्रलेखा (चित्रा) सखी : चित्रा जी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि दिन रविवार को चिकसोली में पिता ब्रजोदर गोप एवम माता अवन्तिका जी के यहां हुआ था।

७. इन्दुलेखा सखी : इन्दुलेखा सखी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि दिन सोमवार को रांकोली (रंकपूर) में पिता रणधीर गोप एवं माता सुमुखी जी के यहां हुआ था।

८. रंगदेवी सखी : रंगदेवी सखी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि दिन बुधवार को डभारा गांव में पिता वीरभानु गोप और माता सुर्यवती जी के यहां हुआ था।

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