March 28, 2024

संकठा मंदिर यानी संकट माता मंदिर या फिर सिर्फ संकठा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर काशी के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। संकठा देवी यानी खतरे की देवी को समर्पित है। मंदिर का निर्माण १८वीं शताब्दी में बड़ौदा महाराजा द्वारा किया गया था। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि संकट देवी को समर्पित यह भारत का एकमात्र मंदिर है।

इतिहास…

१८वीं शताब्दी के अंत में किसी समय बड़ौदा के महाराज ने काशी में जब संकठा घाट का निर्माण करवाया था। उसी समय साथ में संकठा देवी मंदिर का भी निर्माण करवाया था। वर्ष १८२५ में, एक ब्राह्मण विधवा के द्वारा घाट को पक्का बनाया गया।

धार्मिक महत्व…

संकठा नाम संस्कृत अथवा हिन्दी के “संकट” शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है खतरा। देवी संकट देवी मूल रूप से एक मातृका थीं। पुराणों के अनुसार उन्हें विकट मातृका यानी भयंकर माँ के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि संकठा देवी के दस हांथ हैं।

कथा…

गंगा नदी के किनारे स्थित संकठा देवी का मंदिर सिद्धपीठ है। जब देवी सती ने अपने पिता के यज्ञ कुंड में खुद को सती किया था तब भगवान शंकर बहुत ही व्याकुल हो गए थे। तब भगवान शिव ने अपने मन की शांति और आत्मबल के लिए मां संकठा के इसी मंदिर में पूजा की थी। मां के आशीर्वाद और तपोबल से शिवजी को शांति की प्राप्ति यहीं हुई थीं और देवी पार्वती का साथ भी मिला था।

मंदिर में देवी की बेहद अलौकिक प्रतिमा स्थापित की गई है। इस मंदिर की पौराणिक कथा में उल्लेखित है कि जब पांडव अज्ञातवास में थे तो उस समय वह आनंद वन आए थे। काशी को पहले आनंद वन के नाम से ही जाना जाता था। यहां पांडवों ने मां संकठा की भव्य प्रतिमा स्थापित की और बिना अन्न-जल ग्रहण किए एक पैर पर पांचों भाईयों ने पूजा की थी। पांडवों के तप से प्रसन्न हो कर देवी ने उन्हें दर्शन दिए और और आशीर्वाद दिया की गौ माता की सेवा करने पर उन्हें लक्ष्मी व वैभव की प्राप्ति होगी और उनके सारे संकट दूर हो जायेंगे। साथ ही वह विजयी भी होंगे। इसके बाद महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कौरवों को पराजित किया था। इसलिए यहां मान्यता है कि देवी मां के दर्शन के बाद सभी गौ माता की सेवा जरूर करनी चाहिए।

परंपरा…

मां संकठा को केवल यहां नारियल व चुनरी प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि देवी को चढ़े नारियल का स्वाद प्रसाद के रूप में बहुत ही स्वादिष्ट हो जाता है। यह सिद्धपीठ की शक्ति का असर होता है। देवी की चुनरी को सुहाग की चुनरी की तरह प्रयोग किया जाता है।

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