April 19, 2024

काशी का काल भैरव मन्दिर वाराणसी कैन्ट स्टेशन से लगभग ३ किलोमीटर दूर शहर के उत्तरी भाग में स्थित है। यह मन्दिर काशीखण्ड में उल्लिखित पुरातन मन्दिरों में से एक है। इस मन्दिर की पौराणिक मान्यता यह है कि बाबा विश्वनाथ ने काल भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त किया था। भैरव जी को काशीवासियो के दंड देने का अधिकार है।

“पहले ‘काशी कोतवाल’ की पूजा फिर काम दूजा…”

रहस्य…

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शहर में कोई भी शुभ काम करने से पूर्व ‘काशी के कोतवाल’ यानी बाबा काल भैरव की पूजा की जाती है। कहा तो यहां तक जाता है कि काशी नगरी में काल भैरव की मर्जी चलती है। भगवान शिव की पूजा करने से पूर्व भी इन्हीं की पूजा की जाती है।

कारण और कथा…

कहा जाता है कि एक बार ब्रह्माजी और श्री विष्णु के बीच चर्चा छिड़ गई कि उन दोनों में से आखिर कौन बड़ा और शक्तिशाली है। इस विवाद के बीच भगवान शिव की चर्चा हुई। इसी चर्चा के दौरान ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने भगवान शिव की आलोचना कर दी। ये सुनकर बाबा भोलेनाथ बहुत अधिक क्रोधित हो गए। कहा जाता है कि भगवान शिव के इसी गुस्से से काल भैरव का जन्म हुआ। यही वजह है कि काल भैरव को शिव का अंश भी माना जाता है। काल भैरव ने शिव के आलोचन करने वाले ब्रह्माजी के पांचवें मुख को अपने नाखुनों से काट दिया।

काल भैरव ने गुस्से में ब्रह्माजी के पांचवें मुख को काट तो दिया लेकिन वो मुख काल भैरव के हाथ से अलग ही नहीं हो रहा था। इस वक्त वहां शिव जी प्रक्रट हुए। शिव ने काल भैरव से कहा, तुमने ये क्या किया… तुम्हे तो ब्रह्म हत्‍या का दोष लग गया है। इस दोष को मिटाने का एक ही तरीका है कि तुम एक आम व्‍यक्ति की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करो। जिस स्थान पर ब्रह्मा का ये पांचवां मुख तुम्‍हारे हाथ से छूट जाएगा, वहीं पर तुम इस पाप से मुक्‍ती पाओगे। भगवान शिव का आदेश मिलते ही भैरव जी तीनों लोकों का भ्रमण करने के लिए पैदल ही निकल पड़े। परंतु जैसे ही वह अपनी यात्रा शुरू करने ही वाले थे कि शिवजी की प्रेरणा से वहां एक कन्या प्रकट हो गई। यह तेजस्‍वी कन्‍या अपनी जीभ से कटोरे में रखे रक्‍त का पान कर रही थी। कन्या कोई आम कन्या तो थी नहीं, वह ब्रह्म हत्‍या थी। शिवजी ने इस कन्या को भैरव के पीछे छोड़ा था ताकि भैरव तीनों लोकों का भ्रमण करना ना छोड़े।

तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए जब भैरव जी काशी पहुंचे तो उनका पीछा कर रही कन्या पीछे छूट गई। शिवजी के आज्ञानुसार कन्‍या को काशी में प्रवेश वर्जित था। जैसे जी भैरव जी गंगा तट पर पहुंचे तो उनके हाथ से ब्रह्माजी का शीश अलग हो गया। इसी के साथ भैरव जी को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। काल भैरव को पाप से मुक्ति मिलते ही भगवान शिव वहां प्रक्रट हुए और उन्होंने काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया। उसके बाद से कहा जाता है कि काल भैरव काशी नगरी में बस गए।

काशी के कोतवाल…

काशी में काल भैरव को तप करने का आदेश देने के बाद बाबा विश्वनाथ ने काल भैरव को आशीर्वाद दिया कि तुम इस नगर के कोतवाल कहे जाओगे और युगो-युगो तक तुम्हारी इसी रूप में पूजा की जाएगी। इसीलिए कहा जाता है कि विश्वेश्वर के आशीर्वाद से काल भैरव काशी में ही बस गए और वो जिस स्थान पर रहते थे वहीं काल भैरव का मंदिर स्‍थापित है।

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1 thought on “काल भैरव मन्दिर

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