November 22, 2024

काशी के तुलसीघाट के निकट स्थित एक लोलार्क कुण्ड है, जिसके पास में है लोलार्केश्वर महादेव मंदिर। मान्यता है कि यह मंदिर अति प्राचीन है तथा लोलार्क कुण्ड का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। कालान्तर में इन्दौर की रानी अहिल्‍याबाई होल्‍कर ने इस कुण्‍ड के चारों तरफ कीमती पत्‍थर से सजावट करवाई थी। इसी के समीप लोलाकेश्‍वर भगवान का मंदिर है। भादो महीने में यहां लक्खा मेला लगता है और तब काशी के इस लोलार्क कुंड में डुबकी लगाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। अस्सी के भैदानी स्थित प्रसिद्ध लोलार्क कुंड पर हर साल लाखों श्रद्धालुओं का मेला लगता है। लक्खा मेले में लोलार्क पष्ठी या सूर्य षष्ठी स्नान की बड़ी मान्याता है, और कहते हैं कि महादेव लोलार्केश्वर संतान प्राप्ति की कामना वाले दंपतियों की मनोकामना पूरी कर देते हैं। लोलार्क कुंड में स्नान करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से श्रद्धालुओं की यहां भीड़ जुटती है।

इतिहास…

लोलार्केश्वर महादेव मंदिर के महंत के अनुसार, एक बार कभी किसी काल में भगवान सूर्य देव के रथ का एक पहिया यहीं गिरा था जो कुंड के रूप में विख्यात हुआ।

लोलार्क कुंड…

लोकमान्यता है कि जिसको संतान की प्राप्ति ना हो रहा हो, तो वह पुरुष सपत्नीक लोलार्क कुंड में स्नान कर ले तो उसको संतान का लाभ की प्राप्ति होती है। इस कुंड को सूर्य कुंड के नाम से भी जाना जाता है। भाद्रपद्र के शुक्ल पक्ष की पष्ठी वाले दिन कुंड से लगे कूप से पानी आता है। सूर्य की रश्नियों के पानी में पड़ने से संतान उत्पत्ति का योग बनता है। मान्यता है कि इस दौरान महिलाओं के स्नान करने से उन्हें संतान प्राप्त होती है। साधू संन्यासी भी यहां मोक्ष के लिए स्नान करते हैं। स्नान करने के बाद दंपति कुंड पर ही अपने कपड़े छोड़ देते हैं, जिन्हें वे सन्यासी ले लेते हैं। यहां एक फल का त्याग करने का भी विधान है।

वैज्ञानिक मान्यता…

वैज्ञानिक मान्यता के आधार पर लोलार्क कुंड की बनावट कुछ इस तांत्रिक विधि से की गई है कि भादो की षष्ठी तिथि को सूर्य की किरणें इस कुंड की जगह पर अत्यंत प्रभावी बन जाती है। इस दिन यहां स्नान करने के उपरान्त कोई फल खरीदकर उसमें सूई चुभाई जाती है जिसे सूर्य की रश्मि का प्रतीक भी माना जाता है।

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2 thoughts on “लोलार्केश्वर महादेव मंदिर

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