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ॐ भं भं ह्रौं रूरु भैरवाये नम:

श्रीलिंग पुराण में ५२ भैरवों का जिक्र मिलता है। सप्तविंशति ग्रंथ में दस वीर-भैरवों का उल्लेख मिलता है, जबकि नाम सिर्फ ७ भैरवों के हैं और बाकी के तीन बटुक-भैरव हैं। रुद्रायमल तंत्र में ६४ भैरव हैं, जिनमें मुख्य रूप से आठ भैरव माने गए हैं।

अष्ट-भैरव…

१. असितांग भैरव, २. रुद्र या रूरू भैरव, ३. चण्ड भैरव, ४. क्रोध भैरव, ५. उन्मत्त भैरव, ६. कपाली भैरव, ७. भीषण भैरव और ८. संहार भैरव। आदि शंकराचार्य ने भी ‘प्रपञ्च-सार तंत्र’ में इन्हीं अष्ट-भैरवों के नाम लिखे हैं। तंत्र शास्त्र में भी इनका उल्लेख मिलता है। यहां हम रुद्र यानी रूरू भैरव के बारे में चर्चा करेंगे।

रुरु भैरव…

भैरव का रुरु (गुरु) रूप अत्यंत प्रभावी व आकर्षक है। उनके हाथों में कुल्हाड़ी, पात्र, तलवार और कपाल है तथा उनकी कमर में एक सर्प लिपटा हुआ है। बैल पर सवारी करते हैं और इनकी पूजा से ज्ञान की प्राप्त होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण अनुसार रूरु भैरव की उत्पत्ति श्रीकृष्‍ण के दाहिने नेत्र से हुई थी।

मंदिर…

काशी में अष्ट भैरव का मंदिर है जिसमें रूरू भैरव का मंदिर बी४/१६ हनुमान घाट पर अवस्थित है, जो हरिश्चन्द्र घाट के निकट ही है। सोनारपुरा चौराहे से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर सुबह पांच बजे से दस बजे तक व शाम को पांच बजे से रात साढे़ नौ बजे तक खुला रहता है। इनका खास मंदिर रत्नगिरीश्वर (तमिलनाडु) में है।

कृपा…

रूरु भैरव पूर्व·दक्षिण दिशा के स्वामी हैं और कार्तिक नक्षत्र है। इनका रत्न माणिक है। भैरवजी का यह रूप विशेष दौर पर संपत्ति, धन और समृद्धि प्रदान करने वाला है। इन भैरव की उपासना करने से नौकरी और रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। घर में प्रेमपूर्ण वातावरण निर्मित होता है। जीवन में हर प्रकार के संकट से रक्षा होती है।

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