November 22, 2024

रवीन्द्र शंकर चौधरी का जन्म ७ अप्रैल, १९२० को बनारस के बैरिस्टर श्री श्यामशंकर जी के यहाँ हुआ था। उन्होंने विश्व के तकरीबन सभी बड़े संगीत उत्सवों में हिस्सा लिया है। उनका समय अपने भाई उदय शंकर के नृत्य समूह के साथ दौरा करते हुए ही बीता। उन्हें हम पण्डित रविशंकर जी के नाम से जानते हैं, आईए आज हम उनके जन्मदिवस के शुभ अवसर पर याद करते हैं…

पण्डित रविशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अपने भाई श्री उदयशंकर जी के नृत्य समूह के एवं देश के महान संगीतकार उस्ताद अल्लाऊद्दीन खाँ से प्राप्त की थी। अपने भाई के साथ भारत और भारत से बाहर समय गुजारने वाले रविशंकर ने उस्ताद से १९३८ से १९४४ तक सितार के गूढ़ रहस्यों को सीखा और जाना। और बाद में उनका विवाह भी उस्ताद अल्लाऊद्दीन खाँ की बेटी अन्नपूर्णा से हुआ। रविशंकर जी संगीत की परम्परागत भारतीय शैली के अनुयायी थे। उनकी अंगुलियाँ जब भी सितार पर गतिशील होती थी, सारा वातावरण झंकृत हो उठता था। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय संगीत को ससम्मान प्रतिष्ठित करने में उनका उल्लेखनीय योगदान है। उन्होंने कई नई-पुरानी संगीत रचनाओं को भी अपनी विशिष्ट शैली से सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की। रविशंकर जी ने भारत, कनाडा, यूरोप तथा अमेरिका में बैले तथा फ़िल्मों के लिए भी संगीत कम्पोज किया। इन फ़िल्मों में चार्ली, गांधी और अपू त्रिलोगी भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त भी उन्होंने अनेक फ़िल्मों में भी संगीत दिया है।

उनकी सत्यजीत राय द्वारा निर्मित बंगाली फ़िल्म अपू त्रिलोगी एक बहुचर्चित फ़िल्म थी। हिन्दी फ़िल्म अनुराधा में भी उन्होंने संगीत दिया है। इसके अलावा सत्यजीत राय की फ़िल्म और गुलज़ार द्वारा निर्देशित मीरा भी शामिल है। रिचर्ड एटिनबरा की फ़िल्म गांधी में भी उनका ही संगीत था।

प्रारम्भ में पंडितजी ने अमेरिका के प्रसिद्ध वायलिन वादक येहुदी मेन्युहिन के साथ जुगलबन्दियों में भी विश्व-भर का दौरा किया।तबला के महान् उस्ताद अल्ला रक्खा भी पंडित जी के साथ जुगलबन्दी कर चुके हैं। वास्तव में इस प्रकार की जुगलबन्दियों में ही उन्होंने भारतीय वाद्य संगीत को एक नया आयाम दिया है। पंडितजी ने अपनी लम्बी संगीत-यात्रा में महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की रचना भी की हैं। ‘माई म्यूजिक माई लाइफ’ के अतिरिक्त उनकी ‘रागमाला’ नामक पुस्तक विदेश में प्रकाशित हुई हैं। रविशंकर जी ने वर्ष १९७१ में ‘बांग्लादेश मुक्ति संग्राम’ के समय वहां से भारत आए लाखों शरणार्थियों की मदद के लिए कार्यक्रम करके धन एकत्र किया था। हिन्दुस्तानी संगीत को रविशंकर ने रागों के मामले में भी बड़ा समृद्ध बनाया है। यों तो उन्होंने परमेश्वरी, कामेश्वरी, गंगेश्वरी, जोगेश्वरी, वैरागीतोड़ी, कौशिकतोड़ी, मोहनकौंस, रसिया, मनमंजरी, पंचम आदि अनेक नये राग बनाए हैं, पर वैरागी और नटभैरव रागों का उनका सृजन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब रेडियो पर कोई न कोई कलाकार इनके बनाए इन दो रागों को न बजाता हो।

सम्मान और पुरस्कार

पंडित रवि शंकर को विभिन्न विश्वविद्यालयों से डाक्टरेट की १४ मानद उपाधियां प्राप्त हो चुकी हैं। रविशंकर जी को तीन ग्रेमी पुरस्कार मिले हैं। रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, पद्म भूषण, पद्म विभूषण तथा भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्‍न भी उन्हें मिल चुका है। रविशंकर जी को भारतीय संगीत खासकर सितार वादन को पश्चिमी दुनिया के देशों तक पहुंचाने का श्रेय भी दिया जाता है। १९६८ में उनकी ‘यहूदी मेनुहिन’ के साथ उनकी एल्बम ‘ईस्ट मीट्स वेस्ट’ को पहला ग्रैमी पुरस्कार मिला था। फिर १९७२में ‘जॉर्ज हैरिसन’ के साथ उनके ‘कॉनसर्ट फॉर बांग्लादेश’ को ग्रैमी दिया गया। संगीत जगत् का ऑस्कर माने जाने वाले ग्रैमी पुरस्कार की विश्व संगीत श्रेणी में पंडित रविशंकर के साथ स्पर्धा में ब्रिटेन के प्रख्यात संगीतकार जॉन मेक्लॉलिन और ब्राज़ील के गिलबर्टो गिल और मिल्टन नेसिमेल्टो भी शामिल थे। १९८६ में राज्यसभा के मानद सदस्य बनाकर उन्हें सम्मानित किया गया। वे १९८६ से १९९२ तक राज्य सभा के सदस्य रहे। सितार वादक पंडित रविशंकर भारत के उन गिने चुने संगीतज्ञों में से थे जो पश्चिम में भी लोकप्रिय रहे।

१९८२ के दिल्ली एशियाई खेल समारोह के स्वागत गीत को उन्होंने स्वर प्रदान किये थे। इनके अलावा भी उन्हें देश-विदेश में कई बार अनन्य सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।

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