आपने कभी ना कभी चापेकर बंधुओं का नाम तो जरूर सुना होगा। चापेकर बंधु तीन भाई थे, जो भारतीय इतिहास में अपना अलग स्थान रखते हैं। ये तीनों भाई बाल गंगाधर तिलक से अत्यधिक प्रभावित थे। इनके नाम दामोदर हरी चापेकर, बालकृष्ण चापेकर और वासुदेव चापेकर हैं। महाराष्ट्र के इन तीनों चापेकर बन्धुओं ने बाल गंगाधर तिलक के प्रभाव में आकर देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
बालकृष्ण तथा दामोदर चापेकर ने महारानी विक्टोरिया के हीरक जयन्ती समारोह के अवसर पर दो ब्रिटिश अधिकारियों रैण्ड और ले.एम्हर्स्ट की हत्या कर दी थी।इस हत्याकाण्ड के बाद दोनों भाईयों को गिरफ़्तार कर फाँसी दे दी गयी। तीसरे भाई वासुदेव चापेकर ने गणेश शंकर द्रविड़ की हत्या कर दी, जिसने दामोदर और बालकृष्ण को गिरफ़्तार करवाया था। वासुदेव चापेकर को गिरफ़्तार करके फाँसी दी गयी।तीनों भाईयों ने भारत की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया और सदा के लिए अमर हो गये।
चापेकर बंधुओं में से एक श्री दामोदर हरी चापेकर को बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा थी। विरासत के रूप में उन्हें कीर्तन करने का यश-ज्ञान प्राप्त था। जिन्होने महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को अपना आदर्श मान लिया था, आईए हम उनके जन्मोत्सव पर उनके जन्म, यश, कीर्ति अथवा यूं कहें उनके संपूर्ण इतिहास को जाने और याद करें…
भारत की आज़ादी की लड़ाई में प्रथम क्रांतिकारी धमाका करने वाले वीर दामोदर हरी चापेकर का जन्म २४ जून, १८६९ को महाराष्ट्र में पुणे के ग्राम चिंचवाड़ में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चापेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था।
वर्ष १८९७ के साल में पुणे नगर प्लेग जैसी भयंकर बीमारी से पीड़ित था। अभी अन्य पाश्चात्य वस्तुओं की भांति भारत के गाँव में प्लेग का प्रचार नहीं हुआ था। पुणे में प्लेग फैलने पर सरकार की और से जब लोगों को घर छोड़ कर बाहर चले जाने की आज्ञा हुई तो उनमें बड़ी अशांति पैदा हो गई। उधर शिवाजी जयंती तथा गणेश पूजा आदि उत्सवों के कारण सरकार की वहां के हिन्दुओं पर अच्छी निगाह थी। वे दिन आजकल के समान नहीं थे। उस समय तो स्वराज्य तथा सुधार का नाम लेना भी अपराध समझा जाता था। लोगों के मकान न खाली करने पर सरकार को उन्हें दबाने का अच्छा अवसर हाथ आ गया। प्लेग कमिश्नर मि. रेन्ड की ओट लेकर कार्यकर्ताओं द्वारा खूब अत्याचार होने लगे। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई और सारे महाराष्ट्र में असंतोष के बादल छा गए। इसकी बाल गंगाधर तिलक व आगरकर जी ने बहुत कड़ी आलोचना की, जिससे उन्हें जेल में डाल दिया गया।
गवर्नमेन्ट हाउस, पूना में महारानी विक्टोरिया का ६०वाँ राजदरबार बड़े समारोह के साथ मनाया गया। जिस समय मि. रेन्ड अपने एक मित्र के साथ उत्सव से वापस आ रहा था, इसी मौके का फायदा उठाकर दामोदर हरी चापेकर और बालकृष्ण चापेकर ने देखते-देखते रेन्ड को गोली मार दी, जिससे रेन्ड ज़मीन पर आ गिरा। उसका मित्र अभी बच निकलने का मार्ग ही तलाश रहा था कि एक और गोली ने उसका भी काम तमाम कर दिया। चारों ओर हल्ला मच गया और चापेकर बंधु उसी स्थान पर गिरफ्तार कर लिए गए।अदालत में चापेकर बंधुओं पर एक और साथी के साथ अभियोग चलाया गया और सारा भेद खुल गया। एक दिन जब अदालत में चापेकर बंधुओं की पेशी हो रही थी तो उनके तीसरे भाई वासुदेव चापेकर ने वहीं पर उस सरकारी गवाह को मार दिया, जिसने दामोदर और बालकृष्ण को पकड़वाया था। उस समय किसी को इस बात का ध्यान तक न था कि वह छोटा-सा लड़का प्रतिहिंसा की आग से इतना कम्पित हो उठेगा। अंत में तीनों चापेकर बन्धु भाइयों को एक और साथी के साथ फांसी दे दी गई। इस प्रकार अपने जीवन दान के लिए उन्होंने देश या समाज से कोई भी प्रतिदान की चाह नहीं रखी।
बहुत ही सुन्दर और उम्दा जानकारी प्राप्त हुई है, हार्दिक बधाई एवं शुभकामना