आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी अपने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में लिखते हैं कि, “भक्तिभाव से पूर्ण होकर वे जो भजन गाया करते थे उनका संग्रह (संवत् १६६१) ग्रंथ साहब में किया गया है।” आप सोच रहे होंगे कि यहां ‘ वे ‘ शब्द किसके लिए आया है। तो इसमें इतना सोचने की क्या जरूरत है, जहां गुरु ग्रंथ साहिब का नाम अा गया वहां नानक देव जी के सिवा और कोई कैसे हो सकता है।सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी सर्वेश्वरवादी थे, उन्होंने मूर्तिपूजा के विपरीत एक परमात्मा की उपासना का एक अलग मार्ग दिया। साथ ही उनके द्वारा दिए संदेश तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक परिस्थितियों पर आधारित हैं, जो संत साहित्य में संकलित हैं। अगर उनके उपदेशों का सार निकाला जाए तो, सार यह है कि ईश्वर एक है और उनकी उपासना सबके लिये समान है। अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु सभी के गुण समेटे हुए हैं आज हम कार्तिक पूर्णिमा के दिन नानक जी को नमन करेगें और उनके जीवन चरित्र को अंगीकार करेंगे…
परिचय…
नानक देव जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा संवत् १५२७ को राय भोई की तलवंडी, (वर्तमान ननकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान, पाकिस्तान) को एक खत्रीकुल में हुआ था। जन्म पर अगर अंग्रेजी तारीख की बात करें तो यहां विद्वानों में मतभेद है, कोई विद्वान इनकी जन्मतिथि १५ अप्रैल, १४६९ कहते हैं, तो यहीं कुछ ज्ञानियों का कहना है कि इनका जन्म १५ दिसम्बर, १४६९ को हुआ है। लेकिन प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो संभवतः अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के १५ दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम मेहता कालूचंद खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था और बहन का नाम नानकी था। जिस तलवंडी ग्राम में इनका जन्म हुआ़ था, कालांतर में नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया।
बालक नानक बचपन से ही प्रखर बुद्धि के थे, मगर लड़कपन से ही सांसारिक विषयों पर ये सदा उदासीन रहा करते थे। पढ़ने लिखने में भी इनका मन नहीं लगता था अतः ७-८ वर्ष की अल्प आयु में स्कूल छूट गया। लेकिन बात कुछ और थी उनके भगवत्प्राप्ति के संबंध में प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें घर छोड़ने आ गए। इसके बाद तो इनका सारा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत होने लगा। नानक देव जी के बचपन की कई आंखों देखीं चमत्कारिक घटनाएं हैं जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य पुरष मानने लगे। इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार इनमें श्रद्धा रखते थे।
पहली घटना के अनुसार; नानक देव जी के सिर पर सर्प द्वारा छाया करने का दृश्य देखकर राय बुलार नतमस्तक हो गए थे।
इनका विवाह सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहने वाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। ३२ वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों पुत्रों के जन्म के उपरांत १५०७ में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़। उन पुत्रों में से ‘श्रीचंद आगे चलकर उदासी संप्रदाय के प्रवर्तक हुए।
पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के पृष्ठ संख्या ७२१ में उल्लेख है कि भगवान कबीर साहिब जी श्री गुरु नानक देव जी के गुरु थे। नानक देव जी स्वयं अपनी वाणी में कहते हैं;
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।
उदासियाँ…
मरदाना, लहना, बाला और रामदास जी को लेकर गुरु नानक देव जी ने यात्रा शुरू की। ये घूम घूमकर उपदेश करने लगे। वर्ष १५२१ तक इन्होंने चार यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन्हीं यात्राओं को पंजाबी में “उदासियाँ” कहा जाता है।
जीवन के अंतिम दिनों में इनकी ख्याति बेहद बढ़ गई साथ ही इनके विचारों में भी परिवर्तन आया। वे अपने परिवार और सगे संबंधियों के साथ रहने लगे और मानवता कि सेवा में समय व्यतीत करने लगे। उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है और एक बड़ी धर्मशाला उसमें बनवाई। इसी स्थान पर आश्वन कृष्ण १०, संवत् १५९७ यानी २२ सितंबर, १५३९ को इनका परलोक गमन हुआ। अनंत की यात्रा से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो कालांतर में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।
नानक देव जी सूफी कवि भी थे। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, बेहद निराली है। गुरु नानक देव जी की भाषा में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे।