November 23, 2024

कंगना की बात पर पूर्णतः सहमत नहीं हूं, मगर उसने सच बोलने का साहस अवश्य दिखाया है। सहमत इसलिए हूं कि उसने १९४७ की आजादी के मायने को समझने की एक दिशा दी है और असहमत इसलिए हूं कि उन्होंने आजादी के नए वर्ष को प्रमाणित करने की कोशिश की है। जबकि सच्चाई कुछ और है, जिसे समझना होगा। हमसे बहुत कुछ छुपाया गया है उसे जनता के सम्मुख लाना होगा… हो सकता है इसमें हम पूरी तरह सफल ना हों, हो सकता है हम यहां सब कुछ लिख ना पाएं। मगर आप सहयोग बनाए रखिएगा…

इसके लिए चाहें तो आप संविधान का आर्टिकल १४७ अवश्य पढ सकते हैं, हो सके तो गूगल पर भी सर्च कर सकते हैं। भारत आज भी #राष्ट्रमंडल समूह का सदस्य है। भारत एक आजाद देश नहीं, बल्कि डोमिनियन देश है। भारत आज भी राष्ट्रमंडल यानी इंग्लैंड के गुलाम देशों का एक समूह है। जिसकी अध्यक्ष इंग्लैंड की महारानी हैं। और वे बिना वीजा के, किसी भी देश में आ जा सकती हैं।

इसको इस तरह से समझ सकते हैं…

एक स्वतंत्र देश, दूसरे देशों में राजदूत की नियुक्ति करता है। जबकि एक गुलाम देश, दूसरे गुलाम देश में हाई कमिश्नर यानि उच्चायुक्त की नियुक्ति करता है।

उदहारण के लिए…

भारत अमेरिका में राजदूत की नियुक्ति करता है। क्योंकि भारत और अमेरिका अलग – अलग देश हैं।

परंतु भारत और पाकिस्तान एक दूसरे के देश में, हाई कमिश्नर यानि उच्चायुक्त की नियुक्ति करते हैं। क्योंकि ये दोनों कोई अलग अलग देश नहीं, बल्कि इंग्लैंड के मालिकाना अधिकार वाले राष्ट्रमंडल देशों के समूह के सदस्य देश हैं। वर्ष १९४७ में आजादी नहीं, बल्कि सत्ता का हस्तांतरण हुआ था। जिसका आधार, वर्ष १९३५ का Transfer of Power Agreement है। जिसके कारण आज भी अंग्रेजों के बनाए हुए अधिकतर कानून ज्यों के त्यों चल रहे हैं और बहुत सारे भवनों के नाम अभी भी पूरी तरह से नहीं बदले हैं।

मैं कोई कंगना राणावत के पक्ष और बिपक्ष की बात नही कर रहा, मुझे सिर्फ इस बात की खुशी है कि कोई तो है जो सच्चाई पर बोला।

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