April 15, 2025

निर्देशक – दिया अन्नपुर्णा घोष
कलाकार – अभिषेक बच्चन, चित्रागंदा सिंह, परन बंदोपाध्याय, समारा तिजोरी
कहानी – सुजोय घोष

साल २०१२ में एक फिल्म आई थी कहानी, मुख्य किरदार को विद्या बालन ने अभिनीत किया था। इस फिल्म में एक छोटा सा किरदार है ‘बॉब बिस्वास’, जो एलआईसी का एजेंट है, मगर वास्तव में वह एक कांट्रैक्ट किलर है। अगर आप ने ‘कहानी’ देखा है तो आपने उस किरदार को पर्दे पर आते ही सिहरन जरूर महसूस की होगी। वैसे तो कहानी के सभी पात्र चर्चित हुए थे, मगर जो चर्चा उस छोटे से किरदार को मिली थी वह अपने आप काबिले तारीफ है। लिहाजा, सुजोय घोष इसी बॉब बिस्वास को लेकर आए हैं।

कहानी…

एक अस्पताल से कहानी शुरू होती है, जहां बॉब बिस्वास ८ सालों के बाद कोमा से बाहर आया है। बॉब को होश तो आ चुका है, लेकिन उसे अपनी पिछली जिंदगी से संबंधित कुछ भी याद नहीं है। इस बीच पुलिस के कुछ अफसरों से उसकी मुलाकात होती है, वो उसे बताते हैं कि वह एक कांट्रैक्ट किलर है और अब उसे काम पर लौटना होगा। जैसे ही बॉब बिस्वास को अपनी पुरानी जिंदगी याद आती है, वह स्वयं को नैतिकता से दूर पाता है और यही बात उसे घुटन देती है। दूसरी ओर कोलकाता में बच्चों के बीच ड्रग्स का जाल फैल रहा है। बच्चों में ‘अटेंशन’ बढ़ाने के नाम पर एक ड्रग्स को धड़ल्ले से बेचा जा रहा है, जिसमें कई बड़े नाम शामिल हैं। ड्रग्स के माफियाओं के साथ बॉब बिस्वास की कहानी कैसे जुड़ती है और उसकी जिंदगी कैसे कैसे मोड़ लेते हैं, इसी के इर्द गिर्द घूमती है पूरी कहानी।

अभिनय…

पहली फिल्म ‘कहानी’ में शाश्वत चटर्जी बॉब के किरदार में नजर आए थे, जबकि इस फिल्म में अभिषेक बच्चन ने बॉब के किरदार के साथ न्याय करने की भरपूर कोशिश की है। पहले बॉब बिस्वास के चेहरे वाला भोलापन इस बार भी नजर आया है। लेकिन निर्देशक महोदय शायद अभिषेक के स्टारडम में फंस गए इसीलिए उनके किरदार को ज्यादा शेड्स नहीं दे पाए। फिल्म में यह किरदार स्वयं को दोहराता सा लगने लगता है। यहां कमी किसकी है, अभिषेक बच्चन की या निर्देशक की या लेखक की, कहना बड़ा मुश्किल है। चित्रागंदा सिंह जैसी दमदार अभिनेत्री को भी काफी औसत सा रोल दिया गया है, जिसमें उनके लिए करने को कुछ है ही नहीं। इतना ही नहीं अमर उपाध्याय जैसे कलाकार को फिल्म में क्यों रखा है, समझ में नहीं आया। बॉब बिस्वास के अलावा फिल्म में एक किरदार ध्यान आकर्षित करते हैं वो है काली दा, जो सभी के राजदार हैं। काली दा के किरदार में परन बंदोपाध्याय ने शानदार काम किया है। उनका किरदार संस्पेंस लिए हुए है। निर्माता निर्देशक चाहें तो इस किरदार पर आगे फिल्म बना सकते हैं, जैसा कि इस फिल्म बॉब बिस्वास में किया गया है।

निर्देशन…

फिल्म ‘कहानी’ में बॉब बिस्वास के किरदार को जिस तरह खड़ा किया गया था, उसकी जिंदगी पर फिल्म बनना एक दिलचस्पी पैदा कर रही थी। लेकिन लेखक सुजोय घोष और निर्देशक दिया अन्नपुर्णा घोष ने इस किरदार के साथ सही से न्याय नहीं किया है। कुछ दृश्यों को अगर छोड़ दिया जाय तो फिल्म उत्सुकता नहीं जगाता। बॉब बिस्वास की असली कहानी सिहरन और मासूमियत का मिला जुला रूप है, यहां निर्देशक को मालूम होना चाहिए कि बॉब से दर्शक पहले से ही परिचित हैं। जो भी इस फिल्म को देखने जाएगा, वह पूर्वाग्रह से ग्रस्त होगा। बदलाव के बहुत कम मौके थे, मासूमियत को तो पकड़े रखा मगर नया दिखाने के चक्कर में निर्देशक ने सिहरन को हांथ से जाने दिया या फिसल गया, जो भी हो। जहां कहानी में सभी किरदार कसे हुए थे वहीं इस फिल्म में किरदार कुछ अधूरे से लगते हैं। जहां पहली फिल्म भारतीय सस्पेंस फिल्म के इतिहास में अमर है, वहीं इस फिल्म में सस्पेंस और ड्रामा नजर ही नहीं आते। साथ ही सुजोय घोष का लेखन भी ढ़ीला है। फिल्म के पात्रों को उन्होंने काफी सतही रखा है।

तकनीकी पक्ष…

फिल्म के संवाद लिखे हैं सुजोय घोष और राज वसंत ने, जो काफी औसत हैं। गैरिक सरकार का कैमरावर्क भी फिल्म में कुछ खास नहीं जोड़ता। जहां सुजोय घोष ने अपनी ‘कहानी’ में कोलकाता को फिल्म का एक अहम हिस्सा बनाया था, ‘बॉब बिस्वास’ में शहर को जैसे पूरी तरह से भूला दिया गया है।

देंखे या ना देंखे…

यदि आप इसे विद्या बालन की ‘कहानी’ से जोड़कर देखना चाहते हैं, तो फिल्म आपको निराश कर सकती है। फिल्म में ना दमदार सस्पेंस है, ना ही थ्रिल। हां अगर अपने ‘कहानी’ को नहीं देखा है तो आप इसे देख सकते हैं। क्योंकि फिल्म के अंत में बॉब बिस्बास और विद्या बालन का जो कनेक्शन दिखाया गया है, वह आपको ‘कहानी’ देखने पर मजबूर करेगी। उस कनेक्शन को देख कर लगता है कि फिल्म का अगला सीक्वल भी रिलीज किया जायेगा। यानी; कहानी, कहानी २ और अब बॉब बिस्बास के बाद की कोई नई कहानी।

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