November 22, 2024

साहित्य अकादमी, पद्मभूषण और ज्ञानपीठ आदि जैसे पुरस्कारों से सम्मानित मराठी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु सखाराम खांडेकर जन्म १९ जनवरी, १८९८ को महाराष्ट्र के सांगली में हुआ था।

परिचय…

विष्णु सखाराम जी मराठी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार व मेधावी छात्र थे। वर्ष १९१३ में बंबई विश्वविद्यालय से मैट्रिक में अच्छे अंकों से वे उत्तीर्ण हुए थे। बाद में पुणे जाकर उन्होंने फ़र्ग्युसन कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था, इस बीच उनके पिता का देहांत हो गया। सामाजिक दबाव अथवा लाज कहें शुरू शुरू में उनके चाचा ने उन्हें अपने साथ रख कर उनके शैक्षिक खर्च की जिम्मेदारी उठाई मगर कुछ दिनों के बाद उनके शिक्षण पर ख़र्च करना बेकार लगा, इसलिए कॉलेज छुड़वाकर विष्णु सखाराम खांडेकर को घर वापस भेज दिया। घर वापस आकर बीमार पड़ गए। बीमारी इतनी गंभीर थी कि उन्हें ठीक होने में तीन वर्ष लग गए। वर्ष १९२० में घर से लगभग २४ कि.मी. दूर शिरोद नामक गांव के एक स्कूल में अध्यापन कार्य करने लगे। इसके नौ वर्ष बाद विष्णु सखाराम खांडेकर का मनु मनेरीकर नामक एक कन्या से उनका विवाह हुआ। मनु शिक्षित नहीं थीं और साहित्य के प्रति उनकी किसी प्रकार की रुचि भी नहीं थी; पर वह कुशल गृहिणी थीं। वर्ष १९३३ में एक विषैले सांप द्वारा डसे जाने पर खांडेकर को बहुत कष्ट सहना पड़ा और इसका प्रभाव उनके चेहरे पर बाद तक बना रहा।

पटकथा लेखन…

वर्ष १९३८ में विष्णु सखाराम खांडेकर शिरोद से कोल्हापुर आ गए और उसके बाद से वहीं रहकर प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, अभिनेता मास्टर विनायक के लिए फ़िल्मी पटकथा लिखने में लग गए। कुछ वर्ष बाद मास्टर विनायक की असमय मृत्यु हो जाने पर पटकथा लेखन से उनकी रुचि हट गई और फिर वह अपने लेखन-कार्य में संलग्न हो गए। वर्ष १९४१ में विष्णु सखाराम खांडेकर को ‘मराठी साहित्य सम्मेलन’ का अध्यक्ष चुना गया। उनकी रचनाओं पर मराठी में ‘छाया’, ‘ज्वाला’, ‘देवता’, ‘अमृत’, ‘धर्मपत्नी’ और ‘परदेशी’ आदि फ़िल्में भी बनीं। इन सब फ़िल्मों में से ‘ज्वाला’, ‘अमृत’ और ‘धर्मपत्नी’ नाम से हिन्दी भाषा में भी फ़िल्में बनाई गईं। उन्होंने मराठी फ़िल्म ‘लग्न पहावे करून’ की पटकथा और संवाद लेखन का कार्य भी किया था।

लेखन…

खांडेकर को प्रतिकूल स्वास्थ्य के कारण जीवन भर कष्ट भोगने पड़े। उनकी दृष्टि तक चली गई, मगर ७८ वर्ष की आयु में भी वह प्रमुख मराठी पत्र-पत्रिकाओं को नियमित रचना-सहयोग दिया करते और साहित्य जगत की प्रत्येक नई गतिविधि से संपर्क बनाए रखते।

पुरस्कार…

सुदीर्घ और यशस्वी जीवन में उन्होंने अनेक पुरस्कार व सम्मान प्राप्त किये। ययाति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी ने भी पुरस्कृत किया और बाद में फ़ेलोशिप भी प्रदान की। भारत सरकार ने साहित्यिक सेवाओं के लिए पद्मभूषण उपाधि से अलंकृत किया। ज्ञानपीठ पुरस्कार द्वारा सम्मानित होने वाले वह प्रथम मराठी साहित्यकार थे। भारत सरकार ने विष्णु सखाराम खांडेकर के सम्मान में वर्ष १९९८ में एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया था।

रचनाएँ…

उपन्यास : देवयानी, ययाति, शर्मिष्ठा, कचदेव आदि।

प्रकाशन…

विष्णु सखाराम खांडेकर के लेखों और कविताओं का प्रकाशन वर्ष १९१९ से शुरू हुआ। अपनी उन्हीं दिनों की एक व्यंग्य रचना के कारण उन्हें मानहानि के अभियोग में फंसना पड़ा, पर उससे सारे कोंकण प्रदेश में वह अचानक प्रसिद्ध हो गए। पुणे में उन्हें प्रमुख कवि नाटककार रामगणेश गडकरी के निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। गडकरी और कोल्हटकर के अतिरिक्त, जिन अन्य मराठी लेखकों का विशेष प्रभाव खांडेकर पर पड़ा, वे गोपाल गणेश अगरकर, केशवसुत और हरि नारायण आप्टे थे।

स्वतंत्र साहित्यिक विधा…

विष्णु सखाराम खांडेकर ने साहित्य की विभिन्न विधाओं का कुशल प्रयोग किया। उनकी लगन का ही फल था कि आधुनिक मराठी लघुकथा एक स्वतंत्र साहित्यिक विधा के रूप में प्रतिष्ठित हुई और वैयक्तिक निबंध को प्रोत्साहन मिला। ‘रूपक-कथा’ नामक एक नए कहानी रूप को भी उन्होंने विकसित किया, जो मात्र प्रतीक कथा या दृष्टांत कथा न होकर और भी बहुत कुछ होती है। अक्सर वह गद्यात्मक कविता जैसी जान पड़ती है। वर्ष १९५९ में, अर्थात खांडेकर जी के ६१वें वर्ष में प्रकाशित ‘ययाति मराठी उपन्यास साहित्य में एक नई प्रवृत्ति’ का प्रतीक बना। स्पष्ट था कि जीवन के तीसरे पहर में भी उनमें नवसृजन की अद्भुत क्षमता थी।

निधन…

मराठी भाषा के इस चर्चित साहित्यकार विष्णु सखाराम खांडेकर का निधन २ सितंबर, १९७६ को हुआ।

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