May 2, 2024

आज हम मुक्तक, ब्रजभाषा के छंद और बेमिसाल लोक गीतों के लोकप्रिय रचनाकार सोम ठाकुर जी के बारे में चर्चा करने वाले हैं, जितने वे सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक हैं उतने ही मर्मज्ञ कवि भी हैं।

परिचय…

सोम ठाकुर का जन्म ५ मार्च, १९३४ को उत्तरप्रदेश के आगरा अंतर्गत राजामंडी के अहीर पाड़ा के रहने वाले श्री दीपचन्द ठाकुर तथा श्रीमति श्यामदेवी की इकलौती संतान के रूप में हुआ था। जन्मकाल के अनुसार इनका नाम निरंजन सिंह था, परंतु इनका नाम सोम प्रकाश ठाकुर रखा गया। किंतु कविता लिखने के पश्चात् इनके नाम से ‘प्रकाश’ हट गया और प्रसिद्ध कवि तथा गीतकार प्रो. जगत प्रकाश चतुर्वेदी के कहने पर इनका नाम सिर्फ़ सोम ठाकुर रह गया।

सोम ठाकुर का विवाह मुरैना ज़िले के निवासी जगन्नाथ सिंह की इकलौती पुत्री सुमन लता से ५ मई, १९५४ को संपन्न हुआ। जिनसे उन्हें चार पुत्रियों- वंदना, अर्चना, नीराजना तथा आराधना तथाbदो पुत्रों- अजित वरदान सिंह व अमित श्रीदान सिंह की प्राप्ति हुई।

शिक्षा…

सोम ठाकुर को माता-पिता ने इकलौती संतान होने के कारण दस वर्ष तक घर पर ही अंग्रेज़ी, गणित तथा हिन्दी की पढ़ाई मास्टर पंडित रामप्रसाद तथा पंडित सेवाराम द्वारा करवाई। ५वीं कक्षा से १०वीं कक्षा तक की शिक्षा इन्होंने ‘गवर्नमेंट हाईस्कूल’, आगरा से प्राप्त की। हाईस्कूल के बाद इन्होंने ‘आगरा कॉलेज’ से जीव विज्ञान के साथ इण्टर किया और फिर बी.एस.सी. की पढ़ाई करने लगे। लेकिन इसी बीच सोम ठाकुर की रुचि साहित्य और हिन्दी कविता की ओर हो गई। अत: उन्होंने बी.एस.सी. छोड़ दी। अब सोम ठाकुर ने अंग्रेज़ी साहित्य और हिन्दी साहित्य के साथ बी.ए. किया और फिर हिन्दी से एम.ए. किया।

अध्यापन कार्य…

उन्होंने वर्ष १९५९ में आगरा कॉलेज में पढ़ाने का कार्य शुरू किया। जहां वे वर्ष १९५९ से वर्ष १९६३ तक अध्यापन कार्य किया और फिर वर्ष १९६३ से १९६९ तक आगरा के सेन्ट जोन्स कॉलेज में पढ़ाया। उसके बाद में इस्तीफा देकर मैनपुरी चले गए। मैनपुरी में नॅशनल कॉलेज, भोगांव में ये विभागाद्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे।

विदेश गमन…

वर्ष १९८४ तक की नौकरी के पश्चात वे अमेरिका चले गए। परंतु उससे पूर्व वे कनाडा गए, उसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से हिन्दी के प्रसार के लिए मॉरिसस भेजे गए। तत्पश्चात अमेरिका चले गए। यहाँ सोम ठाकुर वर्ष २००४ तक रहे। वापस आने के बाद वे मुलायम सिंह की सपा सरकार ने इन्हें ‘उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान’ का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया और राज्यमंत्री का दर्जा दिया। जहां साढ़े तीन साल तक रह कर वे वापस आगरा लौट आए।

व्यक्तित्व…

सोम ठाकुर बड़े ही सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के कवि हैं। सबसे पहली बार आगरा के एक प्रख्यात बाज़ार रावतपाड़ा में स्थित धर्मशाला में कवि सम्मेलन हो रहा था, जिसकी अध्यक्षता डॉ. कुलदीप कर रहे थे। सोम ठाकुर एक ही कविता लिखकर ले गये थे, जिसे उन्होंने अपने मधुर कंठ से पढ़ा और जो काव्य प्रेमियों को बेहद पसंद आई। उनको अन्य कविताओं को सुनाने के लिए आग्रह किया। वे बड़े धर्म संकट में पड़ गये, दूसरी कविता हो तो पढ़ें। उन्होंने अपनी सहज और सरल वाणी में स्पष्ट कह दिया कि- “मेरे पास इस समय एक ही कविता थी। वह मैंने आपको सुना दी, दूसरी कविता के लिए क्षमा करें।” अपने कुशल व्यवहार तथा मधुर कंठ के कारण २१ जून, १९५५ में आकाशवाणी, दिल्ली से भी सोम ठाकुर को कवितायें पढ़ने का अवसर प्राप्त होने लगा। सन १९६१ से ब्रजभाषा में सोम ठाकुर ने अपनी वाणी में कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था।

संपादक…

हिन्दी साहित्य के नवसृजन एवं साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आगरा में एक साहित्यिक संस्था ‘रत्नदीप’ थी, जिसे हृषिकेश चतुर्वेदी अपनी सेवायें देते थे तथा प्रति सोमवार को अपने निवास स्थान पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया करते थे। इसी संस्था के अंतर्गत हिन्दी का मासिक पत्र ‘नवीन’ प्रकाशित किया जाता था, जिसमें नवोदित रचनाकारो की रचनाएँ प्रकाशित होती थी। सह संपादक का कार्यभार सोम ठाकुर संभालते थे।

कृतियाँ…

१. प्रकाशित : अभियान – खंड काव्य (१९९३), एक ऋचा पाटल को – नवगीत संग्रह (१९९७)।

२. अप्रकाशित : चंदन और अबीर – राष्ट्र बोध के गीतों का संग्रह, लोकप्रिया – लोकप्रिय पारंपरिक गीतों का संग्रह, ब्रज-छन्दिमा – ब्रजभाषा की कृतियों का संकलन।

सम्मान तथा पुरस्कार…

१. भारतीय आत्मा पुरस्कार, कानपुर
२. डॉ. शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ गीत पुरस्कार, उन्नाव
३. काका हाथरसी ट्रस्ट द्वारा ‘ब्रजभाषा पुरस्कार’, हाथरस
४. राष्ट्र भाषा परिषद मुंबई द्वारा ‘महीयसी महादेवी वर्मा पुरस्कार’
५. प्रगतिशील सांस्कृतिक, साहित्यिक मंच द्वारा सम्मानित किये गए तथा इनके अलावा भी उन्हें अनेक साहित्यिक सांस्कृतिक, सामाजिक संस्थाओं के सम्मेलनों के अवसर पर सम्मान प्राप्त हुआ।

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