सरस्वती भवन पुस्तकालय वाराणसी में स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित, भारत का एक प्रसिद्ध पुस्तकालय है। यह पुस्तकालय अपनी दुर्लभ पाण्डुलिपियों के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है। जानकारी के लिए बताते चलें कि इस समय यहाँ एक लाख से ज्यादा पांडुलिपियाँ संरक्षित हैं। भारतीय ज्ञान-विज्ञान का अनमोल खजाना संजोने वाली दुर्लभ प्राचीनतम पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए ही सरस्वती भवन की स्थापना की गई थी।
परिचय…
इस पुस्तकालय की स्थापना राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, वाराणसी की स्थापना के समय यानी वर्ष १८९४ में ही हो गयी थी। किन्तु इसके भवन का शिलान्यास १६ नवम्बर, १९०७ को वेल्स के राजकुमार एवं राजकुमारी के आगमन के समय हुआ था। यह भवन वर्ष १९१४ में बनकर तैयार हुआ और इसका नाम ‘प्रिन्स ऑफ वेल्स सरस्वती भवन’ रखा गया।
संग्रह…
प्रारंभ में इस पुस्तकालय में वेद, वेदांग, पुराण, ज्योतिष एवं व्याकरण आदि विषयों की १,११,१३२ पांडुलिपियां थीं परन्तु किन्हीं कारणों से वर्तमान समय में इनकी संख्या लगभग ९५ हजार है। देवनागरी, खरोष्ठी, मैथिली, बंग, ओड़िया, नेवाड़ी, शारदा, गुरुमुखी, तेलुगु एवं कन्नड की विभिन्न लिपियों और संस्कृत में लिखी गईं ये पांडुलिपियां स्वर्ण पत्र, कागज, ताड़पत्र, भोजपत्र एवं काष्ठपत्र पर लिखी गई हैं। इनमें स्वर्णपत्र पर लिखी गई त्रिपिटक, श्रीमद्भागवत गीता समेत कई पांडुलिपियां करीब ९०० वर्ष पुरानी हैं।
सरस्वती भवन ग्रंथमाला…
सरस्वती भवन ग्रंथमाला नाम से संस्कृत ग्रंथों के प्रकाशन का कार्य सन् १९२० से आरम्भ हुआ।
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