जिस भूखण्ड पर हम रहते है उसे हम कालखंड से भी पुकार सकते हैं, इसे हम दो हिस्सों में भी बांट सकते हैं या अपनी सुविधा के खातिर आप इसे जितने मन उतने हिस्सों में बांट सकते हैं। मगर हम यहां इसे दो हिस्सों में बांट कर देखते हैं। एक वो जो शहरों में बसती है और दूसरी वो जो गावों में बसती है या शायद बसती थी। एक वो जो मेकाले के वंशावली में अपना नाम जुड़वाने को आतुर है तो दूसरी वो जो शायद आज भी राम को अपना आदर्श मानती है। इस भूखण्ड में दो देश बसता है एक वो जो पाताल के गहराईओ कों झांकता है तो दूसरा वो जो ऊपर देख ऊंचाई को नापता है। इस देश में दो तरह के लोग बसते हैं। एक वो जो जीवन को सपनों की तरह जीते हैं दूसरा वो जो सपनों में ही जीते हैं। जनमानस में भी दो देश बसता है एक वह जो जगह जगह से दरक गया है, फट गया है। अपने पुराने हो चुके बाशिंदो के भूलते जा रहे मन मस्तिष्क के किसी कोने में पुराना हो चुका उनका अपना भारत। तो दूसरा वह जो चमक रहा है, जिसकी आभा चारों तरफ उदीयमान हो रही है। जिसकी चमक से अपनों के धू धू कर जल रहे घरों से उठती आग की लपटें भी नहीं दिखाई पड़ती, वाह ! ये है इंडिया। मगर ये दो नहीं हैं एक ही हैं, इनके स्वरूप का नाम बदल जाता है, कहीं भारत तो कहीं इंडिया बन जाता है। भारत को इंडिया बनने के पीछे क्या कारण हो सकता है? शायद इसका जवाब संविधान दे सके। संविधान के पहले पन्ने पर ही लिखा है की भारत को इंडिया कहा जाएगा क्योंकि भारत एक संघ है इसलिए इसे भारत और इंडिया दोनो नामों से जाना जाएगा। भारत अपने आप में एक अनोखा देश है जहां कई सभ्यता, भाषाएँ और संस्कृतियाँ हैं। संविधान सभा के अनुसार सभ्यता और संस्कृतियों को एक जगह लाने के लिए इससे कोई अच्छा माध्यम नहीं था। अब सवाल यह उठता है की भारत को इंगलिश में जब इंडिया कहते हैं तो यह इंडिया क्या है? और इसका मतलब क्या है? दरअसल कई विदेशी व्यापारी अपना व्यापार बढ़ाने भारत आए और उन्होने अपने अपने हिसाब और भाषा से भारत को अलग अलग नाम दिया जिनमे ईरानी और यूनानी मुख्य थे। उन्होने ही भारत को हिन्दुस्तान और इंडिया जैसे नाम दिए। पहले भारत का नाम सिंधु था मगर ईरानी या किसी पुरानी भाषा की पुस्तकों से सिंधु शब्द का अर्थ निकाला गया हिन्दू और इसी हिन्दू शब्द से बना हिन्दुस्तान। जबकी यूनानी में इंडो या इंडो शब्द का रूप मिला और जब यह शब्द लैटिन भाषा में पहुचा तो इंडो को बनाया गया इंडिया। मगर फिर भी इसे अपनाने को लेकर कोई एकमत नहीं हुआ। इसके पीछे का कारण यह था की हम किसी और के बनाए शब्द से अपने देश का नाम निर्धारित क्यों करें। मगर जब भारत में अंग्रेजी शासन आया तब उन्होने इस शब्द को अपना लिया और इस तरह भारत का अंग्रेजी में नाम पड़ा इंडिया। अंग्रेजों ने इंडिया शब्द का चलन इतना बढ़ा दिया की भारतवासीयों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया और इस तरह से भारत बन गया इंडिया और भारतीय बन गए इंडियन। फिर एक दिन अंग्रेज चले गए भारत को छोड़ कर, शासन की बगाडोर आई इंडियंस के हांथ में और भारत के जिम्मे आई मजदूरी, किसानी। मजदूर और किसान दोनो रोज जोखिम उठाते हैं, पहला खेत मे साँप बिच्छु जंगली जानवर से, तो दुसरा शहरो मे ट्रेन बस आदी मे लटक कर यात्रा करके या ऊँची ऊँची ईमारत मे लटक कर काम करने का जोखिम उठाकर, पहले की पत्नी इंतजार करती है, दुसरे की बार बार फ़ोन करती है यह सोच कर की ज़िन्दा है न पहला चिलचिलती धूप मे खेतो मे कड़ी मेहनत करता है, दुसरा पत्थरो के जंगल मे धुप मे जलने के बाद पानी भी खरीद कर पीता है, पहला खेती के लिये कर्ज लेता है और फसल खराब होने पर चिन्ता मे आत्महत्या कर लेता है, दुसरा धंधा के लिये कर्ज लेता है और नुकसान होने पर पुरा परिवार आत्महत्या कर लेता है पहला अन्नदाता है तो दुसरा समाजिक व्यवस्थापक। वे दोनो तंगहाल हैं परेशान हैं मगर दो निकम्मे राजकुमारों में से किसी एक को राजा बनाने की औकात रखते हैं। दूसरी तरफ इंडिया की राजगद्दी के वारिस चिकेन लेग खाते हुए कह रहे हैं कि “भारत देश में असहिष्णुता बढ़ गई है, लोग घोड़े की टांग तोड़ने में लगे हुए हैं”।हिंदुत्व की रक्षा की बात करने वाले नेता जी आजकल खुद की रक्षा के लिए SPG सुरक्षा की मांग कर रहे हैं भले ही उनके राजा राम अपने लिए इंदिरा आवास के इंतजार में वर्षो से टेंट में रह रहे हों। नेताजी अहिंसा में विश्वास रखते है इसलिए उनको तलवार भेट की जाती है। इंडियंस समय अभाव के कारण स्नान और पूजा नहीं कर पाते लेकिन भारतीय होने का दिखावा करते हैं इसलिए माथे पर टिका जरुर लगा लेते हैं। इंडियंस जात-पात, धर्म से ऊपर उठ कर सोचते हैं इसलिए जालीदार टोपी भी पहन लेते हैं।भारतियों के राजा आकाश मार्ग से बाढ़ देखने इस लिए जाते हैं की वो दुनिया को बता सके की डर के आगे जीत है। तथाकथित, भारत जब आजाद हुआ था तो एक संकल्प के साथ, की लोगो की सारी समस्याएं १५ सालों में ख़त्म हो जाएगी लेकिन राजनीती के चौसर पर न प्यादे पिटे गए न राजा सिर्फ खेल जारी है, सामाजिक न्याय के नाम पर राजनीती करने वाले लालू प्रसाद ने अपना सारा न्याय परिवार तक ही समेट कर रख दिया, समाजवाद के नाम पर आने वाले मुलायम अपना जन्मदिन शाही अंदाज में मानते हैं। दलित राजनीती करने वाले रामविलास और मायावती अपने शाही महल से बाहर आकर कभी देखा नहीं की दलितों का पेट भाषणों से नहीं भरने वाला। भ्रष्टाचार के विरोध की राजनीती से निकले केजरीवाल भी राजनितिक खेल में माहिर हो गए हैं। एक तरफ सारे राजनितिक पार्टियों के नेताओं ने पूरी राजनीती अपने परिवार तक सिमटा दिया है और अपने बाल बच्चों को सेट करने में लगे हैं। राजनीती के इस परिवारवाद के किले को ढाहने के लिए नए भारत के छात्रनेता उटपटांग भाषणों और बयानों से सुर्ख़ियो में आने के लिए छटपटा रहे हैं। देश कहाँ जा रहा है किसी को चिंता नहीं, इन्होने देश की हालत इतनी ख़राब कर दि है की आजादी के पहले के खाते पीते समुदायों को भी आज आरक्षणों का सहारा मांगना पड़ रहा है। गुजरात का पटेल या हरियाणा के जाट इसके ताजा उदहारण हैं। दुःख के साथ हंसी भी आती है की भारत की सबसे पुराने सामाजिक संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सामाजिक चिंतन करते करते यह चिंतन करने लगा है की पैंट पहने या निकर तो देश की परस्थितिओं का ज्ञान हो जाता है। इंडियंस द्वारा तथाकथित आजाद भारत के लिए रोज नए कानून सिर्फ इस लिए बनाये जाते हैं की लोगो में भ्रम पैदा हो की उनका राजा उनके लिए कुछ तो कर रहा है, इन लोग ने आज़ादी के बाद सिर्फ लाल फ़ीताशाही को जन्म दिया है, बैंक में खाता खोलना हो या मोबाइल सिम लेना हो, गैस लेना हो या बिजली का कनेक्शन इसके लिए हजार तरह के डॉक्यूमेंट की मांग की जाती है जैसे हम भारत के नहीं दूसरे ग्रह के निवासी हों, ऐसा तमाशा पूरी दुनिया में सिर्फ यहीं देखने को मिलता है।भारतीय जनसंख्या का प्रतिशत निरंतर घट रहा है जिसके पीछे मुख्य कारण भारतियों का इंडियन बनना या वृद्ध हो गुजर जाना। पुराने और रुढिवादिता के मानद उपाधि से सम्मानित हो चुके भारतीय संस्कार पलायन के कारक माने जा रहे हैं। आज शहर इंडियन हो गए हैं या इंडियन होने के कगार पर हैं इसलिए विकसित हैं और गांवों में बस रहे भारतियों को विकसित की श्रेणी में आने के लिए इंडियन होना ही एकमात्र विकल्प है। भारत में व्याप्त विभिन्न कुरुतियों को जैसे, गौतम धर्मसूत्र के चालीस संस्कार हों या मनु और याज्ञवल्क्य के तेरह संस्कार अथवा स्वामी दयानंद सरस्वती तथा पंडित भीमसेन शर्मा के सोलह संस्कार जो भारत को इंडियन बनने से रोक रहे हैं अथवा विकसित मानसिकता में बाधक हैं उनको समूल नष्ट करना होगा तथा हर जगह मेकाले अथवा वाममार्गी शिक्षा की अलख जगानी होगी। यह कथा भारत बनाम इंडिया की नहीं है यह कथा भारत बनता इंडिया की है। अफसोस अब वो दिन दूर नहीं जब हर भारतीय इंडियन होगा और भारत पूरी तरह से इंडिया।