November 25, 2024

निर्देशक : अद्वैत चंदन
कलाकार : आमिर खान, करीना कपूर, मोना सिंह, नागा चैतन्य, मानव विज आदि
जोर्नर : रोमांस-ड्रामा
स्टार : तीन स्टार

आपने पीके, फैशन और फॉरेस्ट गंप देखी हो तो ‘लाल सिंह चड्ढा’ देखने की कोई जरूरत नहीं है। और नहीं तो फिर ठीक है, आप लाल सिंह चड्ढा को देख ही लो, इन तीन फिल्मों को देखने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। आप पूछेंगे ऐसा क्यों? तो साहब लाल सिंह चड्ढा इन तीनों ही फिल्मों का कॉकटेल है…

१. पीके में जिस तरह आमिर खान ने एक्टिंग की है, वही एक्टिंग दुबारा से लाल सिंह चड्ढा में दोहराया है, इसका अंदाजा आप यह ना लगाएं कि हम आमिर की बुराई कर रहा हूं, क्योंकि कोई भी कलाकार अपनी उम्दा प्रस्तुति को जल्दी दोहरा नहीं सकता है। आप इसे जिस तरह लेना चाहें ले सकते हैं।

२. इस फिल्म में करीना कपूर खान का प्लॉट मधुर भंडारकर निर्मित फैशन फिल्म पर आधारित है। जो वॉलीवुड के बाहर से आई खूबसूरत लड़कियों के संघर्ष को दर्शाती है।

३. इस फिल्म में करीना कपूर खान की कहानी, वॉलीवुड अभिनेत्री मोनिका बेदी और अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम की कहानी से प्रेरित जान पड़ता है, कई बार कितने ही अन्य फिल्मों में यह दिखाई जा चुकी है, जैसे; अजय देवगन अभिनीत एक ‘कंपनी’ और दूसरी ‘वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई’ आदि।

४. आमिर खान की बहुचर्चित लाल सिंह चड्ढा टिप्पिकल वॉलीवुड की ही फिल्म है जिसमें हीरो दौड़ते दौड़ते कोई बड़ा आदमी, इंस्पेक्टर या कोई बहुत बड़ा डॉन बन जाता है।

५. और सबसे बड़ी बात, फिल्म १९९४ में आई टॉम हैंक स्टारर ‘फॉरेस्ट गम्‍प’ की ऑफिशियल रीमेक है। किसी भी फिल्म की अडॉप्टेशन की सबसे बड़ी दिक्कत होती है, उसकी मूल फिल्म से तुलना और जब उस फिल्म को ६ एकेडमी पुरस्कार मिल चुके हों, तो फिर फिल्म को और ज्यादा सूक्ष्म तरीके से देखा जाता है। मूल फिल्म के प्रशंसकों के लिए ये बहुत मायने रखता है कि उसकी आवृति में वो दम है या नहीं। आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा के साथ भी यही दिक्कत है। 

कहानी…

फिल्म की कहानी सदी के आठवें दशक से शुरू होती है और आज के माहौल को समेटती चलती है। लाल सिंह चड्ढा को ट्रेन के जरिए कहीं पहुंचना है और इस सफर में वो अपने साथ यात्रा करने वाले यात्रियों को अपनी जिंदगी की जो कहानी सुनाता है, वो देश के कई काल-खंडों से होकर गुजरती है। असल में कहानी का मूल आधार प्रेम है, बिना शर्त, किसी भी अपेक्षा से परे वाला प्रेम। लाल सिंह जिसे समाज बुद्धु बच्चा समझता है, अपनी मां की नजर में सबसे खास है। उसकी मां को यकीन है कि उसका बच्चा कुछ भी करने में सक्षम है। आप उसे दिव्यांग कह सकते हैं, मगर उसकी अपनी विलक्षण खूबियां हैं। उसे बचपन से ही रूपा से इतना प्यार है कि बस एक बार रूपा ने उसे ‘भाग लाल भाग’ कहा था और उसके बाद लाल पूरी फिल्म में ऐसे भागता है कि भागने के सारे रिकॉर्ड तोड़ देता है।

फिल्म वर्ष १९८४ की इमर्जेन्सी से शुरू होकर मोदी सरकार पर खत्म होती है, जहां बाबरी मस्जिद, मंडल आयोग, ऑपरेशन ब्लू स्टार, कसाब का आतंकी हमला जैसे राजनीतिक और धार्मिक मुद्दे भी आते हैं। मगर आमिर खान, फिल्म के लेखक अतुल कुलकर्णी और निर्देशक अद्वैत चंदन को दाद देनी होगी कि उन्होंने इन तमाम मुद्दों पर अपनी राय नहीं थोपी। कहानी की मासूमियत लाल के किरदार से झलकती है। देश में इतना कुछ हो रहा है, मगर लाल का भोलापन अपनी जगह कायम है। दंगे-फ़साद के क्रूर रूप से अपने बेटे को दूर रखने के लिए मां जब लाल से कहती है कि मलेरिया फैला है देश में और एक हफ्ते तक कमरे से बाहर नहीं निकलना, तो लाल उस पर कायम रहता है और नैशनल रेस में भाग लेने से भी कन्नी काट जाता है।

यह लाल सिंह के किरदार की मासूमियत का गजब अंदाज है कि कारगिल की जंग में वो अपने साथियों के साथ-साथ दुश्मन देश पाकिस्तान के सिपाही की भी जान बचाता है। रूपा के लिए उसका प्यार इस कदर गहरा है कि वो उसके खिलाफ एक गलत लफ्ज सुन ले, तो सामने वाले की ऐसी-तैसी कर दे। कहानी अपने विभिन्न पड़ावों से अपनी मंजिल तक पहुंचती है।

समीक्षा…

निर्देशक अद्वैत चंदन फिल्म को लेकर काफी संवेदनशी हैं। परंतु फिल्म की लंबाई फिल्म का माइनस पॉइंट है। फिल्म अगर कुछ मिनट कम होती, तो और धारदार हो सकती थी, क्योंकि कई बार इसके डॉक्यूड्रामा वाले अंदाज में धैर्य रखने की जरूरत पड़ती है। फिल्म के सिनेमेटोग्राफी उम्दा रही है। फिल्म का हर फ्रेम आपको कहानी के और करीब ले जाता है फिर चाहे लद्दाख, कन्याकुमारी, दिल्ली के खूबसूरत लोकेशन हो या फिर सरसों के खेतों के बीच लाल का घर और उसके आसपास की दुनिया। फिल्म में भारत की ऐतिहासिक, राजनैतिक और धार्मिक घटनाओं का समावेश वीएफएक्स के माध्यम से बखूबी किया गया है। ऑपेरशन ब्लू स्टार, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या, बाबरी मस्जिद विध्वंस, २६/११ के विजुअल्स को कहानी में जोड़ा गया है। फिल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं, मगर गीत-संगीत पर थोड़ी सी और मेहनत होनी चाहिए थी।

कलाकारों का अभिनय फिल्म का मजबूत पक्ष है। आमिर को अच्छे से पता था कि उनकी तुलना टॉम हैंक्‍स से होगी, तो उन्होंने अपने किरदार को संवारने में कड़ी मेहनत की है, इसके बावजूद उनके लाल के किरदार में ‘धूम ३’ में आमिर खान के दूसरी वाली भूमिका और ‘पीके’ की छाप नजर आती है। बावजूद इसके उनका भोलापन आंखें नम कर देता है। करीना कपूर खान का किरदार कहानी का अहम आधार है, जिसे उन्होंने अपने उम्दा अभिनय से मजबूत बनाया है। वे रूपा के किरदार की ख्वाहिश,असुरक्षा की भावना, बचपन के दर्द के साथ बखूबी निभा ले जाती हैं।

अपने दादा-परदादा के चड्डी-बनियान के कारोबार को करने की हसरत रखने वाले किरदार बाला को नागा चैतन्य ने मजेदार तरीके से अंजाम दिया है। पाकिस्तानी सैनिक के किरदार मोहम्‍मद भाई के किरदार में मानव विज याद रह जाते हैं। लाल की मां के रूप में मोना सिंह दिल जीत ले जाती हैं। शाहरुख खान के कमियों को वीएफएक्स के माध्यम से दर्शया गया है। फिल्‍म की सर्पोटिंग कास्ट भी अच्छी है।

क्यों देखें…

संवेदनशील और अर्थपूर्ण फिल्मों के चाहने वाले और आमिर खान के फैंस ये फिल्म देख सकते हैं।

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