काशी स्थित रानी भवानी गली में स्थित है, अति प्राचीन शनि देव का मंदिर। वैसे शनि देव का यह प्राचीन मंदिर काफी वक्त से अपने जीर्णोद्धार की राह देख रहा था, जो कि अब तैलाभिषेक कर मंदिर का जीर्णोद्धार कर दिया गया। मगर मंदिर शिखर अब भी जर्जर अवस्था में है।
परिचय…
मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान वहां एक शिलापट्ट लिखा मिला, जिसमें संवत १९९८ में इसके जीर्णोद्धार का जिक्र किया गया था। इस दक्षिणमुखी गज वाहन पर शनिदेव जी महाराज विराजमान हैं। यहां स्थित शीला को लोग भगवान शनि मानकर पूजा करते हैं।
जुड़वां हाथियों पर सवार हैं महराज…
तात्कालिक उपस्थित पंडित जी ने बताया कि दो जुड़वां हाथियों पर शनि देव जी महाराज सवार हैं। उनका रथ पूरब दिशा से पश्चिम दिशा की ओर जा रहा है। रथ पर बैठे शनिदेव दक्षिण दिशा के लोगो को दर्शन देते हुए वैभव लक्ष्मी को आशीर्वाद दे रहे हैं। इसलिए महाराज का दर्शन वैभव प्रदान करता है।
पूजन…
जिन जातकों पर शनि का प्रकोप चल रहा है उन्हें सरसों या तिल का तेल स्वक्ष बर्तन में रखकर चेहरा देखना चाहिए। इसे किसी शनि मंदिर में दान कर देना चाहिए। इस क्रिया को ज्योतिष शास्त्र में छाया दान कहते हैं। इस प्रक्रिया को करने से ग्रह दोष कट जाते हैं। शनिदेव को नीला पुष्प और काला छाता बहुत पसंद है। हनुमान जी का चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर विग्रह का लेपन करना शुभ बताया गया है।
भंडारा का आयोजन…
अमावस के दिन काला तिल और काली उरद दान दिया जाता है और सैकड़ों भूखे लोगों को इस उपलक्ष्य में इससे बनी खिचड़ी खिलाई जाती है।
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