November 24, 2024

काशी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। काशी में लगभग ८४ घाट हैं, जो लगभग ४ मील लम्‍बे तट पर बने हुए हैं। इन ८४ घाटों में पाँच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्‍हें सामूहिक रूप से ‘पंचतीर्थ’ कहा जाता है। ये हैं असी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिका घाट।

परिचय…

मणिकर्णिका घाट काशी का प्रसिद्ध श्मशान घाट है, जो कि समस्त भारत में प्रसिद्ध है। यहाँ पर शिव जी एवं माँ दुर्गा का प्रसिध्य मंदिर भी है, जिसका निर्माण मगध के राजा ने करवाया था। मणिकर्णिका घाट का इतिहास बहुत पुराना है। कई राज इस घाट से जुड़े हुए है। कहते हैं कि चिता की आग यहां कभी शांत नहीं होती।

स्नान…

मणिकर्णिका घाट पर कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी अर्थात बैकुंठ चतुर्दशी और वैशाख माह में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन घाट पर स्नान करने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

वैश्याओं का नृत्य…

चैत्र नवरात्री की अष्टमी के दिन वैश्याओं का विशेष नृत्य का कार्यक्रम होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से उन्हें इस तरह के जीवन से मुक्ति मिलती है, साथ ही उन्हें इस बात का उम्मीद भी होता है कि अगले जन्म में वे वैश्या नहीं बनेंगी।

चिता की राख से होली…

फाल्गुन माह की एकादशी के दिन चिता की राख से होली खेली जाती है। कहते हैं कि बाबा विश्वनाथन अपनी माता पार्वती का गौना कराकर लौट रहे थे। जब डोली इस घाट के पास से गुजरी तो सभी अघोरी नाच गा कर रंगों से इनका स्वागत करने लगे। तब से यहां की होली मशहूर हो गई।

शक्तिपीठ…

ग्रथों आदि के अनुसार माता सती के कान का कुंडल यहीं गिरा था, इसीलिए इसका नाम मणिकर्णिका पड़ा। यहां पर माता का शक्तिपीठ भी स्थापित है। जब भी यहां किसका दाह संस्कार किया जाता है, तो अग्निदाह से पूर्व उससे पूछा जाता है, क्या उसने भगवान शिव की धर्मपत्नी माता सती के कान का कुंडल देखा। यहां भगवान शिव अपने औघढ़ स्वरूप में सैदव ही निवास करते हैं।

प्राचीन कुंड…

एक बार भगवान शिव हजारों वर्षों से योग निंद्रा में थे, तब विष्णु जी ने अपने चक्र से एक कुंड को बनाया था जहां भगवान शिव ने तपस्या से उठने के बाद स्नान किया था और उस स्थान पर उनके कान का कुंडल खो गया था जो आज तक नहीं मिला। तब ही से उस कुंड का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ गया। काशी खंड के अनुसार गंगा अवतरण से पूर्व से ही इसका अस्तित्व है। मणिकर्णिका घाट पर भगवान विष्णु ने सबसे पहले स्नान किया। इसीलिए वैकुंठ चौदस की रात के तीसरे प्रहर यहां पर स्नान करने से मुक्ति प्राप्त होती है। यहां पर विष्णु जी ने शिवजी की तपस्या करने के बाद एक कुंड बनाया था। 

कुंड से निकली थी प्राचीन प्रतिमा… 

प्राचीन काल में मां मणिकर्णिका की अष्टधातु की प्रतिमा इसी कुंड से निकली थी। कहते हैं कि यह प्रतिमा वर्षभर ब्रह्मनाल स्थित मंदिर में विराजमान रहती है परंतु अक्षय तृतीया को सवारी निकालकर पूजन-दर्शन के लिए प्रतिमा कुंड में स्थित १० फीट ऊंचे पीतल के आसन पर विराजमान कराई जाती है। इस दौरान कुंड का जल सिद्ध हो जाता है जहां स्नान करने से मुक्ति मिलती है।

माता सती का अंतिम संस्कार…

भगवान् भोलेनाथ जी द्वारा यही पर माता सती जी का अंतिम संस्कार किया था। इसी कारण यह घाट महाश्मशान घाट प्रसिद्ध है।

मणिकर्णिका घाट की होली

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