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स्वामी रामभद्राचार्य एक हिंदू धर्मगुरु, शिक्षक, संस्कृत के विद्वान, बहुभाषाविद, लेखक, पाठ्य टिप्पणीकार, दार्शनिक, संगीतकार, गायक व नाटककार हैं। वह भारत के चार प्रमुख जगद्गुरु में से एक हैं। उन्होंने १९८८ से इस उपाधि को धारण किया है। रामभद्राचार्य तुलसीपीठ के संस्थापक और प्रमुख हैं। तुलसीपीठ संत तुलसीदास के नाम पर चित्रकूट में एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान है। भारत सरकार ने स्वामी रामभद्राचार्य को पद्म विभूषण (२०१५) से सम्मानित किया है।

 

परिचय…

माता शची देवी और पिता पण्डित राजदेव मिश्र के पुत्र जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य का जन्म १४ जनवरी सन १९५० को एक वसिष्ठ गोत्रिय सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में उत्तर प्रदेश राज्य के जौनपुर जिले के सांडीखुर्द नामक ग्राम में हुआ था। इनके दादा पण्डित सूर्यबली मिश्र की एक चचेरी बहन मीराबाई की भक्त थीं और मीराबाई अपने काव्यों में श्रीकृष्ण को गिरिधर नाम से संबोधित करती थीं। अतः उन्होंने नवजात बालक को गिरिधर नाम दिया।

स्वामी रामभद्राचार्य चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन चांसलर हैं। इस विश्वविद्यालय में विशेष रूप से चार प्रकार के विकलांग छात्रों को स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान किया जाता हैं। रामभद्राचार्य दो महीने की उम्र से अंधे हैं। १७ साल की उम्र तक उनकी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी। उन्होंने सीखने या रचना करने के लिए कभी भी ब्रेल लिपि या किसी अन्य सहायता का उपयोग नहीं किया।

 

नेत्रहीनता…

बालक गिरिधर की नेत्रदृष्टि दो मास की अल्पायु में नष्ट हो गयी। २४ मार्च, १९५० को बालक की आँखों में रोहे हो गए। गाँव में आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध नहीं थी। बालक को एक वृद्ध महिला चिकित्सक के पास ले जाया गया जो रोहे की चिकित्सा के लिए जानी जाती थी। चिकित्सक ने गिरिधर की आँखों में रोहे के दानों को फोड़ने के लिए गरम द्रव्य डाला, परन्तु रक्तस्राव के कारण गिरिधर के दोनों नेत्रों की ज्योति चली गयी। आँखों की चिकित्सा के लिए बालक का परिवार उन्हें सीतापुर, लखनऊ और मुम्बई स्थित विभिन्न आयुर्वेद, होमियोपैथी और पश्चिमी चिकित्सा के विशेषज्ञों के पास ले गया, परन्तु गिरिधर के नेत्रों का उपचार न हो सका।

 

भाषा ज्ञान…

रामभद्राचार्य जी २२ भाषाएं बोल सकते हैं। वे संस्कृत, हिंदी, अवधी, मैथिली और कई अन्य भाषाओं के लेखक हैं। उन्होंने चार महाकाव्य कविताओं सहित १०० से अधिक पुस्तकों और ५० पत्रों को लिखा है। उन्हें संस्कृत व्याकरण, न्याय और वेदांत सहित विभिन्न क्षेत्रों में उनके ज्ञान के लिए स्वीकार किया जाता है। वे रामचरितमानस के एक महत्वपूर्ण संस्करण के संपादक हैं। वह रामायण और भागवत के लिए प्रसिद्ध कथाकार हैं। इनके कथा कार्यक्रम भारत और अन्य देशों के विभिन्न शहरों में नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं। शुभ टीवी, संस्कार टीवी और सनातन टीवी जैसे टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित किए जाते हैं। वे विश्व हिंदू परिषद के एक नेता भी हैं।

 

पुरस्कार और सम्मान…

१. पद्म विभूषण, २०१५

२. हिमाचल प्रदेश सरकार, शिमला की ओर से देवभूमि पुरस्कार, २०११

३. हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग की ओर से संस्कृत महामहोपाध्याय, २००६

४. श्रीभार्गवराघवीयम् के लिए संस्कृत में साहित्य अकादमी पुरस्कार, २००५

५. बादरायण पुरस्कार, २००४

६. राजशेखर सम्मान, २००३

७. कविकुलरत्न की उपाधि, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, २००२

८. विशिष्ट पुरस्कार, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ, २०००

९. महामहोपाध्याय की उपाधि, लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली, २०००

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