“५० साल की मेहनत आज रंग लाई है।” यह शब्द हैं भारत की पूर्व कप्तान डायना एडुल्जी के, जो तब भारतीय महिला टीम की कप्तान थी जब महिला क्रिकेट के लिए न तो मैदान खुले थे, न दर्शक दीर्घा में कोई भीड़ होती थी न मीडिया की सुर्खियां, न स्पॉन्सरशिप, न ही सुविधाएं। फिर भी उनके जैसे कुछ ऐसी भी लड़कियां थीं जो क्रिकेट को छोड़ ही नहीं पाईं।
वर्ष १९७६ में जब उन्होंने भारत के लिए डेब्यू किया, तब महिला क्रिकेट बोर्ड के पास खिलाड़ियों को जर्सी तक देने के पैसे नहीं थे। कई बार टीम स्वयं ही अपनी यूनिफॉर्म सिलवाती थी, ट्रेन में बैठकर बिना टिकट यात्रा करती, और कई बार होटल न मिलने पर ग्राउंड के ड्रेसिंग रूम में ही सोती थी।
कितने खिलाड़ी तो हार मान कर क्रिकेट को छोड़कर चलीं गई लेकिन डायना एडुल्जी डटी रहीं। १५ साल तक भारत की कप्तान रहीं, वर्ष १९७८ से वर्ष १९९३ तक। उन्होंने टीम को वो पहचान दिलाई जो आज एक आंदोलन बन चुकी है। और आज, जब उन्होंने हरमनप्रीत कौर की अगुवाई में भारत को पहला महिला एकदिवसीय विश्व कप जीतते हुए देखा तो उनकी आँखों में सिर्फ़ आँसू नहीं थे, बल्कि पचास सालों का संघर्ष, त्याग और गर्व साफ देखा जा सकता था।
परिचय…
२६ जनवरी, १९५६ को मुंबई, महाराष्ट्र में जन्मी डायना फ्रेम एडुल्जी के लिए भी आम लड़कियों की तरह क्रिकेट कभी आसान नहीं रहा और वो भी तब जब देश में पुरुष क्रिकेट की पहचान सीमित थी। वो तो भला हो पूर्व क्रिकेटर और कप्तान कपिल देव का जिन्होंने वर्ष १९८३ में क्रिकेट विश्व कप को जीत क्रिकेट को जन जन में पहचान दिलाई।
डायना दाएं हाथ की बल्लेबाज और बाएं हाथ ऑर्थोडॉक्स गेंदबाज थीं, एक तरह से आप कह सकते हैं कि वो महिला क्रिकेट की कपिल देव थीं। यानी कप्तान, बल्लेबाज और गेंदबाज अर्थात ऑलराउंडर।
सफर…
डायना बहुत कम उम्र से ही खेलों की ओर आकर्षित थीं। अपने बचपन के दिनों में वह जिस कॉलोनी में रहती थीं, वहां टेनिस बॉल से खेलती थीं। इसके बाद उन्होंने क्रिकेट में आने से पहले जूनियर राष्ट्रीय स्तर पर टेबल टेनिस और बास्केट बॉल भी खेला।
पूर्व महान क्रिकेटर स्वर्गीय श्री लाला अमरनाथ जी द्वारा आयोजित एक क्रिकेट शिविर के दौरान उन्होंने बहुत कुछ सीखा और अपने कौशल को निखारा। जैसा कि हमने ऊपर ही कहा है कि उस दौरान भारत में महिला क्रिकेट टीम लोकप्रियता हासिल करने के लिए जूझ रही थी तब वह रेलवे टीम के लिए खेलने लगीं। घरेलू स्तर पर उनकी सफलता के बाद उन्हें उच्चतम स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए बुलाया गया और वह एक धीमी बायें हाथ की गेंदबाज के रूप में सफल रहीं। उन्होंने वर्ष १९७५ में अपनी पहली श्रृंखला खेली। वर्ष १९७८ में उन्हें टीम का कप्तान बनाया गया। १२० विकेटों के साथ, वह खेल में सर्वाधिक विकेट लेने वाली गेंदबाज बनी।
क्रिकेट…
मुंबई, रेलवे और फिर भारतीय राष्ट्रीय टीम में शामिल होने से लेकर इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, वेस्टइंडीज़, हॉलैंड, डेनमार्क और आयरलैंड जैसी मज़बूत टीमों के साथ खेलने तक उनका सफ़र अविश्वसनीय रहा है। उन्होंने २० टेस्ट मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और ६३ विकेट लिए हैं, जिसमें उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन ६-६४ रहा है, जबकि बल्लेबाजी में उन्होंने नाबाद ५७ रनों की पारी खेलकर शीर्ष स्कोर बनाया है। ३४ एकदिवसीय मैचों में उन्होंने ४६ विकेट लिए हैं, जिसमें उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन ४-१२ रहा है।
उन्होंने तीन विश्व कप भी खेले और दो में टीम की कप्तानी भी की है। उनकी टीम दो बार फाइनल में पहुँची और एक बार सेमीफाइनलिस्ट भी रही। इन ऐतिहासिक प्रदर्शनों के कारण ही आज महिला क्रिकेट को गंभीरता से लिया जा रहा है। उन्हें उस भारतीय महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा होने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसने पटना में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना ‘पहला टेस्ट मैच’ जीता था।
खास बातें…
१. वर्ष १९८३ में डायना को खेलों के सबसे बड़े पुरस्कार अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया था और वर्ष २००२ में पद्म श्री पुरस्कार से भी नवाजा गया। वह टेस्ट में तीसरे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली गेंदबाज हैं।
२. वर्ष १९८६ में इंग्लैंड के दौरे पर भारत की कप्तानी करते हुए एडुल्जी को लॉर्ड्स पवेलियन में प्रवेश से मना कर दिया गया था। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा था कि एमसीसी (मेलबर्न क्रिकेट क्लब) को अपना नाम बदलकर एमसीपी (मेल चौविनिस्ट पिग्स) कर देना चाहिए।
३. वे एकदिवसीय मैचों के लिए भारतीय क्रिकेट टीम की पहली महिला कप्तान थी।
४. अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में १०० विकेट लेने वाली प्रथम महिला हैं साथ ही उनके पास महिला टेस्ट इतिहास में किसी भी महिला क्रिकेटर द्वारा सबसे अधिक गेंदों को फेंकने (५०९८+) का रिकॉर्ड है।
५. वह पहली भारतीय महिला क्रिकेटर हैं जिनके सम्मान में एक बेनिफिट मैच खेला गया था।
६. ३० जनवरी, २०१७ को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बीसीसीआई प्रशासन पैनल में नियुक्त किया गया। वह बीसीसीआई चयन पैनल में नियुक्त होने वाली पहली महिला हैं।
भारत की महिला क्रिकेट टीम के जीत पर डायना कहती हैं…
“यह सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं है, यह हर उस लड़की की जीत है जिसने बिना माइक, बिना मंच सिर्फ़ क्रिकेट से प्यार किया था।” वो आगे कहती हैं, ‘आज शेफाली वर्मा की चौके-छक्कों में और दीप्ति शर्मा के ५ विकेटों में छिपी है उन सभी अनसुनी क्रिकेटरों की कहानी, जो कभी मैदान में सिर्फ़ अपने जज़्बे के भरोसे उतरी थीं।’
अपनी बात…
विश्व कप की यह महान जीत सिर्फ़ २०२५ की नहीं बल्कि यह वर्ष १९७६ से शुरू हुई उस यात्रा का मुकम्मल शुरुआत है, जो अब एक नई सुबह बनकर सामने आई है। आज आसमान साफ है, बस ऊंची और ऊंची उड़ान भरने के लिए बस एक छलांग मारने भर की बात है।