गांव से मासूमियत को,
नगर से उसके नागरिक तो
रास्तों से उसकी मंजिल को हमने हटा दिया है।
स्कूल से शिक्षा को तो
व्यक्ति से उसकी बोली को मिटा दिया है।
माना कि पहले भी अन्याय होते थे,
मगर आज हमने विचार करना छोड़ दिया है।
हमने रात से उसकी नींद को दूर भगा दिया है।
लड़की से लज्जा को
डिग्री से नौकरी छुड़ा दिया।
कारीगर से कारीगरी,
किसानों से जमीन छुड़ा दिया।
छुड़ाते हटाते एक दिन हम
मानव से मानवता छुड़ा देंगे,
उस दिन रास्तों पर,
घरों में सिर्फ कंकाल पड़े रहेंगे।
