✨ ‘चुपके चुपके’ (1975) समीक्षा: क्यों हृषिकेश मुखर्जी की यह कॉमेडी आज भी एक क्लासिक है? (धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन)
हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित ‘चुपके चुपके’ (1975), हिंदी सिनेमा की उन चुनिंदा फिल्मों में से है, जो अपनी सादगी, बुद्धि और निर्मल हास्य के कारण पीढ़ी·दर·पीढ़ी दर्शकों को लुभाती रही है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय कॉमेडी का एक सुनहरा मानक है।
🌟 कहानी का आधार: एक मज़ेदार मज़ाक…
फिल्म की कहानी एक बॉटनी प्रोफेसर, परिमाल त्रिपाठी (धर्मेंद्र) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी नवविवाहित पत्नी सुलेखा (शर्मिला टैगोर) के जीजा, जनरल (ओम प्रकाश) को सबक सिखाना चाहता है। जनरल को अपनी बुद्धिमत्ता पर बहुत घमंड होता है। परिमाल सुलेखा के साथ मिलकर एक शरारत भरी योजना बनाता है: वह खुद को एक साधारण ड्राइवर, प्यारे मोहन के रूप में जनरल के सामने पेश करता है।
इसके बाद, ड्राइवर प्यारे मोहन के बहाने परिमाल का जनरल के घर में प्रवेश, प्रोफेसर सुकुमार सिन्हा (अमिताभ बच्चन) का एक शुद्ध हिंदी पढ़ाने वाले ट्यूटर के रूप में आगमन, और दोनों सुपरस्टार्स का एक ही घर में अजीबोगरीब परिस्थितियों से निपटना—पूरे प्लॉट को हास्य से भर देता है।
🎭 कलाकारों का अभिनय और कॉमिक टाइमिंग…
धर्मेंद्र (परिमाल त्रिपाठी/प्यारे मोहन) : बॉटनी प्रोफेसर की गंभीरता और ड्राइवर की सहजता के बीच बेहतरीन संतुलन। उनका हिंदी उच्चारण वाला हास्य लाजवाब है।
अमिताभ बच्चन (सुकुमार सिन्हा): गंभीर चेहरे के साथ हास्य पैदा करने में महारत। उनकी और जया बच्चन की प्यारी केमिस्ट्री फिल्म का उप-प्लॉट है।
ओम प्रकाश (जनरल): अहंकार और मासूमियत का मिश्रण। शुद्ध हिंदी से उनकी बेचैनी फिल्म का सबसे यादगार हिस्सा है।
शर्मिला टैगोर (सुलेखा): शरारत में अपने पति का साथ देने वाली एक प्यारी पत्नी के रूप में शानदार।
🗣️ सबसे यादगार संवाद और दृश्य…
फिल्म का हास्य गुलज़ार के लिखे शानदार संवादों पर टिका है, जो परिस्थिति के अनुकूल सहज रूप से आते हैं:
१. जनरल (ओम प्रकाश) का हिंदी से संघर्ष: जब उन्हें ‘अतिथि’ (Guest) और ‘अभ्यागत’ (Visiting Guest) जैसे शब्दों को समझने में दिक्कत होती है।
२. ‘शुद्ध हिंदी’ का हास्य: जब ड्राइवर (धर्मेंद्र) अपनी पत्नी (शर्मिला) से शुद्ध हिंदी में बात करता है, ताकि आस-पास के लोग यह न समझ पाएं कि वे पति-पत्नी हैं। यह दृश्य आज भी कॉमेडी का प्रतीक है।
🎬 हृषिकेश मुखर्जी का उत्कृष्ट निर्देशन…
हृषिकेश मुखर्जी ने इस कॉमेडी को बड़े ही सधे हुए तरीके से पर्दे पर उतारा है।
१. निर्मल हास्य (Clean Comedy): फिल्म का हास्य पूरी तरह से सिचुएशनल कॉमेडी और किरदारों की नादानियों पर आधारित है। यह ज़ोरदार ठहाकों से अधिक, मंद मुस्कान और बुद्धि को प्रेरित करता है।
२. रिश्तों की गर्माहट: हास्य के साथ-साथ, फिल्म पारिवारिक बंधनों, दोस्ती और प्रेम के मूल्यों को भी सहजता से दर्शाती है।
💎 सिनेमाई विरासत: क्यों ‘चुपके चुपके’ एक टाइमलेस क्लासिक है?…
१. कॉमेडी का बेंचमार्क: ‘चुपके चुपके’ को आज भी हिंदी सिनेमा में बुद्धिमान कॉमेडी का स्वर्ण मानक माना जाता है।
२. सुपरस्टार्स की केमिस्ट्री: यह फिल्म दिखाती है कि सुपरस्टार्स (धर्मेंद्र, अमिताभ) अपनी गंभीर छवि से बाहर निकलकर भी कॉमेडी में कितने सहज हो सकते हैं।
३. संगीत: एस.डी. बर्मन का संगीत और ‘चुपके चुपके चल री पुरवैया’ तथा ‘अब के सजन सावन में’ जैसे मधुर गीत फिल्म को और भी मनोरंजक बनाते हैं।
🎥 अपनी बात…
अगर आप ७० के दशक की ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो बिना किसी फूहड़ता के आपको दिल खोलकर हंसाए, जिसकी पटकथा त्रुटिहीन हो, और जिसमें भारतीय सिनेमा के दिग्गज कलाकारों का बेजोड़ प्रदर्शन हो, तो ‘चुपके चुपके’ आपके लिए एकदम सही विकल्प है। यह एक बेहतरीन पारिवारिक मनोरंजन (Family Entertainment) है जिसे आप बार-बार देख सकते हैं।
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐⭐ (5/5)