जग क्या है? बस एक आईना,
वही दिखाता, जो मन ने ठाना।
जैसा नज़रिया हो इस दुनिया पर,
वैसा रूप सजेगा हर मंज़र पर।
देखे जो काँटों को, दर्द पाएगा,
देखे फूलों को, सुगंध लुटाएगा।
घुप्प अंधेरा, घोर निराशा या
दिखेगी प्रेम रूपा उषा की आशा।
प्रफुलित मन तो हर चेहरा प्यारा,
मन में हो द्वेष, तो जग ही खारा।
ये सृष्टि, बस अपनी ही छाया है,
दृष्टि के रंग से हर कण माया है।
अगर शक भरी है तेरी निगाह,
तो कंटक भरी होगी तेरी राह।
विश्वास भरा हो दिल-ओ-दिमाग,
तो तूफानों में भी जल उठेगी आग।
बदल ले अपनी देखने की कला,
बदल जाएगा जग, होगा भला।
सत्य है, इसमें ना कोई संदेह,
यथा दृष्टि, तथा सृष्टि, जीवन का यही गेह।